Lok Sabha Election 2024: एक ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में मिशन 80 हासिल करने में जुटी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सत्ता में वापसी का 3.0 प्लान पेश कर दिया. खबर है कि बीजेपी ने अखिलेश यादव के साथी जयंत चौधरी के साथ डील कर ली है.


एक तरफ यूपी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के स्वागत की तैयारी चल रही है. वह यात्रा में शामिल होने के लिए सहयोगी दलों को न्योते भेजे रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटों पर धाक रखने वाले जयंत इंडिया गठबंधन को झटका देने की तैयारी कर रहे हैं.


समाजवादी पार्टी को जयंत चौधरी भरोसा
सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने राष्ट्रीय लोकदल (RLD) को 2 सीटें ऑफर की हैं, जिसमें मथुरा और बागपत की सीट शामिल है. इसके अलावा बीजेपी ने आरएलडी को एक राज्यसभा की सीट भी देने का प्रस्ताव दिया है. हालांकि, समाजवादी पार्टी को भरोसा है कि जयंत कहीं नहीं जाएंगे और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) के साथ ही जुड़े रहेंगे.


अखिलेश यादव से नाराजगी
बहरहाल, अखिलेश के साथ सीट शेयरिंग करने वाले जयंत का इंडिया गठबंधन से मोहभंग क्यों हुआ यह सवाल अभी भी बना हुआ. सूत्रों के मुताबिक जयंत, अखिलेश के प्रस्ताव से नाराज हैं. अखिलेश का प्रस्ताव है कि आरएलडी लोकसभा चुनाव 7 सीटों पर लड़े, लेकिन कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर की सीटों पर उम्मीदवार का चेहरा चेहरा समाजवादी पार्टी से होगा और निशान आरएलडी का.
 
अखिलेश के इस फैसले ने जयंत चौधरी को नाराज कर दिया है. इस बीच बदली हुई परिस्थितियों में जयंत ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द करके खबरों को और भी ज्यादा हवा दे दी. बीजेपी समेत यूपी में एनडीए के बाकी दल भी इस खबर से उत्साहित हैं. जयंत चौधरी का बीजेपी में आना एनडीए के मिशन 400 को नई उड़ान देगा.


क्यों है बीजेपी को जयंत चौधरी की जरूरत?
उत्तर प्रदेश की 10 से 12 सीटों पर जाटों का प्रभाव है. पश्चिमी यूपी में करीब 17 फीसदी आबादी जाटों की है. यहीं नहीं विधानसभा की करीब 50 सीटों का फैसला भी जाट वोटर्स की करते हैं. इसके अलावा जयंत के आने से बीजेपी किसान आंदोलन से हुई जाटों की नाराजगी को भी दूर करने में कामयाब हो सकती है.

जयंत चौधरी को एनडीए में जाने से क्या होगा लाभ?
जयंत चौधरी के लिए भी बीजेपी के साथ आना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. दरअसल, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब यूपी में एसपी-बीएसपी का गठबंधन था तब आरएलडी उसका हिस्सा थी, लेकिन बावजूद इसके उस चुनाव मोदी की आंधी के सामने ये गठबंधन फेल हो गया. 


अजित सिंह और जयंत दोनों एसपी और बीएसपी के समर्थन के बाद भी जाट बहुल अपनी मजबूत सीटों पर चुनाव हार गए. इस बार एसपी-बीएसपी साथ नहीं है तो जीत की गुंजाइश भी गठबंधन में कम है. वहीं, राम मंदिर के उदघाटन ने पश्चिमी यूपी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का चुनावी मिजाज बदल रखा है. 


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