Patna Grand Opposition Meeting: 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही अभी वक्त है लेकिन इसके लिए तरकश कसने अभी से शुरू हो गए हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम मोदी मोदी का रथ रोकने के लिए विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं और इसके लिए 23 जून को विपक्षी दलों की बड़ी बैठक बुलाई है. लेकिन पटना में होने वाली ग्रैंड अपोजिशन मीटिंग से पहले ही तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मोदी के चैलेंजर के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. तेजस्वी ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि नीतीश कुमार ही मोदी का रथ रोकेंगे. ऐसे में सवाल है कि क्या एक बार फिर से मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई होने वाली है और सवाल ये भी है कि नीतीश कुमार क्या पीएम मोदी का रथ रोक पाएंगे ?


कोई 1990 की आडवाणी की रथ यात्रा की याद दिला रहा है. तो कोई कह रहा है कि बिहार में 2015 वाला सीन बीजेपी के साथ रिपीट होने वाला है. बयानों की ये गोलियां लोकसभा चुनाव में मोदी के मजबूत किले को भेदने के लिए चलाई जा रही हैं और बार बार सभी विपक्षी दल के नेताओं को बिहार मॉडल की याद भी दिलाई जा रही है.


जैसे लालू ने रोका, वैसे ही नीतीश रोकेंगे- तेजस्वी


तेजस्वी यादव ने तो सीधा चैलेंज पेश कर करते हुए कहा, देश किसी के बाप का नहीं है. लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका था, अब नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार उसी तरह से मोदी के रथ को रोकेगी. अगर यह लोग फिर से सत्ता में आ जाएंगे तो देश बर्बाद हो जाएगा. इसे रोकने का काम नीतीश कुमार करेंगे.


23 जून की मीटिंग में वक्त है लेकिन तेजस्वी यादव अभी से ही नीतीश कुमार को मोदी के चैलेंजर के तौर पर देखने लगे हैं. प्रोजेक्ट कर रहे हैं और इसके लिए 90 के दशक वाले लालू बनाम आडवाणी वाले एपिसोड की याद दिला रहे हैं.


लालू ने आडवाणी के साथ क्या किया था ?


बता दें, 1990 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर जिले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रोक दिया था. उस वक्त आडवाणी राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन चला रहे थे. पूरे देश में आडवाणी का रथ गुजर रहा था, लेकिन ये रथ जब बिहार से गुजरा तो लालू प्रसाद यादव ने रोका था. इसके बाद कई दिनों तक देश के अलग अलग शहरों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था.


पटना की ग्रैंड मीटिंग में आएंगे विपक्षी दिग्गज


यानी एक बार फिर मंडल बनाम कमंडल वाली सियासत के सुर बुलंद होने लगे हैं. मगर सवाल है कि क्या बिहार वाला मॉडल, नीतीश की सरपरस्ती दूसरे दलों को भी स्वीकार होगी. तेजस्वी के बयान पर दूसरे दल क्या सोचते हैं. ये अभी परद के पीछे है..लेकिन फिलहाल महामीटिंग की तैयारी जोरों पर है. पटना में 23 जून को होने वाली ग्रैंड अलायंस की मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, केजरीवाल, हेमंत सोरेन, स्टालिन और अखिलेश यादव समेत करीब 15 पार्टियों के सबसे बड़े नेता के शामिल होने का दावा किया जा रहा है. कांग्रेस भी फिलहाल इस बैठक को लेकर खासा उत्साहित है और इसे बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है.


मोदी विरोधी इस कुनबे को नीतीश ने रखा दूर


लेकिन सवाल मोदी विरोध में खड़े उस कुनबे का भी है, जिसे नीतीश ने इस मीटिंग के लिए न्योता ही नहीं दिया. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती को नीतीश कुमार ने ग्रैंड अलायंस से दूर रखा. इसलिए बिहार में विपक्ष में बैठी बीजेपी नीतीश का मजाक उड़ा रही है.. नीतीश को जीरो पर आउट होने वाला लीडर बता रही है.


छह-छह महीने वाला पीएम खोज रहे- बीजेपी


बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने तंज कसते हुए चुनौती भी दे डाली. चौधरी ने कहा, नीतीश कुमार खुद को प्रधानमंत्री बता रहे है. मेमोरी लॉस सीएम हैं. चाय नाश्ता के लिए मिल रहे हैं. चुनौती देता हूं पीएम पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान करें. यह लोग छह छह महीने वाला पीएम खोज रहे हैँ.नीतीश कुमार तो ज़ीरो पर आउट होंगे.


बीजेपी का ये चैलेंज सिर्फ सियासी मखौल नहीं है. नीतीश जिस विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं. बीजेपी उसके कमजोर कड़ी की तरफ इशारा कर रही है. इशारा इस बात की तरफ भी है कि क्या राहुल गांधी, ममता बनर्जी और केजरीवाल जैसे लीडर नीतीश को ग्रैंड अलायंस का लीडर मान कर चुनाव के मैदान में उतरने को तैयार होंगे? और सबसे बडा सवाल तो ये है कि बीजेपी को रोकने के लिए सीट शेयरिंग का फॉर्मूला कैसे बनेगा. कौन अपने हिस्से की सीट और वोटबैंक दूसरे के लिए छोड़ने को तैयार होगा.


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