Trinamool Congress Mamata Banerjee: पूर्वोत्तर में अपेक्षा से कम प्रदर्शन के बाद तृणमूल कांग्रेस अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव पर काम कर रही है. इसके तहत वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस से समान दूरी बनाए रखते हुए दोनों खेमों के विरोधी क्षेत्रीय दलों का एक समूह बनाने की कोशिश में है.
त्रिपुरा में, टीएमसी को 'नोटा' में डाले गए वोटों से भी कम वोट मिले, जबकि मेघालय में पार्टी के विधायकों की संख्या 11 से घटकर पांच हो गई. वहीं ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को अल्पसंख्यक बहुल सागरदिघी में झटका लगा है. यह सीट पहले तृणमूल कांग्रेस के पास थी.
रणनीति अगले संसद सत्र में दिखाई देगी
लोकसभा में टीएमसी संसदीय दल के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, "राष्ट्रीय स्तर पर हमारी रणनीति बीजेपी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाए रखने की होगी. हम चाहते हैं कि अन्य विपक्षी दल जो बीजेपी से लड़ना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस का विरोध करते हैं, वे एकसाथ आएं और एकजुट विपक्षी मोर्चे के रूप में काम करें." उन्होंने कहा, "हम पहले से ही भारत राष्ट्र समिति (BRS) (तत्कालीन टीआरएस), आप और अन्य दलों के साथ बातचीत कर रहे हैं. यह रणनीति अगले संसद सत्र में दिखाई देगी."
बनर्जी ने हाल ही में यह घोषणा भी की थी कि पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी. यह फैसला कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ-साथ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेताओं द्वारा टीएमसी पर विपक्षी वोटों को विभाजित करके बीजेपी की मदद करने का आरोप लगाने के बाद आया.
चार प्रमुख राज्यों में इस साल चुनाव
टीएमसी के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय ने कहा कि क्योंकि लोकसभा चुनाव एक साल बाद होना है, इसलिए आने वाले दिनों में स्थिति भी बदलेगी. रॉय ने कहा, "देखते हैं कि चीजें कैसे आकार लेती हैं, क्योंकि चार प्रमुख राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं. इस साल के अंत तक राजनीतिक स्थिति अभी और विकसित होगी." इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं.
रॉय ने केंद्रीय एजेंसियों का 'खुल्लम खुल्ला दुरुपयोग करने' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस, वाम दलों, जद (यू), द्रमुक और जद (एस) को छोड़कर नौ विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा हाल ही में लिखे गए पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि यह 'सिर्फ शुरुआत' है.
कांग्रेस बुरी तरह से विफल
टीएमसी के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रॉय ने कांग्रेस पर उसके ‘बड़े भाई वाले रवैये’ को लेकर निशाना साधते हुए कहा, "कांग्रेस भारतीय राजनीति की बदलती वास्तविकता के साथ अभी तक स्वयं को नहीं ढाल पाई है. वह पिछले नौ सालों में बीजेपी के साथ लड़ने में बुरी तरह से विफल रही है. इसलिए हम मजबूत ताकतों के साथ उनके संबंधित राज्यों में गठबंधन करने की कोशिश करेंगे."
टीएमसी पर बीजेपी का साथ देने का आरोप
टीएमसी ने पिछले साल उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं किया था. लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने हालांकि कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी दलों को एकसाथ लाने के टीएमसी के प्रयास को बीजेपी की मदद करने का प्रयास बताया. उन्होंने कहा, "बीजेपी की मदद के लिए टीएमसी जैसी कुछ विपक्षी पार्टियां जो भूमिका निभा रही हैं, उसे समझने के लिए आपको राजनीतिक पंडित होने की जरूरत नहीं है. टीएमसी अब राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गई है, क्योंकि वह बीजेपी की कठपुतली के तौर पर बेनकाब हो गई है."
बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में टीएमसी की विश्वसनीयता नहीं
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम ने दावा किया कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में टीएमसी की विश्वसनीयता नहीं है. सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता यूनिवर्सिटी के राजनीतिशास्त्र के सहायक प्रोफेसर मैदुल इस्लाम ने कहा कि क्षेत्रीय दलों को एकसाथ लाने का विचार एक ऐसा विचार है, जिसे कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योति बसु ने अस्सी और नब्बे के दशक में तीसरे मोर्चे के नाम पर पेश किया था और बाद में 2014 में बनर्जी ने फेडरल फ्रंट के नाम से आगे बढ़ाया था.
राजनीतिक विज्ञानी बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता बनाने के किसी भी प्रयास का विफल होना तय है. उन्होंने कहा "अगर आप बीजेपी से मुकाबले के लिए गंभीर हैं तो आंकड़ों के लिहाज से आप कांग्रेस के बिना कोई विपक्षी मोर्चा नहीं बना सकते. अगर आप ऐसा कोई मोर्चा बनाने की कोशिश भी करते हैं तो इससे बीजेपी को मदद ही मिलेगी."
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