AAP Rally At Ramlila Ground: दिल्ली का रामलीला मैदान वो जगह है, जिसने 12 साल पहले अरविंद केजरीवाल को आम आदमी का खास चेहरा बना दिया. वो अन्ना आंदोलन का समय था. रामलीला मैदान के मंच से जब केजरीवाल बोलते तो उसमें कोई नेताओं जैसी बात नहीं होती थी लेकिन उन्हें हर कोई सुनना चाहता था. कभी राजनीति में न जाने की बात करने वाल केजरीवाल जब पार्टी बनाकर राजनीति में उतरे तो ऐसी शानदार एंट्री की कि सभी दंग रह गए. अब 12 साल केजरीवाल फिर से उसी रामलीला मैदान पर लौट रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने रविवार (11 जून) को रामलीला मैदान पर बड़ी रैली बुलाई है. 


शपथ ग्रहण समारोहों को छोड़ दिया जाए तो अन्ना आंदोलन के बाद ये पहला मौका है जब केजरीवाल रामलीला मैदान पर किसी राजनीतिक रैली को संबोधित करने जा रहे हैं. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. उनकी पार्टी कई चुनौतियों का सामना कर रही है. इस बार जब वे रामलीला मैदान पर होंगे तो पहले के कई साथी उनके साथ नजर नहीं आएंगे. कुछ साथ नहीं हैं तो कुछ जेल में हैं, जिनमें सबसे विश्वसनीय और करीबी माने जाने वाले मनीष सिसोदिया भी हैं.


2024 के लिए केजरीवाल का अभियान


आम आदमी पार्टी ने कहा है कि ये रैली केंद्र के उस नए अध्यादेश के खिलाफ जनसमर्थन इकठ्ठा करने के लिए है, जिसके जरिए दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करने की कोशिश की गई हैं. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इसे 2024 के लिए अरविंद केजरीवाल को अभियान की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं.


केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं और ये कोई छिपी बात नहीं रह गई है. दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद 2022 के गुजरात विधानसभा में आप के प्रदर्शन ने केजरीवाल और पार्टी दोनों में काफी जोश भरा है. गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 5 सीटें मिलीं तो पार्टी को 13 फीसदी वोट मिले. इस प्रदर्शन के बाद आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में सफल रही.


दिल्ली का रामलीला मैदान ही क्यों ?


अगर ये कोई और वक्त होता, मंत्रियों पर दबाव न होता, तो शायद केजरीवाल अपना अभियान किसी और राज्य से शुरू करते. लेकिन केजरीवाल को इस मुश्किल समय का अंदाजा है और वे ये भी जानते हैं कि अगर बाकी किलों को जीतना है तो दिल्ली का गढ़ पहले मजबूत करना होगा. यही वजह है कि इस रैली के बहाने उनकी राष्ट्रीय राजनीति में संदेश देने की कोशिश तो होगी लेकिन साथ ही वो अपनी धमक भी दिखाना चाह रहे हैं कि जनता की नजर में बॉस हम ही हैं. एक वजह और भी है. अभी भी अन्य राज्यों में पार्टी का संगठनात्मक ढांचा उस तरह से मजबूत नहीं है कि वह बड़ी रैली को आयोजित कर सके.


2024 की रेस में केजरीवाल पिछड़ रहे


आगामी लोकसभा चुनाव में साल भर से भी कम का वक्त रह गया है. इस समय विपक्षी दल पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे समय में जहां सभी दलों ने अपनी राजनीतिक तैयारियां तेज कर दी हैं, केजरीवाल पिछले 20 दिनों के केंद्र के नए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन पाने के लिए अलग-अलग राज्यों में नेताओं से मिल रहे हैं. रामलीला मैदान में होने वाली रैली केजरीवाल के लिए सही मौका है जिसमें वो खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चैलेंजर के तौर पर दिखा सकें. उनकी पार्टी ने इसके लिए माहौल बनाना भी शुरू कर दिया है. इंडिया टुडे से बातचीत में दिल्ली से आप विधायक दिलीप पांडेय ने कहा, सभी जानते हैं कि मोदी का रथ कौन रोक सकता है.


कांग्रेस से हो पाएगी नजदीकी ?


दिल्ली हो या पंजाब, जहां भी आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई, उसने कांग्रेस को ही हटाकर अपनी जगह तैयार की. यही नहीं, गुजरात विधानसभा में पार्टी को मिले वोट भी बताते हैं कि नुकसान बीजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस को ही हुआ है. आम आदमी पार्टी को 13 फीसदी वोट मिले जबकि 2017 के मुकाबले कांग्रेस को करीब इतने ही फीसदी वोट का नुकसान हुआ. यही वजह है कि केजरीवाल को समर्थन देने पर कुछ नहीं कहा है. हालांकि, केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी को चिठ्ठी लिखी है लेकिन दोनों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में रविवार को होने वाली केजरीवाल की रैली पर सभी की नजर होगी कि वे कांग्रेस को लेकर क्या रुख अपनाते हैं. इस रैली पर इसलिए भी सभी की नजर होगी क्योंकि इसके कुछ दिन बाद 23 जून को बिहार में नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों की बड़ी बैठक बुलाई है. केजरीवाल को भी इसमें न्योता भेजा गया है.


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