Lok Saha Elections Result 2024: 1 जून को जब सातवें चरण का मतदान समाप्त हुआ था तो एग्जिट पोल में अनुमान लगाया गया था कि एनडीए गठबंधन 300 से 400 के बीच सीटें हासिल करेगा. हालांकि, नतीजों ने हर किसी को हैरान कर दिया, क्योंकि बीजेपी 240 पर ही सिमट गई, जबकि NDA अलायंस 300 के आंकड़े को भी नहीं छू पाया. जबकि इंडिया अलायंस ने एग्जिट पोल को गलत साबित किया और करीब 230 सीटों पर बढ़त बना ली है. इंडिया अलायंस की इस एकता वाली जीत में सोनिया गांधी भी अहम किरदार अदा कर गईं.


दरअसल, सोनिया गांधी की चुप्पी को सबसे बड़ा हथियार माना जाता है. इस चुनाव में भी ऐसा ही हुआ. इंडिया अलायंस के बनने के बाद से सीमित मौकों पर ही सोनिया गांधी बोलती हुई दिखाईं दीं, लेकिन जब भी उन्होंने अपनी बात रखी तो इसका असर भी देखने को मिला. 


सोनिया गांधी ने बेटे राहुल के समर्थन में संभाला मोर्चा


77 वर्षीय सोनिया गांधी ने इस बार प्रचार नहीं किया, क्योंकि वह अस्वस्थ थीं और उन्होंने अपने शब्दों और क्षणों का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया. जिस रायबरेली लोकसभा सीट को उन्होंने छोड़ा था, वहां उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के समर्थन में एक रैली को संबोधित किया. उन्होंने लोगों से कहा कि वह अपने बेटे राहुल गांधी को उन्हें सौंपने आई हैं और उम्मीद करती हैं कि मतदाता उनका ख्याल रखेंगे. यह अपील शायद काम कर गई और राहुल गांधी रायबरेली सीट से बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ 3.9 लाख से अधिक मतों से विजयी हो गए हैं. 


एग्जिट पोल को किया था खारिज


सोमवार को नतीजों से एक दिन पहले जब एग्जिट पोल ने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की भारी जीत की भविष्यवाणी की तो उन्होंने उस दौरान भी शांति का परिचय दिया. उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा था कि हमें बस इंतजार करना होगा और देखना होगा. हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे नतीजे एग्जिट पोल के बिल्कुल उलट होंगे. और वह यहां बिलकुल सही साबित हुईं. कांग्रेस ने साल 2019 में अपने 52 के प्रदर्शन के मुकाबले लगभग 100 सीटें हासिल की. 


पर्दे के पीछे से प्रभाव डाल रहीं सोनिया गांधी


सोनिया गांधी अभी भी पर्दे के पीछे से प्रभाव डाल रही हैं, कांग्रेस के शासन के दौरान वह भारत की सबसे शक्तिशाली महिला बनकर उभरी थीं. हालांकि, अब सोनिया गांधी ने राजस्थान के जरिए राज्यसभा में एंट्री ले ली है. कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी ने संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह पार्टी की रणनीति का नेतृत्व करना जारी रखा है. उन्होंने इंडिया ब्लॉक की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लिया और विपक्षी नेताओं को एक साथ जोड़े रखा. उन्होंने टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, एनसीपी नेता शरद पवार और वामपंथी नेताओं सहित विपक्षी नेताओं से बात की. 


मुश्किलों में पार्टी को बचाया


जब कांग्रेस मुश्किलों का सामना कर रही थी, तब भी सोनिया गांधी ने अहम रोल अदा किया था. उन्होंने पार्टी को इससे बाहर निकालने में मदद की. इसका एक हिस्सा अनुभवी मल्लिकार्जुन खरगे को संगठनात्मक बागडोर सौंपना था. वह महिला जिसने जीत और हार में पार्टी को इतनी कुशलता से प्रबंधित किया है, वह राजनीति में प्रवेश करने के लिए सबसे अधिक अनिच्छुक थी. जब कांग्रेस नेताओं ने अक्टूबर 1984 में उनकी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का दबाव डाला तो सोनिया गांधी ने अपने परिवार की सुरक्षा के बारे में डरते हुए उनसे ऐसा न करने की विनती की थी. सात साल बाद उनका डर सच हो गया और मई 1991 में तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान एक आतंकवादी हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.


कांग्रेस के खस्ताहाल दिनों में संभाली बागडोर


सात साल बाद जब पार्टी की केंद्र में खस्ता हालत थी और केवल चार राज्यों में सत्ता में थी, तब वह पार्टी की बागडोर संभालने के लिए सहमत हुई. 2004 में जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो ऐसा लगा कि साउथ ब्लॉक में सर्वोच्च पद पर वहीं आसीन होगी, लेकिन उन्होंने देश को चौंका दिया और मनमोहन सिंह को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार का प्रधानमंत्री चुन लिया. 


सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने दर्ज की कई जीत


सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने 2004 से 2014 तक दो कार्यकालों के लिए केंद्र का नेतृत्व किया और कई राज्यों में सत्ता में वापसी की है. तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष ने समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ सफलतापूर्वक चुनावी गठबंधन करके यह हासिल किया. यूपीए-1 और यूपीए-2 सोनिया गांधी की गैर-बीजेपी ताकतों को एक साथ लाने की क्षमता के बेहतरीन उदाहरण थे. हालांकि, 1998 के पचमढ़ी सम्मेलन में पार्टी द्वारा की गई कांग्रेस के अपने दम पर केंद्र में लौटने की उनकी भविष्यवाणी कभी सच नहीं हुई. सोनिया गांधी ने भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए जबरदस्त बाधाओं का सामना किया है. 


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