Lok Sabha Election: 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला, लेकिन बीजेपी 240 सीटें पाकर बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई. वहीं, दूसरी तरफ I.N.D.I.A गठबंधन ने कड़ी चुनौती देते हुए 234 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, यूपी, हरियाणा और राजस्थान में बीजेपी की सीटों की संख्या में गिरावट के आकलन से पता चलता है कि विपक्ष की जीत में जाट, दलित और मुस्लिम वोटों का अहम योगदान रहा, जिसमें पार्टी का खराब चुनाव प्रबंधन भी शामिल है.


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि, बीजेपी ने अभी तक अपनी चुनाव समीक्षा प्रक्रिया शुरू नहीं की है. इस बीच सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व को निष्कर्ष भेजे जाने से पहले "कई स्तरों पर पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा और आकलन" किया जाएगा और इस प्रक्रिया में महीनों लगने की संभावना है. कई बीजेपी नेताओं ने पार्टी के प्रारंभिक मूल्यांकन के बारे में जानकारी दी कि क्या गलत हुआ हो सकता है.


महंगाई-बेरोजगारी के चलते BJP को 45 सीटों का हुआ नुकसान


वहीं, इन बीजेपी नेताओं का कहना है कि बेरोजगारी और महंगाई के कारण पार्टी को इन तीन राज्यों में 45 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इस खराब प्रदर्शन के कारण बीजेपी ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया. दरअसल, बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी में 62 सीटें जीतीं, लेकिन राज्य में 33 पर सिमट गई. जबकि, राजस्थान में 25 से 14 सीटों पर आ गई और हरियाणा में इसकी संख्या 10 से घटकर 5 ही रह गई.


कार्यकर्ताओं की चेतावनियों को किया नजरअंदाज  


बीजेपी नेताओं का मानना है कि विपक्ष का यह अभियान कि अगर एनडीए 400 से ज़्यादा सीटें जीतती है तो संविधान ख़तरे में पड़ जाएगा. जिससे पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा है. उधर, बीजेपी आलाकमान का मानना था कि "राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और नरेंद्र मोदी जी की लोकप्रियता" पार्टी के सामने आने वाली हर कमी को दूर कर देगी. इस बीच राजस्थान के एक बीजेपी नेता ने बताया कि इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने उम्मीदवारों को चुनते समय जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया.  


बीजेपी से क्यों नाराज हुआ जाट वोटर?


बीजेपी नेताओं ने कहा कि 2020-21 में हुए कृषि आंदोलन और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन से निपटने के सरकार के तरीके ने जाटों में मोहभंग" पैदा किया. पार्टी का आकलन था कि कांग्रेस के लिए कोई फैक्टर नहीं है, बस वो बीजेपी के खिलाफ वोट करना चाहते थे और राजस्थान और हरियाणा में कांग्रेस ही एक विकल्प थी.


बीजेपी नेताओं का मानना है कि राजस्थान में जाटों ने लंबे समय तक बीजेपी का समर्थन जिसमें 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव शामिल है, लेकिन इस बार बीजेपी के खिलाफ समुदाय की भावनाओं के कारण पार्टी को कई जाट-बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. वहीं, यूपी में आरएलडी ने अपनी बागपत और बिजनौर लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की. जबकि, जाट-बहुल सीट मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान भी हार गए. वहीं, हरियाणा में बीजेपी अंबाला, सिरसा, हिसार, सोनीपत और रोहतक जैसी सीटों भी हार गई.


SC/ST सीटों पर BJP की जीत का आंकड़ा घटा


बीजेपी को देशभर में एससी के लिए आरक्षित सीटों पर भी झटका लगा है. 84 एससी सीटों पर इसकी संख्या 46 से घटकर 30 रह गई, जबकि कांग्रेस जिसने पिछली बार ऐसी सिर्फ़ 6 सीटें जीती थीं, इस बार 20 सीटें जीत गई. एसटी सीटों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी की संख्या 31 से घटकर 25 रह गई, जबकि कांग्रेस की सीटें 4 से बढ़कर 12 हो गई. बीजेपी नेताओं का कहना है कि संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विपक्षी इंडिया गठबंधन ने एससी/एसटी समुदाय के बीच अपने चुनावी अभियान को सही तरीके से चलाने में कामयाबी हासिल की है.


BJP का खराब चुनावी प्रबंधन


बीजेपी नेताओं का कहना है कि उत्साही कार्यकर्ताओं की कमी भी खराब प्रदर्शन का एक कारण थी. जिसके कारण बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले शहरी सीटों में मतदान प्रतिशत कम रहा. जिससे शहरी क्षेत्रों में वोटों में 18% की गिरावट आई है और इसका सीधा असर बीजेपी पर पड़ा है. वहीं, राजस्थान, जिसने पिछले लोकसभा चुनाव और हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी को भारी मत दिए थे, वहां जयपुर को छोड़कर, पार्टी के वोट शेयर में सभी 14 सीटों पर गिरावट आई.


इस दौरान बीजेपी नेताओं का मानना है कि चुनाव प्रचार के दौरान कुप्रबंधन ने भी पार्टी की जमीन खिसकने में योगदान दिया. राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी चित्तौड़गढ़ में अपने अभियान में व्यस्त थे. जबकि, हरियाणा में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी सीएम बन गए, जिसके चलते दोनों राज्यों में कोई समन्वय नहीं था.


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