Lok Sabha Elections 2024: CAA के जरिए ममता बनर्जी की टेंशन बढ़ाने का BJP ने बना लिया प्लान, 42 में से 35 सीट जीतने के लिए ऐसी है रणनीति
Lok Sabha Elections 2024: बीजेपी बंगाल में लोकसभा की 35 सीटें जीतने के लक्ष्य से काम कर रही है और उसने सीएए को वहां बड़ा मुद्दा बनाया है.
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Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की टेंशन बढ़ा सकती है. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी यह काम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी कि सीएए के जरिए कर सकती है और पार्टी ने इसके लिए प्लान भी तैयार कर लिया है. राज्य में लोकसभा की कुल 42 में से 35 सीटों पर कब्जा जमाने के लिए खास रणनीति बनाई है.
राजनीतिक विश्लेषकों ने भाजपा की प्रदेश इकाई में आंतरिक मतभेद, सांगठनिक कमजोरियों और वाम-कांग्रेस गठबंधन के फिर से आकार लेने का दावा करते हुए भाजपा के सामने चुनौतियों का उल्लेख किया है. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने राज्य में 18 सीटें जीतकर और 40 प्रतिशत मत हासिल करके शानदार प्रदर्शन किया था और इस बार के चुनाव में उसने 35 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है.
नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ लेना चाहती है BJP
भाजपा यूं तो पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ लेना चाहती है लेकिन वह राज्य में सीएए को भी भुनाना चाहती है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यह कानून भाजपा के लिए एक तरफ फायदेमंद तो दूसरी तरफ चुनौतीपूर्ण भी साबित हो सकता है. उनका मानना है कि सीएए हिंदू समुदाय को एकजुट कर सकता है, वहीं इस पर अल्पसंख्यकों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी आ सकती है.
सुकांत मजूमदार का दावा- हम 35 लोकसभा सीटें जीतेंगे
पश्चिम बंगाल में भाजपा की संभावनाएं काफी हद तक वाम-कांग्रेस गठबंधन के प्रदर्शन पर भी निर्भर करती हैं, जिसे राजनीतिक विश्लेषक राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों में पहले से अच्छी स्थिति में देख रहे हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि पार्टी को न केवल उम्मीद है बल्कि पूरा विश्वास है कि वह राज्य में 35 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करेगी. हालांकि, भाजपा नेताओं के एक वर्ग ने राज्य में लक्ष्य को प्राप्त करने की राह में सामने आने वाली कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की ओर भी इशारा किया.
BJP के सामने पश्चिम बंगाल में क्या हैं चुनौतियां?
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा ने कहा, ‘‘पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती संगठन को व्यवस्थित करना है जो 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से बिखरा पड़ा है. हमारे पास राज्य में 80,000 से अधिक बूथ पर एजेंट नियुक्त करने के लिए लोग नहीं हैं.’’ हाजरा के संबंध मौजूदा प्रदेश भाजपा नेतृत्व के साथ ठीकठाक नहीं माने जाते. उन्होंने दावा किया कि आंतरिक कलह और जमीनी स्तर पर समन्वय की कमी ने राज्य में मजबूती के पार्टी के प्रयासों को बाधित किया है और 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से विभिन्न पराजयों में यह दिखाई दिया है.
ममता बनर्जी के शासन वाले बंगाल में ऐसा रहा BJP का परफॉर्मेंस
2021 के बाद से पार्टी के आठ विधायक और दो सांसद तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं. इनमें से केवल एक सांसद अर्जुन सिंह ने भाजपा में वापसी की है. भाजपा ने 2019 में 40 फीसदी वोट हासिल किये थे. हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनावों में यह प्रतिशत थोड़ा गिरकर 38 प्रतिशत हो गया. 2016 में 10 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी और तीन विधानसभा सीटों से बढ़कर 2021 में 77 सीटों तक पहुंचने के बावजूद, वे सत्ता हासिल करने में विफल रहे.
CAA के जरिए मतुआ बहुल क्षेत्रों में फायदा होने का विश्वास
भाजपा की वोट हिस्सेदारी भबानीपुर उपचुनाव के साथ शुरू हुई जहां उसका वोट शेयर मई 2021 में 35 प्रतिशत से कम होकर उसी साल अक्टूबर में केवल 22 प्रतिशत रह गया और यही स्थिति जारी रही. भाजपा 108 अन्य निकायों के चुनाव में केवल 12.57 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी. पिछले साल के पंचायत चुनाव में वह 22 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ तीसरे स्थान पर रही. उसे मिले मतों की हिस्सेदारी वाम-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन से एक प्रतिशत कम रही. हालांकि, भाजपा नेताओं को बहुसंख्यक समुदाय में ध्रुवीकरण होने से लाभ की उम्मीद है. उन्हें खासतौर पर सीएए के मुद्दे पर मतुआ बहुल क्षेत्रों में फायदा होने का विश्वास है.
भाजपा की राह कठिन करने वाला भी आया सुझाव
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मजूमदार ने कहा, ‘‘सीएए भाजपा को चुनाव में राज्य में अच्छी सफलता दिलाने में मददगार होगा.’’ दूसरी तरफ भाजपा के पास तृणमूल कांग्रेस की तरह सांगठनिक क्षमता नहीं है और वह सीएए के खिलाफ राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के इस अभियान का जवाब देने में कामयाब नहीं होती दिख रही कि यह कानून नागरिकता लेने वाला है. मतुआ समुदाय के अखिल भारतीय महासंघ ने सदस्यों को सलाह दी कि केंद्र में नयी सरकार बनने के बाद ही नए कानून के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करें. यह भी भाजपा के लिए राह कठिन करने वाला सुझाव है.
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