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Exit Polls 2024: कैसे होते हैं एग्जिट पोल, क्या है इसका इतिहास और कितना सटीक बैठते हैं आंकड़े? समझिए पूरी बात
Exit Polls Describe: लोकसभा चुनाव हों या फिर विधानसभा चुनाव, इनके नतीजे आने से पहले एग्जिट पोल के नतीजों का चलन देश में पिछले कई सालों से चलता आ रहा है. कई बार ये गलत भी साबित होते हैं.
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Exit Polls: लोकसभा चुनाव 2024 का सातवां और आखिरी चरण कल यानि शनिवार (01 जून) को संपन्न होने वाला है. सुबह से ही वोटिंग शुरू हो जाएगी और मतदान खत्म होते-होते एग्जिट पोल के नतीजे टीवी चैनल्स पर चलने लगेंगे. हालांकि असली चुनावी नतीजे चुनाव आयोग 4 जून को घोषित करेगा लेकिन एग्जिट पोल में अनुमान लगाना शुरू कर दिया जाएगा कि कौन सी पार्टी सरकार बना रही है और किस राज्य में कितनी सीटें जीतेगी.
देश और दुनिया में कई कंपनियां हैं जो एग्जिट पोल और चुनावी सर्वे का काम करती हैं. अलग-अलग एजेंसियां अपने-अपने आंकड़े देश की जनता के सामने रखेंगी फिर इनका मिलान असली वाले चुनावी नतीजों से किया जाएगा. जिसके आंकड़े इन नतीजों के साथ मेल खाते हुए दिखे वही एग्जिट पोल सही मान लिया जाता है. इन सब के बीच लोगों के मन में कई सवाल भी होते हैं कि आखिर ये एग्जिट पोल होते कैसे हैं, भारत में इसका क्या इतिहास है और इनके आंकड़े कितने सही होते हैं? इन्ही सवालों के उत्तर जानने की कोशिश करते हैं.
भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत कैसे हुई?
सबसे पहले इसकी शुरुआत के बारे में जानते हैं. इसका चलन विदेशों से होते हुए भारत में हुआ. जहां तक भारत की बात है तो इसकी शुरुआत साल 1957 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था. उस समय चुनावी सर्वे किया गया था. ये सर्वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने किया था. इसके बाद 1980 और 1984 के दौरान भी सर्व किया गया.
औपचारिक तौर पर साल 1996 में पहली बार एग्जिट पोल की शुरुआत हुई, जिसे सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) ने दूरदर्शन के लिए किया गया था. इस एग्जिट पोल में बताया गया कि अमुख पार्टी चुनाव जीतेगी और हुआ भी ऐसा ही. जिसके बाद से देश में एग्जिट पोल का चलन बढ़ गया. फिर जब प्राइवेट चैनल अस्तित्व में आए तो साल 1998 में पहली बार किसी निजी चैनल के लिए एग्जिट पोल किया गया.
एग्जिट पोल किए कैसे जाते हैं?
सबसे पहले इस शब्द का मतलब समझते हैं. एग्जिट का मतलब होता है बाहर निकलना, इसी शब्द से समझा जात सकता है कि वोट करने के लिए बाहर निकले मतदाता से उसकी राय ली जाती है कि उसने किस पार्टी या किस उम्मीदवार और किन मुद्दों को लेकर वोट किया है. इसक लिए अलग-अलग एजेंसियां अपने कर्मियों को पोलिंग बूथ के बाहर खड़ा कर देती हैं और जानती हैं कि जनता का मूड क्या है. ये भी एक तरह का सर्वे ही होता है.
आमतौर पर पोलिंग बूथ पर हर 10वें शख्स से या फिर कोई पोलिंग बूथ बड़ा है तो हर 20वें शख्स से सवाल पूछा जाता है. एजेंसियां अपने कर्मियों को पोलिंग बूथ पर इसलिए खड़ा करती हैं क्योंकि मतदाता के मन में ये बात ताजा होती है कि उसने किस प्रत्याशी के लिए वोट किया है.
वोटर्स से मिली जानकारी के आधार पर विश्लेषण किया जाता है, फिर अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि चुनावी नतीजे क्या हो सकते हैं.
एग्जिट पोल के आंकड़े कितने सही?
अब सवाल ये उठता है कि एग्जिट पोल के आंकड़े कितने सही होते हैं. इस बात को गारंटी नहीं है कि एग्जिट पोल के जो नतीजे हों वो सही हों. इस बारे में मशहूर चुनावी विश्लेषक और सीएसडीएस- लोकनीति के सह निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार ने एक कार्यक्रम में उदाहरण देते हुए समझाने की कोशिश की कि इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि एग्जिट पोल के अनुमान मौसम विभाग भविष्यवाणी की तरह होते हैं. कई बार एकदम सटीक बैठते हैं तो कई बार इसके आसपास तो कई बार स्थिति बिल्कुल उलट होती है.
वो बताते हैं कि एग्जिट पोल में दो चीजों का अनुमान लगाया जाता है, एक तो वोट प्रतिशत, दूसरा वोट प्रतिशत के आधार पर पार्टियों को मिलने वाली सीटों का अनुमान लगाया जाता है. इसके साथ वो इस बात को भी दोहराते हैं कि एग्जिट पोल पर भरोसा करने वालों को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि 2004 में सभी एग्जिट पोल्स में बीजेपी की सरकार बनते हुए दिखाई गई थी लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलट.
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