Lok Sabha 2024: अगले साल अप्रैल-मई में संभावित लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के लिए सत्ता में वापसी करना आसान नहीं होगा. इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव एलायंस (INDIA) उनके सामने कड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया. इसमें भी ये पांच ऐसे प्रमुख चेहरे हैं जो मोदी के लिए मुसीबत बनने वाले हैं. 


इनमें सबसे ऊपर हैं बिहार के सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार. इसके बाद दूसरे नंबर पर आती हैं बंगाल की ताकतवर नेता ममता बनर्जी. इसके बाद दिल्ली और पंजाब में अपना डंका बजा चुके आम आदमी पार्टी के कप्तान अरविंद केजरीवाल. दक्षिण के किले में भारतीय राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) के कुशल राजनीतिज्ञ के चंद्रशेखर राव और डीएमके के एमके स्टालिन.


क्या है नीतीश कुमार की ताकत?
सत्ता पक्ष हो या विपक्ष कोई भी गठबंधन में शामिल होने पर नीतीश कुमार कद कभी छोटा नहीं पड़ता है. उसकी एक खास वजह है उनका अपना सॉलिड वोट बैंक. कोई भी चुनाव हो नीतीश कुमार अपनी पार्टी के लिए जिताऊ 22 फीसद वोट जुटा ही लेते हैं. बिहार के साथ-साथ नीतीश कुमार की आंशिक पैठ उत्तर प्रदेश में भी है. जहां बिहार में नीतीश कुमार का 16 फीसद कुर्मी वोट बैंक पर एकाधिकार है. उसी तरह वह यूपी में भी वह 6 फीसद कुर्मी वोटों की सेंधमारी करने में माहिर माने जाते हैं. 


2019 लोकसभा चुनाव में नीतीश नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के साथ थे तो एनडीए ने वहां पर 40 में 39 सीटें जीत ली थीं. अब पासा पलट चुका है. इस बार नीतीश कुमार INDIA के साथ हैं. मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता नींव या यूं कहें इंडिया की शुरुआत नीतीश कुमार की ही पहल पर हुई थी.


मोदी के लिए बड़ी मुसीबत हैं ममता
बंगाल एक ऐसा मजबूत किला है जिसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कुशल राजनीतिक जोड़ी भी पूरी तरह से भेद नहीं पाई है. यहां पश्चिम बंगाल में बीजेपी के वोट बैंक में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव की अपेक्षा गिरावट आई है. इसलिए पीएम मोदी और अमित शाह की चिंता बढ़ना भी लाजमी है.


यह अलग बात है कि इस गिरावट के बावजूद बीजेपी शीर्ष नेतृत्व, खासकर अमित शाह ने यहां की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें हासिल करने का लक्ष्य तय किया है. बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि जब नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए आएंगे तो समीकरण काफी कुछ बदल जाएंगे. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी का वोट फीसद पंचायत चुनाव में करीब 38 फीसद गिरा है.


हालांकि इसके लिए बीजेपी वहां हुई हिंसा को भी जिम्मेदार ठहरा रही है. वहीं लेफ्ट और कांग्रेस एलायंस के वोट प्रतिशत में उछाल आया है. उनका वोट 10 फीसद से बढ़कर 20.80 फीसद तक पहुंच गया है. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को इन चुनाव में बड़ा फायदा हुआ है. टीएमसी को इन चुनाव में 51.14 फीसद वोट मिले हैं. यह अब तक टीएमसी द्वारा किसी भी चुनाव किया गया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. टीएमसी को पिछले विधानसभा चुनाव में 48 फीसद वोट हासिल हुए थे.


केजरीवाल भी करेंगे कमाल
नरेंद्र मोदी के रास्ते में रुकावट डालने में केजरीवाल की भी अहम भूमिका रहेगी. अरविंद केजरीवाल ने जिस मुफ्त की बिजली और पानी की दम पर पहली बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनाई थी. कमोवेश आज सभी विपक्षी पार्टियां यहां तक की राजस्थान में कांग्रेस की सरकार भी इसी राह पर चल रही है. वहां भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह पैतरा अपना रखा है.


आप ने तो इसी के सहारे पंजाब में भी प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार बनाकर सभी विरोधियों को चारो खाने चित कर दिया. अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने यहां पंजाब में 42.01 फीसद वोट हासिल करके सबको चौंका दिया. यहां सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी दूसरी पार्टी रही जिसका आप के बाद वोट फीसद दहाई 22.08 फीसद तक पहुंचा था.


केंद्र में सत्तासीन बीजेपी की स्थिति यहां बहुत दयनीय रही. उसे मात्र 6.60 फीसद ही वोट मिले थे. इतना ही नहीं इसी साल गुजरात में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी आप का प्रदर्शन काफी ठीक रहा. उसने यहां एक अनुमान के अनुसार 12 फीसद के लगभग वोट हासिल किए.


दक्षिण में एमके स्टालिन और केसीआर हैं मजबूत
दक्षिण में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हारने के बाद मोदी सरकार की मुसीबत और अधिक बढ़ गई है. यहां कांग्रेस के साथ-साथ डीएमके के एमके स्टालिन और तेलंगाना में भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) यानी के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की चुनौती से निपटना मोदी के लिए सरकार के लिए आसान नहीं होगा. इसके बावजूद बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में दक्षिण में सर्वाधिक उम्मीदें तेलंगाना से ही हैं.


पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में महज एक सीट जीतने के बावजूद लोकसभा 2019 में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. बीजेपी को यहां 4 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल हुई थी. इस लिहाज से देखा जाए तो उसका असर कुल 21 विधानसभा क्षेत्रों पर पड़ता है. इस साल यहां भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.


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