PM Modi 12 States Visit: एनडीए को चार सौ पार ले जाना है. बीजेपी को 370 सीटें जितवानी हैं. पिछले कुछ महीनों के दौरान अपनी करीब हर रैली में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के करोड़ों कार्यकर्ताओं को यही संदेश देते रहे हैं.


मानते हैं कि पीएम मोदी करिश्माई नेता हैं. जानते हैं कि विपक्ष के पास उनके कद का कोई नेता नहीं है लेकिन क्या सिर्फ इतने से ही लोकसभा चुनाव 2024 की भविष्यवाणी की जा सकती है. आखिर बीजेपी के पास ऐसी क्या रणनीति है. जिससे चार सौ प्लस का कॉन्फिडेंस हाई हो चुका है.


देश भर का दौरा करेंगें पीएम मोदी


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सोमवार (04 मार्च) से 10 दिन के दौरान 12 राज्यों में जाएंगे. इस दौरान 29 से ज्यादा कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे. रैलियां होंगी. रोड शो होंगे. यानी चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले पीएम मोदी देश भर का तूफानी दौरा करने वाले हैं.


चार मार्च को प्रधानमंत्री तेलंगाना में होंगे. उसके बाद पीएम मोदी के तूफानी दौरे में तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, जम्मू-कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली तक शामिल हैं.


बीजेपी की कमजोर कड़ी हैं कुछ राज्य


इनमें कुछ को छोड़ कर बाकी वो राज्य हैं. जहां चुनावों में बीजेपी कमजोर कड़ी साबित होती रही है. चार मार्च को प्रधानमंत्री तेलंगाना के आदिलाबाद में होंगे. कई प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे. जिसके बाद तमिलनाडु का रुख करेंगें. आदिलाबाद और चेन्नई दोनों जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली होगी.


एक हफ्ते के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये दूसरा तमिलनाडु दौरा होगा. दो महीने के दौरान पीएम मोदी तीन बार तमिलनाडु जा चुके हैं. सवाल ये है कि क्या चौबीस में साउथ की राजनीति बदलने वाली है? पिछले डेढ़ महीने के दौरान प्रधानमंत्री देश के बड़े हिस्से का दौरा कर चुके हैं लेकिन बीजेपी का फोकस खासतौर से दक्षिण के राज्यों पर हैं, जिसकी वजह भी है.


क्या है वो वजह?


केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश में कुल 118 सीटें हैं. बीजेपी के पास सिर्फ चार सीटें हैं, जो तेलंगाना में मिली थीं. 2019 में बीजेपी को दक्षिण भारत से लोकसभा के करीब 30 सीटों पर जीत मिली थी, जिसमें अकेले कर्नाटक से 25 सीटें थीं. बीजेपी इस बार भी यह रिकॉर्ड बरकरार रखना चाहती है. इसलिए तमिलनाडु पर फोकस कर रही है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री लगातार दक्षिण का दौरा कर रहे हैं.


पीएम मोदी 27 फरवरी को  केरल और तमिलनाडु के दौरे पर गए थे. डेढ़ महीने के दौरान पीएम मोदी का तमिलनाडु का दूसरा दौरा था. वहीं इस साल ये तीन बार पीएम मोदी केरल का दौरा कर चुके हैं. केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी 2024 के चुनावों में दक्षिण के पॉलिटिकल पासवर्ड को डिकोड कर सकती है? इस सवाल का जवाब तो चुनावों के बाद ही मिलेगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूत तक का दौरा कर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.


साउथ के बाद ओडिशा और बंगाल का रुख


यही वजह है कि तमिलनाडु के बाद प्रधानमंत्री ओडिशा जाएंगे. ओडिशा के चांडीखोल में रैली के साथ की कई प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे. 5 मार्च को ही प्रधानमंत्री कोलकाता पहुंचेंगे. 6 मार्च को कोलकाता में कई प्रोजेक्ट का शिलान्यास और उद्घाटन करेंगे. उसी दिन बारासात में पीएम मोदी की रैली होगी. 6 मार्च को ही पीएम मोदी की बिहार के बेतिया में भी रैली होनी है.


जम्मू-कश्मीर का दौरा


इसके अगले दिन यानी सात मार्च को प्रधानमंत्री जम्मू कश्मीर में होंगे. श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में प्रधानमंत्री की पब्लिक मीटिंग होगी. इसके साथ ही पीएम मोदी का असम और अरुणाचल प्रदेश का दौरा भी है. असम के जोरहाट में प्रधानमंत्री अहोम सम्राज्य के महान सेनापति लाचित बोड़फुकन की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. इसके अगले दिन यूपी और फिर गुजरात का दौरा करेंगे.


दिल्ली में बीजेपी का गणित


भारतीय जनता पार्टी ने अपने लिए 370 और एनडीए के लिए 400 प्लस लोकसभा सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. यही वजह है कि तमाम मुलाकातों और बैठकों में हुए मंथन के बाद पहली लिस्ट जारी की गई. दिल्ली में पांच उम्मीदवारों मे से चार नए चौकाने वाले नाम है. सवाल ये है कि दिग्गजों की बजाय नए चेहरों पर दांव लगाने के पीछे वजह क्या है.


दिल्ली में 4 सांसदों के टिकट काट दिए गए. इनमें चांदनी चौक से प्रवीण खंडेलवाल. पश्चिमी दिल्ली से कमलजीत सेहरावत. दक्षिण दिल्ली से रामवीर सिंह बिधूड़ी और नई दिल्ली सीट पर बांसुरी स्वराज को तवज्जो दी गई. दिल्ली में पांच सीटों का ऐलान किया गया. पुराने उम्मीदवारों में सिर्फ मनोज तिवारी की ही सीट बच पाई है.


पुराने नाम क्यों किए गए डिलीट


ये तो बात सियासी है लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली की लिस्ट से पुराने नाम क्यों डिलीट किए गए. इनमें सबसे बड़ा नाम डॉ हर्षवर्धन का है. हर्षवर्धन लगातार दो बार से चांदनी चौक सीट से सांसद थे. इस बार उनकी जगह प्रवीण खंडेलवाल को टिकट दिया गया है. प्रवीण खंडेलवाल वैश्य हैं. चांदनी चौक में वैश्य वोटर निर्णायक है लेकिन डॉ हर्षवर्धन का टिकट क्यों कटा गया.


हर्षवर्धन कोरोना काल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे जानकारों के मुताबिक, कोविड के दौरान हेल्थ मिनिस्टरी उस तरह से एक्टिव नहीं रही, जैसी रहनी चाहिए थी. टिकट कटने के बाद डॉक्टर हर्षवर्धन ने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया है. कुछ ऐसा ही किस्सा दिल्ली के एक और दिग्गज रमेश विधूड़ी का भी है. रमेश विधूड़ी दक्षिण दिल्ली से सांसद थे. इस बार रामबीर सिंह विधूड़ी कैंडिडेट हैं.


रामवीर सिंह बिधूड़ी भी गुर्जर समाज से ही आते हैं. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे थे लेकिन रमेश विधूड़ी का टिकट क्यों काटा गया. रमेश बिधूड़ी अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में रहे थे. पिछले साल एक मौजूदा सांसद के बारे में सदन के भीतर ही उनकी विवादित टिप्पणी से खूब बवाल हुआ था.


रमेश विधूड़ी के टिकट कटने की यही वजह मानी जी रही है. ठीक इसी तरह पश्चिमी दिल्ली से प्रवेश वर्मा को भी इस बार टिकट नहीं दिया गया है. प्रवेश वर्मा की जगह कमलजीत सहरावत को उम्मीदवार बनाया है. कमलजीत सहरावत दो दशक से पॉलिटिक्स में हैं. दक्षिण दिल्ली नगर निगम की मेयर रही हैं. एमसीडी में बीजेपी की सबसे अनुभवी पार्षदों में से हैं.


पश्चिमी दिल्ली सीट पर पंजाबी और जाट वोटर का दबदबा है. कमलजीत सहरावत जाट समाज से ही आती हैं. बीजेपी ने दिल्ली के लिए जो पांच उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से एक ब्राह्मण, एक जाट, एक वैश्य, एक गुर्जर समुदाय और एक पूर्वांचल के हैं. जिससे साफ है कि नए चेहरों को मौका देने के साथ ही जातीय समीकरण साधने की भी पूरी कोशिश की गई है लेकिन सवाल यै है कि दिल्ली में बीजेपी ने नए चेहरों पर दांव क्यों लगाया. जवाब है कांग्रेस और आम आदमी पार्टी.


दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रही है. दोनों पार्टिय़ों में सीटों का बंटवारा हो चुका है. आम आदमी पार्टी अपने कैंडिडेट का ऐलान भी कर चुकी है. दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं. 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सातों सीटों पर एकतरफा जीत हासिल की. पिछले चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर सभी 7 सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा था.


2019 के चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अलग अलग मैदान में थी. बीजेपी को करीब 57 परसेंट वोट मिले थे. कांग्रेस को साढ़े बाइस फीसद और आम आदमी पार्टी को 18 परसेंट के करीब वोट मिले थे. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को मिले वोटों को मिला भी दें तो करीब 41 परसेंट होते हैं.


अब अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर यही वोटिंग पैटर्न रहा तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ आने से भी बीजेपी की सेहत पर कुछ खास असर पड़ता नहीं नजर आ रहा है लेकिन चार सौ प्लस का टारगेट लेकर चुनावी मैदान में उतरी बीजेपी कोई चांस नहीं लेना चाहती है.


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