Lok Sabha Elections 2024: ‘मां के अंतिम संस्कार के लिए नहीं मिली थी पैरोल’, तानाशाही के आरोप पर राजनाथ सिंह ने क्यों कहा ये
Rajnath Singh Remembers Emergency Period: राजनाथ सिंह ने कहा कि जो लोग केंद्र सरकार पर तानाशाह होने का आरोप लगा रहे हैं वो शायद इंदिरा गांधी के आपातकाल वाले दौर को भूल चुके हैं.
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Rajnath Singh On Tanashahi Charges: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के मतदान से पहले कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं. इसका जवाब देते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले दौर को याद किया, जब देश आपातकाल के दौर को याद किया और कहा कि उन्हें तो अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल भी नहीं मिला.
जून 1975 में जब इंदिरा गांधी सरकार की ओर से आपातकाल लगाया गया था तब राजनाथ सिंह 24 साल के थे. आपातकाल के खिलाफ जेपी आंदोलन के दौरान उन्हें मिर्ज़ापुर-सोनभद्र का संयोजक बनाया गया था. उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, ““मुझे आपातकाल के दौरान अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं दी गई थी और अब वे हमें तानाशाह कहते हैं. मैं उनके अंतिम दिनों में उनसे मिल भी नहीं सका था जब वह 27 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थीं. उनकी मृत्यु के बाद मैंने जेल में अपना सिर मुंडवाया, लेकिन उनके अंतिम संस्कार के लिए नहीं जा सका.”
राजनाथ ने याद किया वो दौर
उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और जेल जाने के उस दौर को याद करते हुए कहा, “मेरी नई-नई शादी हुई थी और पूरा दिन काम करने के बाद घर लौटा था. मुझे बताया गया कि पुलिस आई थी. उन्होंने मुझे बताया कि एक वारंट था. आधी रात के करीब था और मुझे जेल ले जाया गया. मुझे एकान्त कारावास में रखा गया था.” उन्होंने कहा कि कैदियों के लिए कोई किताबें उपलब्ध नहीं कराई गईं और उन्हें पीतल के बर्तन में दाल दी गई और चपाती दी गई.
आपातकाल को बताया काला अध्याय
यह पहली बार नहीं है जब राजनाथ सिंह ने आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला है. पिछले महीने, एनडीटीवी डिफेंस समिट में बोलते हुए उन्होंने आपातकाल को भारत के इतिहास में एक 'काला अध्याय' कहा था. उन्होंने कहा कि आपातकाल के अलावा भारत में प्रेस की आजादी पर कभी रोक नहीं लगी.
उन्होंने कहा था, “लेख प्रकाशित होने से पहले पढ़े जाते थे, हेडलाइन्स पार्टी के मुख्यालय से निर्धारित की जाती थीं और सरकार का विरोध करने पर पत्रकारों को जेल भी भेजा गया. सिर्फ जेल ही नहीं, मैं खुद आपातकाल के दौरान जेल में रहा हूं, (कई) पत्रकारों को भी परेशान किया गया था.”
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