Lok Sabha 2024: लोकसभा चुनाव 2024 की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे सत्ता पक्ष और विपक्ष की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं. राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है और सभी पार्टियों ने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी है. नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के जवाब में विपक्ष ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस (इंडिया) का गठन कर कड़ी चुनौती पेश की है. 


इसके बावजूद पिछले दो आम चुनाव में जीत दर्ज करने वाली बीजेपी ने 2019 के सफलता के मंत्र पर मनन करना शुरू कर दिया है. बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में जिन जातियों की बदौलत सफलता का परचम लहराया था, उन्हीं को साधने में वह फिर से जुट गई है. 


ये हैं वो जातियां जिनका रहेगा असर
हिंदी भाषी राज्यों में जिन जातियों का वर्चस्व रहता है, उनमें अपर कास्ट के अलावा, ओबीसी, एसटी और दलित हैं. अगर 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डाली जाए तो बीजेपी को दलित वोट बहुत कम मिला था. इसलिए इस बार भी उसका फोकस दलित बिरादरी पर कम ही रहेगा. एक बात यहां ध्यान देने योग्य है कि हिंदी भाषी राज्यों में सिर्फ बिहार ही एक ऐसा प्रदेश था जहां पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को सर्वाधिक दलित वोट मिले थे. हालांकि इसका सारा श्रेय रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोकजन शक्ति पार्टी (एलजेपी) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जाता है. नीतीश ने अब बीजेपी का साथ छोड़ विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया का दामन थाम लिया है.


अपर कास्ट के अलावा एनडीए को ओबीसी और एसटी का भी भरपूर समर्थन मिला था. हालांकि विधानसभा चुनाव में इन तीनों कास्ट का वोट बीजेपी को उतना नहीं मिला था, जितना लोकसभा में मिला. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में अधिक ओबीसी, एससी-एसटी और दलित के वोट मिले थे. बीजेपी की कुछ नीतियों और मोदी मैजिक ने लोकसभा में इन वोटों का गणित बदल दिया था. 


हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी का वर्चस्व
अपर कास्ट, ओबीसी और एसटी की बदौलत पिछले 2019 लोकसभा चुनाव के बाद लोकनीति- सेंट्रल फार द स्टडी आफ डेवलेपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार बीजेपी के नेतृत्व में हिंदी भाषी राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की 225 में से 203 सीटों पर एनडीए ने कब्जा किया था. इसी सफलता को ध्यान रखते हुए इस बार भी बीजेपी के लिए ये जातियां तुरुप का इक्का साबित होंगी. जिसके लिए उसने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. 


मध्यप्रदेश में इन जातियों ने चुनाव में बदले समीकरण
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी को अपरकास्ट का वोट 58 फीसद मिला था. वहीं कांग्रेस को 33 फीसदी और अन्य को 9 फीसदी. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अपरकास्ट का वोट 75 फीसदी मिला था. उसे सीधा 17 फीसदी का फायदा मिला था. वहीं कांग्रेस को 20 फीसदी और शेष अन्य के खाते में गया. 


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी का 48 प्रतिशत वोट मिला था. कांग्रेस को 41 फीसदी और अन्य को 11 फीसदी मिला. वहीं 2019 लोकसभा में बीजेपी को ओबीसी का 66 फीसदी. कांग्रेस को 27 फीसदी और अन्य को 7 फीसदी वोट मिले. इस तरह बीजेपी को महज एक साल के अंतराल में 18 फीसदी वोटों का लाभ मिला. इसी प्रकार 2018 विधानसभा में बीजेपी को एससी के 33 फीसदी वोट मिले. जबकि कांग्रेस को 49 फीसदी और अन्य को 18 फीसदी मिले. इसकी तुलना में 2019 लोकसभा में बीजेपी को एससी के 38 फीसदी.


वहीं कांग्रेस को 50 और अन्य को 12 फीसदी वोट मिले थे. इस तरह बीजेपी को 5 फीसदी और कांग्रेस को एक फीसदी वोटों का फायदा मिला था. 2018 विधानसभा में बीजेपी को एसटी के 30 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को 40 फीसदी और अन्य को 30 फीसदी मिले. इसकी तुलना में 2019 में बीजेपी को 54 फीसदी और कांग्रेस को 38 प्रतिशत और अन्य को 8 फीसदी वोट हासिल हुए. बीजेपी को 24 फीसदी का बड़ा फायदा हुआ था. 2018 में बीजेपी को मुस्लिम वोट 15 फीसदी और कांग्रेस को 52 फीसदी तथा अन्य को 33 फीसदी वोट मिले. वहीं 2019 लोकसभा में बीजेपी को 33 फीसदी और कांग्रेस को शेष 69 फीसदी वोट मिले. 


राजस्थान में जाटों ने बदली थी लोकसभा में तस्वीर
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में पिछड़ने वाली बीजेपी को जाटों को रूप में बड़ी संजीवनी मिली थी. जिसका श्रेय हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को भी जाता है. इसी की बदौलत एनडीए का जाट वोट बैंक 2018 विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा 2019 में बढ़कर 85 फीसदी हो गया था. एनडीए को यहां एक साल में 59 फीसदी वोटों का फायदा हुआ था. वह इसलिए कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां जाट वोट महज 26 फीसदी ही मिले थे. 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राजपूत वोट 53 फीसदी और कांग्रेस को 35 प्रतिशत तथा अन्य को 12 फीसदी वोट मिले थे. 


2018 ओबीसी वोट बीजेपी के खाते में 46 फीसदी, कांग्रेस को 38 और अन्य को 16 फीसदी मिले थे. वहीं 2019 लोकसभा में बीजेपी को ओबीसी का 72 फीसदी, कांग्रेस को 23 और अन्य महज 5 फीसदी वोट मिले. इसी प्रकार 2018 विधानसभा में बीजेपी को एससी वोट 34 फीसदी, कांग्रेस को 39 और अन्य को 27 फीसदी मिले थे. वहीं 2019 लोकसभा में बीजेपी को 39 फीसदी, कांग्रेस को 54 और अन्य को 7 फीसदी. यहां 2018 विधानसभा चुनाव में एसटी वोट बीजेपी को 40 फीसदी, कांग्रेस को 41 और अन्य 19 फीसदी वोट थे. इसकी तुलना में 2019 लोकसभा में बीजेपी को एसटी वोट 55 फीसदी, कांग्रेस को 38 और अन्य को 7 फीसदी मिले. 


यूपी में ब्राह्मण, वैश्य, जाट और राजपूत ने दिया बीजेपी का साथ
उत्तर प्रदेश में अपर कास्ट के साथ अन्य जातियों ने भी बीजेपी का खुलकर साथ निभाया. जिसकी बदौलत एनडीए ने प्रदेश की 80 सीटों में से 64 सीटों पर कब्जा जमाया था. 2019 लोकसभा चुनाव में ब्राह्मणों का 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिला था. वहीं कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी तथा महागठबंधन को भी 6 प्रतिशत वोट मिले थे. बीजेपी को राजपूतों का भी साथ मिला. बीजेपी को 89 फीसदी राजपूत वोट मिले थे. 


इसके अलावा जाटों का सर्वाधिक 91 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में गया था. हालांकि इस बार यह वोट कुछ हद तक खिसकता हुआ नजर आ रहा है. वैश्य वोट बीजेपी के खाते में 70 फीसदी गया. जबकि कांग्रेस को महज 13 व महागठबंधन को 4 फीसदी वोट मिले. इसके अतिरिक्त अन्य ओबीसी के 72 फीसदी वोट बीजेपी के पक्ष में गए थे. जबकि महागठबंधन को 18 फीसदी मिले थे. वहीं यादव वोट बीजेपी के खाते में 23 फीसदी गया था. जबकि 60 फीसदी महागठबंधन के हिस्से आया था. पिछली बार कुर्मी वोट 80 फीसदी बीजेपी के खाते में और 14 फीसदी महागठबंधन के हिस्से में आए थे. बीजेपी को इन वोटों का लाभ नीतीश कुमार की बदौलत मिलना माना जा रहा है. 


बिहार में एनडीए को मिला था नीतीश और पासवान का लाभ
पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार में नीतीश कुमार और रामबिलास पासवान एनडीए के साथ थे. जिसका पूरा लाभ एनडीए को मिला था. इस बार नीतीश बीजेपी के विपक्षी खेमे में हैं. इसका कितना असर वोट कास्ट पर पड़ेगा, यह तो आने वाले चुनाव नतीजे ही बता पाएंगे. कास्ट वोटों पर नजर डाली जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपर कास्ट का 65 फीसदी वोट मिला था. वहीं यूपीए को 5 फीसदी और अन्य को 30 फीसदी वोट मिले थे. वहीं यादव वोट एनडीए को 21 और यूपीए को 55 फीसदी और अन्य को 24 फीसदी मिले. एनडीए को कुर्मी वोट 70 फीसदी मिले थे. इसका पूरा श्रेय एनडीए में शामिल हुए सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार को ही जाता है. यूपीए को कुर्मी वोट मात्र 7 फीसदी मिला था और अन्य के खाते में 23 फीसदी वोट गए. एनडीए को एससी 76, यूपीए को 5 और अन्य को 19 फीसदी वोट मिले. 


झारखंड में आदिवासियों के बंटवारे का एनडीए को मिला लाभ
झारखंड में एनडीए को आदिवासी वोटरों के बंटवारे का बहुत फायदा मिला था. यहां कांग्रेस ने महागठबंधन, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और जेवीएम और आरजेडी के साथ मिलकर एलायंस बनाया था. इसके बावजूद एनडीए ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया. आदिवासी वोटर हिंदू और क्रिश्चियन समूह में बंट गए थे. जिसमें से 65 फीसदी हिंदू आदिवासियों ने एनडीए को वोट किया और 29 फीसदी ने यूपीए को. वहीं क्रिश्चियन आदिवासियों ने एनडीए को 33 और यूपीए के पक्ष में 56 फीसदी वोट किए थे. बीजेपी को यहां कांग्रेस की तुलना में काफी फायदा हुआ. 


छत्तीसगढ़ में बीजेपी के प्रदर्शन ने चौंकाया
सर्वे एजेंसी सेंट्रल फार द स्टडी आफ डेवलेपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) के अनुसार छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी का प्रदर्शन अपेक्षा से ज्यादा बेहतर रहा. यहां युवाओं, महिलाओं और दलितों ने बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में बेहतर रिस्पांस किया. हालांकि यहां पर एजेंसी को निश्चित आंकड़े नहीं उपलब्ध हो पाए थे. 


उत्तराखंड में मोदी मैजिक से बढ़ा बीजेपी का वोट बैंक
जैसी लोकसभा चुनाव के पूर्व अपेक्षा की जा रही थी. उत्तराखंड में बीजेपी का प्रदर्शन कमोवेश वैसा ही रहा. जातिगत वोटबैंक के आंकड़े तो स्पष्ट नहीं मिले. बहरहाल बीजेपी ने यहां पांचों सीटें जीतकर प्रतिद्वंदियों का सूपड़ा साफ कर दिया था. बीजेपी को यहां कुल 60.7 फीसदी वोट मिले थे. यह वोट 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 5 फीसदी अधिक थे. इस लिहाज से देखा जाए तो आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी अपना यह प्रदर्शन दोहरा सकती है. उत्तराखंड में फिलहाल जातीय समीकरण ज्यादा मायने नहीं रखते हैं.  


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