PM Narendra Modi: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नायकोंं में बाल गंगाधर तिलक ऐसा नाम हैं, जिनका नाता शायद ही कभी किसी विवाद से रहा हो. अपनी साफ-सुधरी और ओजस्वी छवि के कारण वह हर किसी के अजीज थे. बचपन में बाल गंगाधर तिलक के नाम से पहचाने जाने वाले महान विद्वान का मूल नाम बहुत कम ही लोगों को पता होगा. इनका मूल नाम केशव गंगाधर तिलक था. कुछ लोग इन्हें बचपन में बाल लोकमान्य के नाम से भी पुकारते थे.
इनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था. जबकि देहावसान 1 अगस्त 1920 में महाराष्ट्र में ही हुआ था. आज मंगलवार (1 अगस्त) को उनकी पुण्यतिथि है. उनकी पुण्यतिथि पर ही लोकमान्य तिलक पुरस्कार देने की परंपरा का आगाज हुआ था.
ऐसे बने लोकमान्य तिलकः आजादी के संग्राम में अपने कौशल और बुद्धि से अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले और अपने नए विचारों से लोगों को अवगत कराने वाले बाल गंगाधर ने वकालत भी पढ़ी थी. इसके अलावा वह राष्ट्रवादी, शिक्षक और समाज सुधारक भी थे. इस कारण वह सबके प्रिय थे. इसी कारण उन्हें लोकमान्य (सबको प्रिय) की पदवी भी प्राप्त हुई. फिर अंत तक वह इसी लोकमान्य तिलक के नाम से पुकारे जाते रहे. उनके इसी नाम पर मुंबई में एक रेलवे स्टेशन का भी नाम रखा गया है. अपने ज्ञान से अंग्रेजों को पस्त करने के कारण ही अंग्रेज उन्हें अशांति का पिता कहकर पुरकारते थे.
देश के दिग्गज हो चुके हैं सम्मानितः इस पुरस्कार की गरिमा और महत्व का अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि अभी तक जिनको भी यह सम्मान मिला है, उन्होंने भारत के निर्माण और उसे आगे ले जाने में कुछ न कुछ योगदान अवश्य दिया है. इनमें प्रमुख रूप से पूर्व प्रधानमंत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति और देश को मेट्रो की सौगात देने वाले मेट्रो मैन के नाम विख्यात ई. श्रीधरन जैसी हस्तियां शामिल हैं.
ऐसे हुई पुरस्कार की स्थापनाः इस पुरस्कार की स्थापना लोकमान्य तिलक की विरासत का सम्मान करने के उद्देश्य से की गई थी. तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट पहले से ही उनके नाम पर बना हुआ था. उसी ने 1983 में इस पुरस्कार के लिए एक समिति का गठन किया. यह सम्मान उन्हीं को दिया जाता है जिन्होंने देश की उन्नति के लिए कुछ काम किया हो. इसी उद्देश्य के साथ यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि पर 1 अगस्त को दिग्गज हस्तियों को प्रदान किया जाता है.
स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकारः आजादी के संघर्ष के दिनों में उनका एक नारा जोकि मराठी में था, बहुत प्रचलित हुआ था. जिसमें उन्होंने कहा था कि “आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है मैं उसे लेकर रहूंगा”. इसके अलावा उन्होंने बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविंद घोष और वीओ चिदंबरम पिल्लै के साथ मिलकर स्वराज की लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
आजादी के नायक ने दो अखबार भी निकाले थेः लोकमान्य तिलक स्वराज के सर्वप्रथम अधिवक्ता भी रहे. कई भाषाओं के ज्ञानी तिलक ने आजादी की लड़ाई के दौरान दो अखबार भी निकाले थे. अंग्रेजी में मराठा और मराठी में केसरी. केसरी अखबार में अंग्रेज हुकूमत की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी हीन भावना की खुलकर आलोचना करते थे. इसकी वजह से उन्हें गई बार जेल भी जाना पड़ा.
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