लोकसभा के नेता विपक्ष के बिना हो लोकपाल का चयन: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोकपाल एक्ट में लंबित संशोधन के नाम पर कानून पर अमल न करना सही नहीं है. कानून अपने मौजूदा स्वरूप में लागू करने योग्य है. देश में लोकपाल की नियुक्ति होनी चाहिए.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस मांग को मानने से मना कर दिया है कि लोकसभा में फिलहाल कोई नेता विपक्ष न होने के चलते कोर्ट सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को लोकपाल चयन समिति में रखने का आदेश दे. कोर्ट ने कहा- कानून में बदलाव संसद में लंबित है. हम संसद के काम में कोई दखल नहीं देंगे.
कोर्ट के मुताबिक अगर अभी लोकसभा में कोई नेता विपक्ष नहीं तो चयन समिति उनके बिना भी काम कर सकती है. लोकपाल और दूसरे सदस्यों का चयन कर राष्ट्रपति को सिफारिश दे सकती है. इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है.
ये मामला एनजीओ कॉमन कॉज़ ने दायर किया था. एनजीओ की तरफ से वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने कहा था कि लोकपाल कानून को 16 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिली. लेकिन अभी तक लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ है. उन्होंने मांग की थी कि सीवीसी, सीबीआई डायरेक्टर के चयन की तरह लोकपाल की चयन समिति में भी लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को जगह दी जाए.
सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि उसे ऐसा करने में एतराज़ नहीं है. लेकिन एक्ट में संशोधन किए बिना ऐसा नहीं हो सकता. संशोधन अभी संसद में लंबित है.
जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने माना है कि कानून बनाना और उसमें संशोधन करना संसद का विशेषाधिकार है. कोर्ट उसमे दखल नहीं दे सकता.हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि संशोधन लंबित होने का ये मतलब नहीं कि कानून को मौजूदा स्वरूप में लागू नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि लोकपाल एक्ट में सेलेक्शन कमिटी में 5 सदस्यों को जगह दी गयी है. उसमें लोकसभा में नेता विपक्ष भी शामिल है. लेकिन अगर कोई नेता विपक्ष नहीं है तो भी चयन समिति काम कर सकती है. चयन समिति के बाकी 3 सदस्य पीएम, लोकसभा स्पीकर और चीफ जस्टिस बैठ कर चौथे सदस्य जाने-माने कानूनविद का चयन करें. फिर चारों मिलकर लोकपाल का चयन