नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है. इस चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ जब पार्टी 300 के पार पहुंची. साल 2014 में बीजेपी जहां सिर्फ 282 सीटों पर कब्जा कर पाई थी वहीं इस बार ये आंकड़ा 300 सीटों को भी पार कर गया. ये पहली बार हुआ जब बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिले हैं. भाजपा की लहर इतनी प्रचंड थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने परिवार के गढ़ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए हालांकि वह केरल में वायनाड से जीत गए. लेकिन इस बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने वंशवाद और जाति राजनीति पर से लोगों का भरोसा उठा दिया और इस भरोसे को पीएम मोदी की प्रचंड जीत ने सच कर दिखाया जो पूरी तरह से बिहार के महागठबंधन पर भारी पड़ी.
अखिलेश, तेजस्वी और मायावती पर भारी पड़ा ब्रांड मोदी
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बावजूद भाजपा को निर्णायक बढ़त मिली. क्षेत्रीय पार्टियों पर एनडीए की बड़ी जीत अब इन पार्टियों के भविष्य पर सवाल खड़ कर रही है. इस चुनाव में पहली बार बिहार और यूपी के वोटर्स ने जातीय समूह से बाहर निकलकर मोदी को चुना. बता दें कि ये मोदी का ही करिश्मा है जहां बिहार की क्षेत्रीय दलों के जातीय समीकरण काम नहीं कर पाया. मोदी लहर पर सवार भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें जीती हैं. इसके अलावा बसपा ने 11, सपा ने 6, अपना दल-सोनेलाल ने 1 और कांग्रेस ने एक सीट जीती है.
बिहार की अगर बात करें तो किसी जमाने में यादव- मुस्लिम समीकरण के आगे कोई पार्टी या नेता टिक नहीं पाते थे. यही हाल यूपी के सपा- बसपा के साथ भी था. लेकिन अब ये सबकुछ बदलता जा रहा है. इस चुनाव में अति पिछड़ों और अति दलितों ने कई मायनों में मोदी को वोट दिया है. इससे बुआ- बबुआ का कायापलट तो हुआ ही वहीं लालू के बिना चुनाव लड़ रहे दोनों बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप भी मोदी के सामने टिक नहीं पाए.
बिना पिता के बेटों ने लड़ा चुनाव
ये पहला ऐसा लोकसभा चुनाव था जब अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव बिना मुलायम सिंह और लालू यादव के बिना चुनाव लड़ रहे थे. दोनों के लिए इस चुनाव में सबसे बड़ा टारगेट अपने वोट को बचाना था लेकिन नतीजे दोनों के खिलाफ आए.
अखिलेश यादव ने जातीय कार्ड को खेलते हुए बीएसपी और आरएलडी के साथ गठबंधन किया लेकिन यहां महागठबंधन को सिर्फ 20 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ा तो वहीं एसपी के खाते में मात्र 8 सीटे ही आई. वहीं यादव परिवार के अक्षय यादव और धर्मेंद्र यादव जहां फिरोजाबाद और बदायूं से चुनाव लड़ रहे थे दोनों को हार का मुंह देखना पड़ा. इन नतीजों के बाद ये कहना सही होगा कि अखिलेश यादव को अपने ही गढ़ में हार का मुंह देखना पड़ा.
वहीं बिहार की अगर बात करें तो तेजस्वी ने महागठबंधन के लिए जमकर प्रचार किया लेकिन पार्टी वोट नहीं जुटा पाई. पार्टी को 40 सीटों में से मात्र 2 सीट मिले. वहीं पाटलीपुत्र से भी मीसा भारती को निराशा हाथ लगी. बीजेपी ने जिस तरह की जीत हासिल की है, वह साबित करती है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है, जो जातियों से परे अपनी आकांक्षाओं के आधार पर वोट कर रहा है. वहीं यूपी और बिहार के नतीजों ने पूरी तरह से वंशवाद और क्षेत्रीय राजनीति को नकार दिया है.