विपक्ष की दूसरी बैठक से पहले बीजेपी ने गठबंधन कर बदल डाले कई राज्यों के समीकरण?
विपक्षी एकजुटता को देखते हुए एनडीए ने भी एक सप्ताह में 6 नए दलों को अपने साथ जोड़ लिया है. इन पार्टियों का एनडीए के साथ जुड़ने के साथ ही बीजेपी ने राज्यों के जातीय समीकरण भी बदल दिया हैं.
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा चर्चा का मुद्दा होगा कि कितनी विपक्षी पार्टियां बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के खिलाफ गठबंधन में शामिल हैं. इस एकता की नींव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पहल पर शुरू की गई है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अब इसमें साथ आते दिखाई दे रही हैं. लेकिन अभी सब कुछ फाइनल नहीं किया जा सका है.
आज और कल यानी 17-18 जुलाई को विपक्षी एकता की दूसरी बैठक है. दो दिवसीय बैठक पर सबकी निगाहें टिकी हुई है, क्योंकि बीजेपी के खिलाफ लड़ने का फॉर्मूला इसी बैठक में तय किया जा सकता है.
हालांकि पहली बैठक और दूसरी बैठक के बीच राजनीतिक समीकरण लगभग बदल गए हैं. एक तरफ जहां विपक्षी एकता में बड़े नेता के तौर पर देखे जाने वाले शरद पवार की पार्टी एनसीपी टूट चुकी है और फिलहाल पवार अपनी पार्टी को बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के मुकाबले एनडीए की ताकत दिखाने के लिए बीजेपी ने एक सप्ताह में 6 नए दलों को अपने साथ जोड़ लिया है. इन पार्टियों का एनडीए के साथ जुड़ने के साथ ही बीजेपी ने कई राज्यों के जातीय समीकरण भी बदल दिए हैं.
विपक्षी एकता की दूसरी बैठक बेंगलुरु में है और इस बार एनसीपी नेता शरद पवार भी हिस्सा होंगे तो वहीं उनके भतीजे अजीत पवार दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक में शामिल होंगे. ठीक इसी तरह अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल 18 जुलाई को होने वाले बैठक में शामिल होंगी तो वहीं मीडिया में छपी कुछ खबरों की मानें तो अपना दल में दूसरे गुट की अध्यक्ष और अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल विपक्ष की बैठक में जा सकती हैं. इसके अलावा विपक्षी एकता की पहली शामिल हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल अब एनडीए बैठक में शामिल होंगे.
ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्षी एकजुटता की दूसरी बैठक से पहले एनडीए ने किन राज्यों का जातीय समीकरण बदलकर रखा है और इससे विपक्ष को कितना नुकसान हो सकता है?
पहले जानते हैं एनडीए में जुड़ने वाले 6 दल कौन कौन से हैं
पटना बैठक में शामिल हुए कई पार्टियों ने दूसरे बैठक से पहले एनडीए का हाथ थाम लिया है. जिसके बाद महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश इन तीन राज्यों में बीजेपी को नए सहयोगी मिल गए हैं. एनडीए में पहले से ही 24 दल शामिल थे. अब नए 6 दलों के जुड़ने के बाद इस पार्टी में दलों की संख्या 30 हो गई है. इन नए 6 दलों में के नाम हैं, अजीत गुट की एनसीपी, लोकजनशक्ति पार्टी (चिराग गुट), जेडीयू की सहयोगी हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा , आरएलएसपी (उपेंद्र कुशवाहा), वीआईपी (मुकेश सहनी) और सुभासपा (ओमप्रकाश राजभर).
इन पार्टियों से पहले एनडीए में ये 24 दल थे शामिल
शिवसेना शिंदे गुट, अन्नाद्रमुक, एनपीपी, एनडीपीपी, जेजेपी, एसकेएम, बीपीपी, आईएमकेएमके, आईटीएफटी, आजसू, एमएनएफ, तमिल मनीला कांग्रेस, पीएमके, अपना दल एस, एमजीपीस, एजीपी, लोजपा, निषाद पार्टी, यूपीपीएल, अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस पुदुचेरी, अकाली दल ढ़ीडसा, आरपीआई और पवन कल्यान की जनसेना.
बीजेपी ने गठबंधन कर इन राज्यों का बदला जातीय समीकरण?
उत्तर प्रदेश की 32 लोकसभा सीटों पर पड़ेगा असर: ओबीसी नेताओं में बड़ा चेहरा माने जाने वाले ओम प्रकाश राजभर बीते शनिवार एनडीए में शामिल हो गए. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजभर का एनडीए में शामिल होना बीजेपी के चुनावी अभियान को और भी मजबूती देने का काम करेगा.
दरअसल इस चुनाव से पहले बीजेपी का हिंदी पट्टी में पिछड़ी जातियों के बीच पैठ बनाना बेहद जरूरी है क्योंकि विपक्ष लगातार ओबीसी जनगणना समेत कई मुद्दों को उठाते हुए बीजेपी को घेर चुकी है. जबकि केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग की जनगणना की मांग पर अब तक चुप्पी साधे हुए है.
ऐसे में ओम प्रकाश राजभर यूपी के पूर्वांचल की लगभग 32 लोकसभा सीटों पर खुद के प्रभाव का दावा करते हैं और अगर सुभासपा बीजेपी के साथ मैदान में उतरती है तो एनडीए पूर्वांचल में अपने सियासी आधार को मजबूत बनाए रख पाएगी. बता दें कि साल 2017 में हुए उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव में सुभासपा भारतीय जनता पार्टी एक साथ मैदान में उतरी थी. उस वक्त राजभर की पार्टी ने 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और 4 सीटें जीती थीं.
साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो सुभासपा समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर मैदान में उतरी थी और कुल 18 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. हालांकि इस बार उन्हें सिर्फ 6 सीटों ही मिल पाईं लेकिन कई सीटों पर बीजेपी का समीकरण भी गड़बड़ा गया और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
बिहार में 4 नेता एनडीए के साथ, बदल जाएगा जातीय समीकरण
लोजपा (चिराग पासवान): पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को जुलाई में होने वाले एनडीए की बैठक में बुलाया गया है. चिराग पासवान का एनडीए में शामिल होना लगभग तय है. इस पार्टी का बिहार में दलित सीटों पर मजबूत जनाधार है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा ने अपने दम पर बिहार की 6 सीटों पर जीत हासिल की थी और 6-7 सीटों पर बीजेपी की मदद भी की थी.
लोजपा का खगड़िया, मधेपुरा, वैशाली, मधुबनी, बेगूसराय, जमुई, समस्तीपुर और बेतिया में मजबूत जनाधार है. क्षेत्रीय नेताओं की मदद से इस पार्टी ने जहानाबाद, बक्सर और सीवान में भी अपना वोटबैंक बनाया है. लोजपा का कोर वोटर पासवान है, जिसकी आबादी बिहार में 4 से 5 प्रतिशत के आसपास है.
उपेंद्र कुशवाहा: पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ दिन पहले ही जेडीयू से खुद को अलग करते हुए राष्ट्रीय लोक जनता दल का गठन किया है. बिहार में उपेंद्र कुशवाहा को कुशवाहा जाति के सबसे बड़े नेता के रूप में जाना जाता है. उनकी पकड़ बांका, मधुबनी, आरा, रोहतास और समस्तीपुर में मजबूत हैं. साल 2014 के हुए लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और उन्हें 3 प्रतिशत वोट मिला था.
जीतन राम मांझी: 18 जुलाई को होने वाली बैठक में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम (से) के मुखिया जीतन राम मांझी को भी बुलाया गया है. जीतन राम मांझी ने साल 2015 में हम(से) का गठन किया था. मांझी का सियासी दबदबा जमुई, औरंगाबाद और सासाराम में है. साल 2015 के चुनाव में पार्टी का 2 प्रतिशत वोट मांझी को मिला था. इसके अलावा मांझी बिहार में मुसहर समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं. जीतन राम मांझी के मुताबिक बिहार में मुसहर जातियों की आबादी करीब 55 लाख हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़े में यह 30 लाख से कम है.
मुकेश सहनी: एनडीए मुकेश सहनी को भी अपने साथ लाना चाहती है. सहनी साल 2020 में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतर चुके हैं. वह बिहार के निषाद समुदाय के बड़े नेताओं में शुमार हैं. मुकेश सहनी के मुताबिक बिहार में निषाद समुदाय की सभी उपजातियों की आबादी 14 प्रतिशत के आसपास है. इसके अलावा मुकेश सहनी का वोट बैंक मधुबनी, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और समस्तीपुर में है.
इन तीन राज्यों में बीजेपी बरत रही है सावधानी
भारतीय जनता पार्टी अभी तक तो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्ष के खेमे में सेंध लगाकर क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ लाने में कामयाब रही है, लेकिन यही पार्टी आंध्र प्रदेश और पंजाब में अपने कदम फूंक-फूंक कर रख रही है.
आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश के चन्द्रबाबू नायडू ने साल 2018 में एनडीए का साथ छोड़ दिया था. हालांकि एनडीए छोड़ने के बाद चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव हार गई थी, अब ये पार्टी एनडीए में वापसी चाहती है. इस साल जून के पहले हफ्ते में चंद्रबाबू नायडू ने अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाक़ात भी की थी.
पंजाब: पंजाब में साल 2020 में किसान आंदोलन के दौरान सुखबीर सिंह बादल के अकाली दल ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया था. लेकिन साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल को हार मिली और अब यह पार्टी आने वाले लोदसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर मैदान में उतरना चाहती है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी इस बार अकाली दल के जगह अकाली दल ढ़ीडसा को अपने साथ शामिल करना चाहती है. पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अकाली दल का सिखों में पैठ खत्म हो चुकी है.
अब बात उन बड़े दलों की जो किसी के साथ नहीं
लोकसभा चुनाव से पहले कुछ पार्टियां विपक्षी एकजुटता का हिस्सा बन रही हैं तो कुछ पार्टियों को एनडीए अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगा है. लेकिन कुछ ऐसे बड़े दल हैं जो न तो एनडीए का हिस्सा है न विपक्षी एकजुटता का. उन बड़ी पार्टियों में ओडिशा की बीजद, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस, बसपा, अकाली दल, तेलुगू देशम पार्टी और बीआरएस शामिल हैं. ये पार्टियां किसका साथ देगी इसका खुलासा नहीं हो पाया है.
इसमें भी बीआरएस के अलावा जो 6 दल (बीजद, वाईएसआर , जद(एस), बसपा, अकाली दल, टीडीपी) हैं उन्होंने संसद के उद्घाटन के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया था. दलों के पास फिलहाल लोकसभा में 50 से ज्यादा सांसद हैं. ऐसी उम्मीद की जा रही हैं कि ये पार्टियां चुनाव नतीजों के बाद अपने पत्ते खोल सकती हैं.