देश में सत्ता हासिल करने के लिए होने वाली सियासी जंग में अब 10 महीने से भी कम का समय बचा हुआ है. ऐसे में बीजेपी से लेकर कांग्रेस और विपक्षी दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने और उसे वास्तविक आकार देने में जुट गए हैं. 


इसी क्रम में यूपी की राजनीतिक गलियारे में चर्चा तेज हो गई है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) बीजेपी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतर सकती है. 


दरअसल सपा से गठबंधन टूटने के बाद से ही सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भारतीय जनता पार्टी के सुर में सुर मिलाते नजर आते रहे हैं. बीजेपी से नजदीकियां और तमाम तरह की अटकलों के बाद अब खबरों की मानें तो सुभासपा का बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरना लगभग तय है.


18 जुलाई को राजधानी में होने वाली एनडीए की बैठक में सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर शामिल हो सकते हैं. कहा जा रहा है कि इस बैठक में जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह से बातचीत कर गठबंधन के स्वरूप पर अंतिम चर्चा कर इसका आधिकारिक ऐलान भी किया जा सकता है. 


हालांकि, ओपी राजभर ने कुछ दिन पहले ही मायावती को पीएम बनाने की बात भी कह चुके हैं. यूपी की राजनीति में ओपी राजभर अचानक से रुख बदलने के लिए भी जाने जाते हैं. 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाले राजभर ने बीच में ही योगी सरकार का साथ छोड़ दिया था. अब सवाल उठता है कि बार बार पलटी मार राजनीति करने के बाद भी बीजेपी ओपी राजभर से गठबंधन के लिए क्यों तैयार है?


राजभर के साथ गठबंधन के लिए क्यों तैयार है बीजेपी 


राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता. वर्तमान में यूपी की राजनीति में कुछ ऐसा ही हो रहा है. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही सुभासपा और बीजेपी के नजदीकियों की खबरें तेज होती जा रही हैं. 


माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी पूर्वांचल के किले के मजबूत बनाए रखने के लिए अपने सियासी समीकरण में ओपी राजभर को फिट कर रही है. लोकसभा चुनाव में अगर ओपी राजभर और बीजेपी एक साथ मैदान में उतरते हैं तो अखिलेश के लिए पूर्वांचल में अपने सियासी वजूद को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा. 


पहले जानते हैं कि पिछले चुनावों में सुभासपा ने कितनी सीटें जीतीं थी


साल 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में सुभासपा बीजेपी एक साथ मैदान में उतरी थी. उस वक्त राजभर की पार्टी ने 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और 4 सीटें जीती थीं.  


साल 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में सुभासपा समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर मैदान में उतरी थी और कुल 18 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. हालांकि इस बार उन्हें सिर्फ 6 सीटों ही मिल पाईं.


पूर्वांचल के सीटों पर प्रभाव रखते हैं राजभर


आने वाले लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस बार बीजेपी ने यूपी में सभी 80 सीटों का टारगेट रखा है. पार्टी का पूरा ध्यान पूर्वांचल की सीटों पर है. दरअसल पूर्वांचल की कई ऐसी सीटें हैं, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीत दर्ज नहीं कर पाई थी. इनमें से गाजीपुर, घोसी समेत कुछ सीटों पर लोकसभा चुनाव 2014 में तो जीत मिली लेकिन 2019 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी इन सीटों को ओपी राजभर की मदद से दोबारा हासिल करना चाहती है.


ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल की लगभग 32 लोकसभा सीटों पर खुद के प्रभाव का दावा करते हैं. ऐसे में अगर सुभासपा बीजेपी के साथ मैदान में उतरती है तो एनडीए पूर्वांचल में अपने सियासी आधार को मजबूत बनाए रख पाएगी. 


इन सीटों पर असरदार है सुभासपा


1. वाराणसी                                      2. घोसी        


3. जौनपुर                                         4. बलिया 


5. इलाहाबाद                                     6. लालगंज


7. फैजाबाद                                      8. गाजीपुर 


9. बस्ती                                            10. अम्बेडकर नगर


11. गोरखपुर                                     12. सलेमपुर 


13. मछलीशहर                                  14. आजमगढ़


15. भदोही                                          16. चंदौली  


एक दूसरे के लिए जरूरी बीजेपी-राजभर 


ओपी राजभर को समझ में यह आ चुका है कि भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर कोई फायदा नहीं होने वाला है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को भी पूर्वांचल की सियासी गणित और विपक्ष की एकजुटता को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए राजभर की जरूरत है. 


क्यों उठा रहे थे मायावती को पीएम बनाने की मुद्दा  


एक न्‍यूज चैनल से बातचीत में ओपी राजभर ने कहा था कि बीजेपी के खिलाफ यूपी में अगर विपक्ष का गठबंधन होता है तो मायावती, जयंत चौधरी और सुभासपा के बिना इस गठबंधन का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा था कि विपक्ष को मायावती का पीएम चेहरा बनाया जाना चाहिए, क्योंकि वो एक कुशल शासक रही हैं और उनकी पार्टी का कई राज्यों में जनाधार है.


लेकिन मायावती का नाम उछालने के पीछे भी राजभर की सोची-समझी रणनीति मानी जाती है. मायावती का नाम पीएम पद के लिए उछालकर वह एक तीर से कई शिकार करना चाहते थे...



  • अखिलेश यादव को विपक्षी एकता की मुहिम से अलग-थलग करना.

  • दलित समुदाय के बीच अपना सियासी आधार बढ़ाने की कोशिश करना.

  • राजनीतिक चर्चा का केंद्र बना रहना. 


बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर ओम प्रकाश राजभर ने क्या कहा 


आने वाले लोकसभा चुनाव में सुभासपा और बीजेपी के गठबंधन पर राजभर ने कहा, 'गठबंधन किससे होगा, कब होगा इसका सही समय पर ऐलान किया जाएगा. लेकिन एक बात तय है कि अखिलेश यादव को गठबंधन चलाना नहीं आता है. उन्होंने पहले जो मेरे साथ किया अब वही वह जयंत के साथ कर रहे हैं. उनके अंदर गठबंधन को चलाने की क्षमता नहीं है.' 


राजभर ने सपा से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी से उनकी नजदीकियों पर कहा था उनकी बीजेपी के नेताओं और मंत्रियों से लगातार बात होती रहती है और वह उनके साथ सीना ठोक के मुलाकात भी करते हैं. 


राजभर ने कांशीराम के साथ शुरू की थी राजनीति


ओपी राजभर ने सबसे पहले साल 1981 में बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. साल 2001 में बसपा सुप्रीमो मायावती से विवाद के बाद राजभर ने बसपा से इस्तीफा दे दिया. दरअसल, वह भदोही का नाम बदलकर संतकबीर नगर रखे जाने से नाराज थे. 


बसपा छोड़ने के बाद राजभर ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी नाम से अपनी नई पार्टी बना ली. अपने 35 सालों के राजनीतिक करियर में राजभर ने अति पिछड़ों के नेता के रूप खुद को स्थापित किया. पूर्वांचल की दो दर्जन सीटों पर प्रभाव रखने का दावा करते हैं.


ओपी राजभर की राजनीति का आधार
ओपी राजभर खुद को प्रदेश में अति पिछड़ा वर्ग का नेता बताते हैं जिसमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, भिंद, राजभर, धीमर, बाथम जैसी 17 जातियां शामिल हैं. इन जातियों का कई सीटों पर प्रभाव है और हार-जीत के समीकरण तय करती हैं. पूर्वांचल में इनका खासा दबदबा है. यहां एक बात जानना ये भी जरूरी है कि यूपी में 52 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की है. इसमें यादवों को छोड़कर 43 फीसदी आबादी अति पिछड़े वर्ग में आती है. यूपी में ओबीसी के दायरे में 79 जातियां हैं जिसमें सबसे बड़ी आबादी यादवों और इसके बाद कुर्मियों की है.


यूपी की सियासत इसी ओबीसी समीकरण के बीच घूम रही है. बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी का एक बड़ा वोट बैंक और नेता तैयार कर लिए हैं. पार्टी पीएम मोदी को भी ओबीसी से ही जोड़ती है. इसके साथ ही यादवों के बाद ओबीसी की दूसरी सबसे बड़ी आबादी कुर्मी भी बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं. बीजेपी ओपी राजभर के जरिए अति पिछड़ा वर्ग की 17 जातियों को अपने पाले में करने की कोशिश में है.