पुरी: पुरी में भगवान जगन्नाथ हर साल रथ पर सवार होकर गुंडीचा मंदिर जाते हैं. मान्यता है कि भगवान खुद भक्तों को दर्शन देने मंदिर से बाहर निकलते हैं. इसे रथयात्रा के रूप में मनाया जाता है. लेकिन अगर आप उनके बारे में जानेंगे तो बस यही कहेंगे ‘अरे ये तो हमारे आपके जैसे हैं’. भगवान जगन्नाथ का रहन-सहन, उनका खान पान, उनके नाते रिश्तेदार सब कुछ आम इंसानों जैसा है. इसी हफ़्ते वे बीमारी से ठीक हुए हैं. पंद्रह दिनों तक उन्हें बुखार रहा. 28 जून को स्नान पूर्णिमा के दिन ही भगवान बीमार हो गए थे.


जगन्नाथ जी, उनके बडे भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को उस दिन 108 मटकों से नहलाया गया था. भगवान की सेवा और देख रेख के लिए पुरी मंदिर में शैवायत की परंपरा रही है. हर काम के लिए अलग क़िस्म के शैवायत हैं. जिन्हें निजोग कहते हैं. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में 36 निजोग हैं. बीमारी के दौरान भगवान का इलाज करने वाले शैवायत ‘वैद्य’ कहलाते हैं. इस समय सेवा करने वाले पुजारियों को ‘दैतापति’ कहते हैं.


भगवान जगन्नाथ का अपना परिवार है. बड़े भाई बलभद्र बाईं ओर सिंहासन पर बैठते हैं. बीच में छोटी बहन सुभद्रा और दाहिनी ओर ख़ुद जगन्नाथ जी. जगन्नाथ भगवान काले रंग के हैं. उनकी दो पत्नियाँ हैं- लक्ष्मी और सरस्वती. लक्ष्मी थोड़ी ग़ुस्से वाली और ईर्ष्यालु हैं. सरस्वती का स्वभाव बिलकुल अलग है. बलभद्र की पत्नी विमला हैं.


सोकर उठने के बाद भगवान जगन्नाथ सबसे पहले दांत साफ़ करते हैं. जिसे हम लोग ब्रश करना कहते हैं. जगन्नाथ जी का दांत साफ़ कराने वाले पुजारी मुखो पाखाल कहे जाते हैं. भगवान की मूर्ति लकड़ी की बनी हुई है. पानी पड़ने पर इसके ख़राब होने का ख़तरा रहता है. तो भगवान को एक अलग तरीक़े से नहलाया जाता है. उनके सामने आइना रख कर उसमें दिख रही छवि पर पानी डाल देते हैं. ऐसा करने वाले ‘दरपणिया’ कहलाते हैं.


भगवान के आस पास उनकी सुरक्षा में लगे शैवायतों को खूंटिया कहते हैं. जगन्नाथ जी हर दिन हमारे और आपकी तरह लंच और डिनर करते हैं. खाना बनाने वाले पुजारी रसई कहलाते हैं. मंदिर में एक किचेन बना है. हर दिन हज़ारों लोगों का खाना इसमें बनता है. चावल साफ करने और धोने के लिए भी शैवायत रहते हैं. जिन्हें चावलो बाछा कहते हैं. सब्ज़ी काटने वाले शैवायत पनिकी पटा कहलाते हैं.


घी बनाने और उसे बांटने के लिए भी मंदिर में पुजारी हैं. इन्हें रोसा निकप कहते हैं. भगवान जगन्नाथ संगीत के भी शौक़ीन हैं. बिना संगीत सुने वे सोने नहीं जाते हैं. एक ख़ास क़िस्म के शैवायत हर रात भगवान के लिए वीणा बजाते थे. जिन्हें बिनकारा कहा जाता है. अब ऐसे शैवायत बचे नहीं. ये प्रथा बंद हो गई है. इसी तरह से भगवान के दरबार में नृत्य करने वाली देवदासी की परंपरा भी अब ख़त्म हो गई है.


भगवान जगन्नाथ के घर परिवार में भी आम इंसान की तरह झगड़ा होता है. रूठना और मनाना होता है. जगन्नाथ जी अपने भाई और बहन के साथ गुंडीचा मंदिर चले जाते हैं. लेकिन पत्नी लक्ष्मी और सरस्वती को साथ नहीं ले जाते. इस बात पर लक्ष्मी को ग़ुस्सा आ जाता है. रथयात्रा के पांचवे दिन वे पालकी में सवार होकर जगन्नाथ जी से मिलने पहुंचती है. उन्हें ख़ूब भला बुरा कहती हैं.


बाहर खड़े उनके रथ में भी लक्ष्मी जी तोड़ फोड़ करती हैं. बारहवें दिन जब जगन्नाथ जी श्री मंदिर के अंदर जाने लगते हैं. तो उनकी पत्नी लक्ष्मी जी मंदिर का दरवाज़ा बंद कर देती हैं. भगवान जगन्नाथ उन्हें रसगुल्ला खिला कर मनाते हैं. तब उन्हें मंदिर जाने की इजाज़त मिलती हैं. भगवान जगन्नाथ की ऐसी कई कहानियां हैं, मान्यतायें हैं और रीति रिवाज हैं. इन सब को जान कर आप यही कहेंगे कि भगवान जगन्नाथ तो हमारे जैसे ही हैं.