Indian Lower Court Pending Cases: भारत की अदालतों में किस कदर केस का बोझ बना हुआ है इसका अंदाजा नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड (NJDG) के आंकड़ों से पता चलता है. निचली अदालतों में इस समय 4 करोड़ से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं. इसमें 63 लाख मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं है. इनमें कम से कम 78% मामले आपराधिक (क्रिमिनल) हैं और बाकी दीवानी (सिविल) हैं.


वकील के न होने के चलते सबसे ज्यादा लंबित मामलों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश इसमें पहले नंबर पर है. 63 लाख मामलों में 49 लाख से अधिक (77.7%) तो दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी और बिहार में हैं.


इन कारण उपलब्ध नहीं होते हैं वकील
TOI ने एडवोकेट केवी धनंजय के हवाले से लिखा कि वकीलों की उपलब्ध न होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे वकीलों की मौत, जब मामले खिंचते रहते हैं तो वकीलों की अक्षमता, कई बार अभियोजन वकीलों को देने में देरी करता है. साथ ही मुफ्त कानूनी सेवाओं की देश में खराब हालत भी इसके लिए जिम्मेदार है.


देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या के लिए मुकदमों के फैसलों में देरी सबसे बड़ा कारण है. इसके भी कई कारण है. अदालतों में जिस मात्रा में मुकदमों की भरमार है, उसके लिए न्यायाधीशों की कमी है और बार-बार मुकदमों को आगे बढ़ाना भी जिम्मेदार है. कई बार जज इसलिए भी मुकदमों को आगे बढ़ाते हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं होते हैं.


वकीलों पर केस का बोझ
यहां ये बात समझने की है कि सिर्फ जजों के ऊपर ही केसेज का बोझ नहीं है. देश में वकीलों पर भी बहुत बोझ होता है. अदालतों में रजिस्ट्री का सिस्टम ही ठीक नहीं है. मुकदमों की सूची कई बार अंतिम समय में आती है. ऐसे में वकील मजबूरन सुनवाई में नहीं पहुंच पाते हैं. 


मुकदमों में 4 साल का औसत समय
एक और महत्वपूर्ण वजह है कि भारत में एक औसत मामले को पूरा होने में 4 साल लगते हैं. जब मुकदमा अनुमानित समय से बहुत ज्यादा चलने लगता है तो कई बार मुवक्किल के पास फीस देने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं. 


केंद्रीय कानून मंत्रालय के अलग-अलग आंकड़ों से पता चलता है कि 2017-18 और 2021-22 के बीच, एक करोड़ से अधिक लोगों को कानूनी सेवा प्राधिकरणों के जरिए प्रदान की जाने वाली फ्री कानूनी सेवाओं का लाभ मिला है, जो पिछले दशकों के प्रदर्शन से अलग है.


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