लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ चल रहा आंदोलन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. लखनऊ के घंटाघर में चल रहे अंदोलन में शुक्रवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डॉ. कल्बे सादिक हिस्सा लेने पहुंचे. उन्होंने कहा कि देश मोदी-शाह की मर्जी से नहीं, संविधान से चलेगा. कल्बे सादिक ने घंटाघर में प्रदर्शनकारियों को आने वाली दिक्कतों पर रोष जताते हुए कहा, "मैंने आज तक कभी सिनेमा नहीं देखा, पर हर घर में उजाला है और घंटाघर पर अंधेर, जो सरकार को दिखाई नहीं दे रहा है.. कोई मोदी कोई शाह हमारा भविष्य नहीं बना सकता. आज जो हमारे देश में हो रहा है वो बेहद दर्दनाक है."
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज देश में जो भी हो रहा है. वह बेहद दर्दनाक है. यह देश मोदी-शाह की मर्जी से नहीं, संविधान से चलेगा.
विरोध प्रदर्शन में अपने चार साल के मासूम के साथ शामिल शाइस्ता से उनकी राय जानी तो उनका बस एक ही कहना था कि देश के इतने सारे नागरिक बीते कई दिनों से सड़क पर हैं, हम सब देश के संविधान की मूल भावना पर इस चोट को बर्दाश्त नहीं करेंगे. तहजीब और पर्दे में रहने वाली हम मुस्लिम महिलाओं को सड़क पर लोकतंत्र के मूलभूत ढांचे के लिए बेपर्दा होना पड़ रहा है, इससे ज्यादा लोकतंत्र के लिए काला दिन क्या होगा.
इस मौके पर अरीशा सादिक, खतीजा और अकबर सादिक ने 120 मीटर लंबे बैनर पर कदमों के निशान बनाकर उस पर नो सीएए, बायकाट एनआरसी लिख विरोध दर्ज कराया. नौवीं कक्षा से लेकर स्नातक तक की छात्राओं की मेहनत से बना बैनर प्रदर्शन स्थल पर लगाया गया है.
शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने क्या कहा था?
इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ हुए प्रदर्शनों पर कहा था कि सरकार को इस कानून को लेकर मुस्लिम समुदाय के भ्रम को दूर करना चाहिए.
मौलाना ने कहा था, ‘‘ मुसलमानों में भ्रम और डर है. यह सरकार का फर्ज है कि वह सीएए को लेकर भ्रम को दूर करे.’’
क्या है नागरिकता संशोधन कानून (CAA)
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. पहले 'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही लोगों को 11 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.
किन देशों के शरणार्थियों को मिलेगा फायदा?
इस कानून के लागू होने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थी यानी हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी. मतलब 31 दिसंबर 2014 के पहले या इस तिथि तक भारत में प्रवेश करने वाले नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे. नागरिकता पिछली तिथि से लागू होगी.
देश में कहां-कहां लागू नहीं होगा ये कानून?
नागरिकता संशोधन बिल की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा (जो स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है), जिनमें असम, मेघायल, त्रिपुरा और के क्षेत्र मिजोरम शामिल हैं. वहीं ये बिल उन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा, जहां इनर लाइन परमिट है. जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम.
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