नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में लखनऊ चौराहे पर लगे जुर्माने वाले पोस्टर का मामला गर्म है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खुद ही मामले का संज्ञान लिया और रविवार को छुट्टी के दिन ही अदालत खोल दी. कोर्ट ने कहा कि ऐसे सार्वजनिक तौर पर पोस्टर लगाना ठीक नहीं है. लेकिन यूपी सरकार पोस्टर नहीं हटाने पर अड़ी हुई है. आज दोपहर मामले पर कोर्ट का फैसला आएगा.


प्रशासन ने जगह-जगह पोस्टर लगाए


76 साल के पूर्व आईपीएस अधिकारी श्रवण राम दारापुरी, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जाफर, कलाकार दीपक कबीर, वकील मोहम्मद शोएब और ऐसे ही 57 लोगों को लखनऊ हिंसा का जिम्मेदार बताते हुए प्रशासन ने जगह-जगह पोस्टर लगाए थे. इन लोगों को आगजनी, तोड़फोड़ और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी बताते हुए एक करोड़ 55 लाख रुपये हर्जाना भरने के लिए कहा गया था, और ऐसा ना करने पर संपत्ति कुर्क करने की चेतावनी दी गई थी. जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाई. लेकिन ये पोस्टर जस के तस अब भी अपनी जगह मौजूद हैं.


बता दें कि हिंसा को करीब ढाई महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है. यूपी सरकार ने हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई आरोपियों से करने का फैसला लिया. इसी फैसले के तहत चौराहों पर हिंसा करने वालों के पोस्टर लगाए हैं. इन पोस्टरों में आरोपियों के नाम पते भी लिखे हैं.


कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर कमिश्नर और डीएम को तलब किया


चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने पोस्टर पर स्वत: संज्ञान लेते हुए योगी सरकार को नोटिस जारी किया था. चीफ जस्टिस ने पूछा कि आखिरकार किस नियम के तहत ये पोस्टर लगाए गए. कोर्ट ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और डीएम को अदालत में हाजिर होने का आदेश भी दिया था. चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.


सरकार की तरफ से दलील देते हुए एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह और एडिशनल एडवोकेट जनरल नीरज त्रिपाठी ने कोर्ट में कहा कि इस मामले में नियमों का पूरी तरह पालन किया गया. जिन आरोपियों की तस्वीरें लगाई गईं, उनमे से एक-एक के बारे में पुख्ता सबूत जुटाए गए. वीडियो फुटेज और तस्वीरों से मिलान कर आरोपियों की पहचान की गई. उसके बाद ही पोस्टर और तस्वीरें लगाई गईं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पोस्टर विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है जिसे आज दोपहर दो बजे सुनाया जाएगा.


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