जयपुर: माना जा रहा है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में राजपूत-जाट समीकरण को दरकिनार करते हुए मदनलाल सैनी को सूबे की कमान सौंपी है. सैनी की नियुक्ति के फैसले को कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जवाब माना जा सकता है. सैनी और गहलोत राजस्थान के एक ही माली समाज से आते हैं. तीन महीने के इंतज़ार और बैठकों के दौर के बाद आज भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान के नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर दी है. राज्यसभा सांसद मदन लाल सैनी को राजस्थान में बीजेपी की कमान सौंपी गयी है. 18 अप्रैल को अशोक परनामी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, उसके बाद से इस पद के लिए कई नाम सामने आये थे. मदन लाल सैनी का राजस्थान के शेखावटी के इलाके में अच्छा प्रभाव है. शेखावटी में झुंझुनू, सीकर जिले आते हैं.


मदनलाल सैनी सीकर जिले से हैं और झुंझुनू के उदयपुरवाटी से विधायक रहे हैं. राजनीति में आने से पहले सैनी आरएसएस से जुड़े रहे और सीकर जिले में वकालत की. उसके बाद आपातकाल के दौरान जेल भी गए. इस तीन महीने के दौरान जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्रीय नेतृत्व की पसन्द की तौर पर उभरे तो वसुंधरा विधायक श्रीचंद कृपलानी को अध्यक्ष बनाना चाहती थीं. लेकिन आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले मदनलाल सैनी के नाम पर सहमति बनी.


माना ये भी जा रहा था कि राज्य में राजपूत बीजेपी से खासा नाराज चल रहे थे, खासकर "पद्मावत" फ़िल्म के विवाद के बाद से. इसी दौरान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने राजपूतों में अच्छी पैठ बनाकर गुर्जर-राजपूत का नया समीकरण तैयार कर दिया था.


क्या हैं चुनौतियां?
अजमेर और अलवर के उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद ये साफ़ हो गया था कि वसुंधरा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तेज है. ऐसे में सैनी पर वसुंधरा राजे और संगठन के बीच सामंजस्य बनाने की जिम्मेदारी भी है. साथ ही सभी जातियों के बीच ये सन्देश देने का भी जिम्मा है कि बीजेपी उनके साथ है.