भोपाल: अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' इस महीने की नौ तारीख को रिलीज हो रही है. इस बीच मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में अमेरिका की कैलिफोर्निया से आईं माया विश्वकर्मा नाम की एक एनआरआई महिला इलाके में 'पैडवुमन' का किरदार निभा रही हैं. सस्ते दामों पर ये सैनिटरी पैड तो बना ही रही हैं, इसके साथ ही महिलाओं और छात्राओं के बीच जाकर जागरुकता भी फैला रही हैं.
एमपी के नरसिंहपुर के बाहरी इलाके झिरना रोड पर कच्चे पक्के रास्ते पर एक घर बना हैं. इन दिनों ये घर आसपास की महिलाओं के लिए रोजमर्रा के कामकाज का जरिया बन गया है. इस घर के एक कमरे में सेनेटरी पैड बनाने का छोटा सा कारखाना चलता है. इसमें दिन की दो शिफ्ट में छह-छह महिलाएं काम करती हैं.
इस कारखाने के पीछे माया विश्वकर्मा रहती हैं. वे इस जिले के एक गांव से एमएससी करने के बाद अमेरिका की कैलिफोर्निया में रिसर्च स्कालर बनीं. वे अपने जीवन की शुरुआती परेशानियों से सबक लेकर महिलाओं को इस बारे में जागरुक करना चाहती हैं कि माहवारी के दिनों में गंदे कपड़े नहीं बल्कि सस्ते पैड लगाएं.
पीरियड्स और पैड आमतौर पर चर्चा से दूर रहने वाले विषय हैं. मगर माया ने इसी कड़ी को तोड़ने की कोशिश की. वे पिछले साल अरुणाचलम मुरुगनाथम से मिलीं और पैड बनाने की मशीन के बारे में जाना. उन्होंने उससे बेहतर मशीन तलाशकर अपने जिले में ही पैड बनाने का काम शुरू किया. अब वे आसपास की महिलाओं को रोजगार तो दे ही रही हैं साथ ही साथ पास के गांव मोहल्लों में जाकर माहवारी के दिनों में गंदे कपड़ों से बचने की सलाह भी देती हैं.
माया ने ये जिला इसलिए भी चुना क्योंकि इसी नरसिंहपुर जिले में पिछले साल नौ महीने में 600 सौ महिलाओं की बच्चेदानी निकाली गयी थी. पीरियड्स में इंफेक्शन से शुरू होने वाली ये बीमारी इतनी बढ़ जाती है, जिसका डॉक्टर सिर्फ ऑपरेशन के जरिए ही इलाज करते हैं. गरीब घरों की महिलाओं को महंगे ऑपरेशन से जूझना पड़ता है.
माया अब सस्ते सैनिटरी पैड को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए मध्य प्रदेश के आदिवासी जिलों में एक महीने की यात्रा पर जा रही हैं. वे छात्राओं के बीच जाएंगी और सैनिटिरी पैड और माहवारी की मुश्किलों से कैसे निबटें, इसकी जानकारी देंगी. 'पैडमैन' फिल्म आने से भी लोग अब पैड और उनके काम के बारे में जानने लगे हैं, ये जानकर माया को अच्छा लगता है.
पैड बनाने के कारखाने देश में दूसरी जगहों पर भी चल रहे हैं, मगर ये कारखाना इस मायने में अलग है कि यहां पूरा काम महिलाएं ही करती हैं. यहां कारखाने का काम पूरा कर आसपास की जगहों पर सैनिटरी पैड को लेकर जागरुकता भी फैलाती हैं. इसी वजह से यहां के लोग इनको 'पैडवुमन' कहते हैं.