Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में मतदान की तारीख नजदीक आते देख राजनीतिक दलों और नेताओं ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है. सभी बड़े नेताओं ने चुनाव प्रचार की कमान को संभाल लिया है और अपने-अपने गढ़ को बचाने के लिए पूरे जोर शोर से जुट गए हैं.
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ छिंदवाडा तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर मुरैना और ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर, गुना, शिवपुरी आदि के चुनावी समर में अपना वर्चस्व दिखाने को उतरे हैं. इन सभी में असल चुनौती सिंधिया के सामने है जिनको पिछले चुनाव में कांग्रेस के लिए किए गए प्रदर्शन को अब बीजेपी में रहकर दोहराना है.
दिलचस्प बात यह है कि ग्वालियर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने प्रदयुम्न सिंह तोमर को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है. उनके चुनावी प्रचार में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरी ताकत झोंके हुए हैं. दूसरी तरफ उनके सामने एक बार फिर से कांग्रेस के सुनीश शर्मा मैदान में डटे हैं. साल 2018 के चुनाव से पहले तोमर और शर्मा दोनों ही सिंधिया खेमे के माने जाते रहे.
तोमर ने 2018 का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा था
तोमर ने 2018 का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा था और बीजेपी के जयभान सिंह को 21 हजार वोटों से मात दी थी लेकिन सिंधिया के पाले बदले जाने के बाद तोमर ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. मार्च 2020 में वह सिंधिया के साथ बीजेपी में आ गए. एक बार फिर बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे हैं.
'सिंधिया के सभी समर्थक प्रत्याशी जीत दर्ज करेंगे'
बीजेपी उम्मीदवार प्रद्युम्न सिंह तोमर दावा कर रहे हैं कि उनके नेता सिंधिया का पूरे इलाके में जोर है. उन्होंने जिनको भी टिकट दिलवाई है, वो सभी प्रत्याशी ज्यादा से ज्यादा वोटों के अंतराल से जीत दर्ज करेंगे.
तोमर ने 2020 में भी जीता था बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव
इस बीच देखा जाए तो सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए प्रद्युम्न सिंह तोमर ने 2020 का उपचुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. उप-चुनाव में तोमर के खिलाफ कांग्रेस ने सुशील शर्मा को टिकट दिया था जो कि एक जमाने में सिंधिया खेमे के नेताओं में शुमार रहे. इस उपचुनाव में उनको हार हाथ लगी थी लेकिन कांग्रेस ने उनको एक बार फिर से चुनावी दंगल में उतारा हुआ है. कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शर्मा का कहना है कि सिंधिया के साथ गये लोग कांग्रेस के गद्दार हैं और जनता अब उनको सबक सिखायेगी.
पाला बदलने वालों में अधिकतर ग्वालियर चंबल इलाके के विधायक रहे
ग्वालियर सीट पर इस बार आमने सामने उतरे उम्मीदवार एक जमाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपाही रहे. सिंधिया के साथ पाला बदल कर कमलनाथ सरकार गिराने वाले 20 विधायक थे जो अधिकतर ग्वालियर चंबल इलाके से संबंध रखते थे.
साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस का रहा था यहां पर अच्छा प्रदर्शन
साल 2018 के चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था और 34 में से 27 सीटों पर परचम लहराया था. वहीं, बीजेपी 5 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. इस सबका श्रेय सिंधिया के हिस्से गया था लेकिन इस बार 2023 के चुनाव में राजनीतिक स्थिति ठीक नजर नहीं आ रही है. सिंधिया अपने चहेते उम्मीदवारों को जिताने को जी जान से जुटे हैं.
'इन क्षेत्रों पर सिंधिया घराने का अच्छा खासा प्रभाव'
राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली के मुताबिक, ग्वालियर राजघराने की बादशाहत इस क्षेत्र में विजयाराजे सिंधिया से लेकर माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया तक चलती आ रही है. इस घराने का खास प्रभाव ग्वालियर, भिंड, मुरैना, श्योपुर, गुना, शिवपुरी, दतिया, अशोकनगर, इंदौर, उज्जैन तक फैला है. चुनाव के दौरान अपने खास समर्थकों को टिकट दिलवाना और उनको चुनाव में जिताना ही सिंधिया घराने के महाराजा का काम होता था. कांग्रेस से बीजेपी में आने के बाद के चुनाव में सिंधिया ने अपने 10 से 15 समर्थकों को टिकट तो दिलवा दिया है लेकिन सत्ता विरोधी लहर खेल बिगाड़ रही है.
'पार्टी ने उनसे नहीं कहा वरना वो भी चुनाव लड़ते'
इस बीच देखा जाए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव तो नहीं लड रहे हैं लेकिन अपने विधायकों के लिये पहले कार्यकर्ता सम्मेलन किये और अब प्रचार कर रहे हैं. गत 29 अक्टूबर को एक चुनावी प्रचार के दौरान ज्योतिरादित्य ने एबीपी न्यूज़ से कहा था कि पार्टी ने उनसे नहीं कहा वरना वो भी चुनाव लड़ते और शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में उनके विधायक चुनाव अच्छे से लड़ रहे हैं.
सिंधिया के सामने 2013 के प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती
इस बार सिंधिया के सामने क्षेत्र में साल 2013 के पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है. वह बखूबी जानते हैं कि उनके विधायक चुनाव हारे तो उनकी ताकत कम होगी. राजनीति में विधायकों की संख्या की ताकत मायने रखती है.
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