नई दिल्ली: कांग्रेस से नाराज चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया आज बीजेपी में शामिल हो गए. इस मौके पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब पहले जैसी पार्टी नहीं रह गई. बीजेपी का दामन थामने के बाद कांग्रेस हमलावर है. मध्य प्रदेश कांग्रेस ने उनके पुराने बयानों की याद दिलाते हुए ट्वीट किया, ''सिंधिया ग़ज़ब हैं. किसानों के न्याय के लिये मिल गये हत्यारों के साथ. भ्रष्टाचार मिटाने के लिये, व्यापम और ई-टेंडर वालों के साथ. रोज़गार दिलाने के लिये, रोजगार छीनने वालों के साथ. सम्मान पाने के लिये, देश जलाने वालों के साथ गये..! माफ करो शिवराज, अब तुम्हारे नेता महाराज.''


लेकिन दिग्विजय सिंह ने चुटकी लेते हुए उन्हें बधाई दी. उन्होंने कहा, ''ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को बीजेपी में शामिल होने पर बधाई. बीजेपी के मध्य प्रदेश के नेताओं को भी मेरी हार्दिक बधाई.'' दरअसल, दिग्विजय सिंह और सिंधिया पास रहकर भी दूर ही रहे. 2018 में जब कांग्रेस ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की तो दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ का साथ दिया. सिंधिया और दिग्विजय दोनों राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. सिंधिया और राघोगढ़ घराने की लड़ाई की कहानी करीब 200 वर्ष पुरानी है. 1816 में दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हरा दिया था और इस वजह से राघोगढ़ को ग्वालियर राज के अधीन होना पड़ा था.


1993 में चुनाव के बाद दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया दोनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की रेस में थे लेकिन तब बाजी दिग्विजय सिंह ने मारी. माधवराव सिंधिया ने अपना संगठन बनाने के लिए 1993 में कांग्रेस छोड़ दी थी. अब सिंधिया ने दिवंगत पिता माधवराव सिंधिया की 75 वीं जयंती पर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और उसके अगल दिन बीजेपी में शामिल हो गए.



माधवराव जिस तरह से राजीव गांधी के विश्वस्त रहे थे, ठीक उसी तरह ज्योतिरादित्य भी राहुल गांधी के सहयोगी थे. लेकिन दिसंबर 2012 में राहुल गांधी सिंधिया को मध्य प्रदेश की कमान नहीं थमा पाए थे. फिर कांग्रेस ने लंबे समय बाद मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल की और सिंधिया को उम्मीद थी कि युवा नेतृत्व को ही मौका मिलेना. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और राहुल ने उनके और कमलनाथ के साथ तस्वीर ट्वीट कर उन्हें धैर्य रखने की सलाह दी.


सरकार बनने के करीब 15 महीने बाद सिंधिया को उम्मीद थी कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर राज्य की राजनीति में संतुलन बनाने की कोशिश होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राजनीति कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के ईर्द-गिर्द ही रही.


मध्य प्रदेश में राजनीतिक रूप से मुख्यमंत्री कमलनाथ और पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा दरकिनार किये जाने के बाद ज्योतिरादित्य ने कुछ महीने पहले अपने ट्विटर प्रोफाइल से कांग्रेस का उल्लेख हटा दिया. पार्टी के अंदर के लोगों का कहना है कि सिंधिया ने महसूस किया कि राहुल गांधी ने उन्हें निराश किया उन्होंने अपने विश्वस्त (ज्योतिरादित्य) को मुख्यमंत्री बनाने पर जोर नहीं दिया.


सिंधिया को जनवरी 2019 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का महासचिव नामित किया गया था. लेकिन वह उत्तर प्रदेश में पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के अलावा एक पूरक भूमिका में ही थे. ज्योतिरादित्य 2002 में एक उपचुनाव जीत कर 2002 में गुना से पहली बार सांसद बने थे. उनके पिता की मृत्यु के बाद यह उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी थी. उस वक्त वह 31 साल के थे. आगे चल कर वह 2007 में कांग्रेस नीत यूपीए-1 सरकार में संचार राज्य मंत्री बने.



साल 2009 में वह वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री बने और 2012 में उन्हें संप्रग-2 में ऊर्जा राज्यमंत्री नियुक्त किया गया. साल 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सोनिया गांधी ने उन्हें लोकसभा में पार्टी का मुख्य सचेतक नियुक्त किया था.


पिछले दिनों जब सिंधिया ने कमलनाथ के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरने की बात कही तो दिग्विजय ने कहा कि हमने जो जनता से वादा किया वह काम कर रहे हैं. इसी बीच दोनों नेताओं की गुना में मुलाकात की खबर आई. ऐसा माना जा रहा था कि दोनों के बीच बैठक होगी लेकिन दोनों ने सड़क पर ही दुआ-सलाम किया और आगे के कार्यक्रमों के लिए निकल गए.



इस बीच मध्य प्रदेश में चर्चा होने लगी कि राज्यसभा के लिए कांग्रेस का दो उम्मीदवार कौन होगा. दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की अटकलें थी लेकिन फर्स्ट च्वाइस के लिए उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ही रहना चाहते थे. संभवत: सिंधिया को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने 'हाथ' छोड़ने का फैसला लिया. बीजेपी ने पार्टी में शामिल कराने के साथ ही सिंधिया को मध्य प्रदेश से राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया है. 13 मार्च को सिंधिया पर्चा दाखिल करेंगे.