Raaj Ki Baat: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता है. 'छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, थके कदमों से कोई खड़ा नहीं होता'और ये कहावत भी कही जाती है कि बड़े पद पर पहुंचने के बाद छोटी सोच छोड़ देनी चाहिए. आपको लग रहा होगा कि ये तो शास्वत ज्ञान है. इसमें राज की बात क्या? तो यक़ीन रखिये कि इसमें राज की बात भी है और राज-पाट गंवाने की भी बात है. बड़े-बुजुर्ग जो कहकर जाते हैं, वो यूं ही नहीं होता ये बात अब जो राज की बात हम आपको मध्य प्रदेश में पिछले कुछ माह पहले हुए घटनाक्रम की बताने जा रहे हैं, उससे आपका यक़ीन और बढ़ जाएगा.
छोटी सी बात. क्षुद्र सा अहंकार. बड़ी जगह पर बैठकर भी बड़ा मन न कर पाना. इतनी सी बात से कमलनाथ के हाथ से सत्ता फिसल कर कमल यानी बीजेपी के पास चली गई. राज की बात में जब पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा आपको पता चलेगा तो ये भी समझ आएगा कि सियासत में बड़े-बड़े फ़ैसले और घटनाक्रमों के लिए कितनी छोटी सी बातें या घटनाएँ ज़िम्मेदार होती हैं.
सिंधिया ने कमल का झंडा थामा
आपको पता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ से बग़ावत कर कमल का झंडा थाम लिया. लिहाज़ा कमलनाथ के हाथ से मध्य प्रदेश जाता रहा. ज्योतिरादित्य ने ऐसा क्यों किया? बीजेपी की सरकार आने पर भी जबकि उनको पता था कि मुख्यमंत्री वह नहीं बनेंगे. इसके बावजूद वो अपनी पुरानी विरासत को छोड़कर नई पार्टी में क्यों गए? इसका जवाब लोगों को राजनीतिक महत्वाकांक्षा लगता है. वो है भी, लेकिन किसी भी बड़े फैले के लिए एक घटनाक्रम महत्वपूर्ण होता है. कमलनाथ ने सत्ता के मद में यही गलती क़ी और महाराजा को उनकी हैसियत दिखाने के चक्कर में अपनी सीएम की हैसियत को दी.
राज की बात जानने से पहले एक बात ये समझ लीजिए किसी भी व्यक्ति में जीवन में उसकी परवरिश कहां हुई. बचपना उसका कहां बीता. और खासतौर से वो जगह देश की राजधानी में लुटियन ज़ोन हो और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जैसी जगह पर हो तो फिर ये यादें और ज्यादा अहम हो जाती हैं.
सिंधिया खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे थे
वैसे तो सिंधिया कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जुगलबंदी के आगे खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे थे. इसके बावजूद गांधी परिवार से सीधे संबंध और विरासत की वजह से वो कांग्रेस नहीं छोड़ रहे थे. मगर सिंधिया ने पाण्डवों की तरह 'पांच गांव' मांगे थे, वैसे ही कमलनाथ से लुटियन ज़ोन दिल्ली में मध्य प्रदेश सरकार के कोटे से एक मकान मुहैया कराने को कहा. वो मकान था, जिसमें उनके पिता माधवराव सिंधिया रहते थे और बाद में मंत्री बनने के बाद खुद ज्योतिरादित्य भी रहे. मकान नंबर 26, सफ़दरजंग रोड. इससे उनकी बहुत यादें जुड़ी थीं.
कमलनाथ ने ये तो नहीं सुनी. बार-बार कहने के बाद भी लुटियन ज़ोन में कुछ नहीं दिया. महाराज यानी सिंधिया ने फिर भोपाल में भी एक सरकारी मकान देने को कहा. मगर कमलनाथ ने एक मकान खुद को आवंटित किया और दूसरा अपने बेटे को कर दिया. ये लगातार खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे महाराज के लिए जैसे ट्रिगर प्वाइंट था. वैसे अब राज की बात ये है कि लुटियन जोन के मकान के लिए सिंधिया ने फिर प्रयास शुरू कर दिए हैं. मकान के साथ-साथ बीजेपी में भी वह अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं.
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