Court News: मद्रास हाई कोर्ट ने एक शख्स के खिलाफ शुरू की आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए हाल में कहा कि बच्चों से संबंधित अश्लील वीडियो देखना पॉक्सो कानून के तहत अपराध नहीं बनेगा. जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत अपराध का मामला तभी बन सकता है जब किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लीलता के लिए किया गया हो.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि आरोपी ने अश्लील वीडियो देखे थे लेकिन अश्लील उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया. कोर्ट की राय में इसे केवल आरोपी व्यक्ति का नैतिक पतन माना जा सकता है.
अगर किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लीलता के लिए किया गया हो तो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 14(1) के तहत अपराध का मामला बनता है.
क्या कहा हाई कोर्ट ने?
अदालत ने कहा, ''यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 14(1) के तहत अपराध बनाने के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लील उद्देश्यों के लिए किया गया हो. इसका मतलब है कि आरोपी व्यक्ति ने बच्चे का इस्तेमाल अश्लील उद्देश्यों के लिए किया हो.
मान लिया जाए कि आरोपी व्यक्ति ने बच्चों से संबंधित अश्लील वीडियो देखा है तो यह सख्ती से यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 14(1) के दायरे में नहीं आएगा. चूंकि उसने किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लील उद्देश्यों के लिए नहीं किया है, इसलिए इसे केवल आरोपी व्यक्ति की ओर से नैतिक पतन के रूप में माना जा सकता है.''
शख्स के मोबाइल में पाई गई अश्लील सामग्री
जांच के दौरान शख्स का मोबाइल फोन जब्त कर उसका फोरेंसिक विश्लेषण किया गया था, जिसमें पुष्टि हुई कि मोबाइल फोन में दो फाइलें थीं, जिनमें किशोर लड़कों से जुड़ी अश्लील सामग्री थी. अदालत ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 200 की धारा 67बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत अपराध का संज्ञान लिया. आरोपी ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
आईटी एक्ट की धारा 67बी के तहत आरोपों के संबंध में आरोपी की ओर से बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री प्रकाशित, प्रसारित और बनाई जानी होनी होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह धारा बच्चों से संबंधित अश्लीलता को अपराध नहीं बनाती है. अदालत ने कहा कि अधिनियम उस मामले को कवर नहीं करता है जहां एक व्यक्ति ने अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में केवल बच्चों से संबंधित अश्लील वीडियो डाउनलोड किया और बिना कुछ और किए उसे देखा.
केरल हाई कोर्ट के आदेश पर जताया मद्रास HC ने भरोसा
अदालत ने केरल हाई कोर्ट के एक आदेश पर भी भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति की ओर से अश्लील सामग्री देखना अपने आप में कोई अपराध नहीं है. इस प्रकार यह देखते हुए कि सामग्री आईटी अधिनियम या पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनाती है, अदालत ने कहा कि कार्यवाही जारी रखना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करना होगा और आरोपी के करियर के लिए एक बाधा होगी. आखिर अदालत ने आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी.
यह भी पढ़ें- केंद्रीय मंत्री निसिथ प्रमाणिक को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, नहीं गिरफ्तार कर सकती बंगाल पुलिस