Isha Foundation Case: मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार (30 सितंबर) को तमिलनाडु सरकार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण पेश करने का निर्देश दिया. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी. शिवगणनम की पीठ ने कहा कि चूंकि फाउंडेशन के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें हैं, इसलिए इस मुद्दे पर आगे विचार किया जाना चाहिए.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि कई अन्य आपराधिक मामले दर्ज हैं और आरोप लंबित हैं. संस्था के खिलाफ लगाए गए आरोपों की गंभीर प्रकृति और जिस तरह से बंदियों ने हमारे सामने बात की है, उसे देखते हुए हम यह राय बना सकते हैं कि आरोपों के पीछे की सच्चाई को समझने के लिए कुछ और विचार-विमर्श की जरूरत है.”
हाई कोर्ट ने आगे कहा, “इसलिए, याचिकाकर्ता संस्था के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करेगा और विद्वान अतिरिक्त लोक अभियोजक भी उन सभी मामलों का विवरण एकत्र करेंगे और आगे के विचार के लिए हमारे सामने रखेंगे.”
जग्गी वासुदेव की इस बात पर हाई कोर्ट को संदेह
अदालत ने इस बात पर भी गंभीर संदेह व्यक्त किया कि वासुदेव ने अपनी बेटी का विवाह क्यों कर दिया और उसे जीवन में सुखी बना दिया, लेकिन अन्य महिलाओं को भौतिक जीवन त्यागने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहे थे?
पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "हम जानना चाहते हैं कि एक शख्स जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से स्थापित किया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांतवासी का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है. यही संदेह है."
किस याचिका की सुनवाई कर रहा मद्रास हाई कोर्ट?
पीठ कोयम्बटूर के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कामराज ने अदालत में यह आरोप लगाया कि उनकी 42 और 39 साल की दो अच्छी खासी पढ़ी लिखी बेटियों का ब्रेन वॉश करक उन्हें कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में रहने के लिए मजबूर किया गया है. कामराज ने अदालत को बताया कि फाउंडेशन के अधिकारियों ने उन्हें अपने परिवारों से कोई संपर्क बनाए रखने की अनुमति नहीं दी.
उन्होंने अदालत को फाउंडेशन के खिलाफ लंबित कई आपराधिक मामलों और यौन उत्पीड़न एवं दुराचार के आरोपों की भी जानकारी दी.
इस दौरान काराज की बेटियां भी अदालत के आदेश के बाद कोर्ट में मौजूद थीं. जबकि उन्होंने कहा कि वे स्वेच्छा से फाउंडेशन में थीं और कोई भी उन्हें वहां रहने के लिए मजबूर नहीं कर रहा था, जजों ने उनसे चैंबर में बातचीत करने का निर्णय लिया. अदालत अब इस मामले की सुनवाई 4 अक्टूबर को करेगी.
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