Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने POCSO के आरोपी को ठहराया दोषी साथ ही दिया उसकी बेटियों की मदद का आदेश
Madras High Court Order On POCSO Case: मद्रास हाई कोर्ट ने POCSO के एक आरोपी को दोषी ठहराते हुए कहा कि यौन पीड़िता पर इस शख्स के हमले को "पशुवादी" कहना जानवरों के साथ भी अन्याय होगा.
Madras High Court Order On POCSO Conviction Case: मद्रास हाई कोर्ट ने POCSO के एक मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया है. कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को 8 साल की एक लड़की के गंभीर पेनेट्रेटिव (Penetrative) यौन हमले के लिए दोषी ठहराया. इस हमले में बच्ची की आंखों रक्त वाहिकाओं के फटने सहित स्थायी तौर पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चोटें पहुंची हैं. दोषी को 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है.
हालांकि इस फैसले में कोर्ट ने मानवीय पक्ष को ध्यान में रखते हुए दोषी शख्स नाबालिग बेटियों को मदद देने को कहा है. कोर्ट ने ये मदद इस आधार पर देने को कहा है कि अप्रत्यक्ष तौर पर देखा जाए तो ये दो बच्चियां भी पीड़िता (Invisible Victims) की श्रेणी में आएंगी. न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती (D Bharatha Chakravarthy) ने मंगलवार (28 फरवरी) को दिए फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की शानदार गवाही को गलत तरीके से नजरअंदाज किया और 2014 में आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया.
हाईकोर्ट ने की ट्रायल कोर्ट के आदेश की आलोचना
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों और ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले का एक साथ पढ़ने पर, यहां तक कि बहुत संयम बरतते हुए, यह कहा जाना चाहिए कि ट्रायल कोर्ट का फ़ैसला न्यायिक विवेक का अपमान है. इस तरह से मुझे किसी के अपराधी के तौर पर बरी होने फैसले को उलटने में कोई हिचकिचाहट नहीं है."
हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले के अपराधों और पीड़ित बच्ची के घर में अवैध तरीके से घुसने के लिए दोषी ठहराया. इन अपराधों के लिए न्यायालय ने उन्हें 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. बैंच ने आगे तमिलनाडु (TN) सरकार को पीड़ित को मुआवजे के तौर पर 10.5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश भी दिया.
'पीड़ित बच्ची के पूरे शरीर को दांतों से काटा'
न्यायाधीशों ने पाया कि पीड़ित बच्ची को बेहद गंभीर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा का शिकार होना पड़ा था. आरोपी ने उसके पूरे शरीर पर दांत से काट लिया था और दोषी ने यौन हमले के बाद उसका गला घोंटने की कोशिश भी की था. इससे पीड़ित बच्ची की आंखों की रक्त वाहिकाएं फट गई थीं और उसके दिमाग को ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो गई थी.
वह बेहोश हो गई और उसकी आंखों में बुरी तरह से खून बहने लगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि तिरुपुर जिले के कई लोकल अस्पतालों के डॉक्टरों के संयुक्त कोशिशों के वजह ही उसे मौत के मुंह से वापस लाया जा सका.
'यौन हमले को पशु सरीखा कहना उनका भी अपमान'
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, "यौन हमला हिंसक और बर्बर था, जिससे मासूम बच्ची को गंभीर शारीरिक घाव, चोट के निशान, खरोंच और उसके प्राइवेट पार्ट में चोट के निशान थे. मनोवैज्ञानिक रूप से, उसका पूरा व्यक्तित्व हिलकर रह गया था और वह डर गई थी. इस हमले को 'पशुवादी' कहने के लिए, यह जानवरों के साथ भी अन्याय होगा क्योंकि वे छोटे/शिशु पशुओं का यौन उत्पीड़न नहीं करते हैं."
तमिलनाडु सरकार को दोषी की बच्चियों को मदद का आदेश
मद्रास हाईकोर्ट खास तौर पर तमिलनाडु सरकार को दोषी की 3 नाबालिग बेटियों के साथ-साथ उसकी पत्नी को भी पर्याप्त वित्तीय या अन्य जरूरी मदद देने का आदेश दिया. अदालत ने कहा, " ये बच्चियां अदृश्य पीड़ित या न्याय की वजह से अनाथ" बन गए थे उनका कोई दोष नहीं."
कोर्ट ने कहा, "प्रारंभिक तौर पर यौन हमले के आरोपी के बरी होने की वजह से पूरे परिदृश्य और अधिक जटिल हो गया क्योंकि उसके बाद बरी होने के खिलाफ अपील में बरी होने के फैसले को पलट कर उसे दोषी करार दिया गया. इन बच्चों को आम तौर पर "न्याय के अनाथ" या "अदृश्य पीड़ित" या "छिपे हुए शिकार" कहा जाता है. कोर्ट ने कहा, "उन्हें बगैर किसी गलती के अनकहे दुख और अभाव में डाल दिया जाता है."
न्यायालय ने राज्य को इन नाबालिग बच्चों की शिक्षा और पोषण की लगातार सुनिश्चित करने का आदेश दिया. इसके अलावा, राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि दोषी की पत्नी के पास भी आजीविका हो. तमिलनाडु सरकार की ओर से अदालत में सरकारी एडवोकेट किशोर कुमार पेश हुए, जबकि दोषी प्रतिवादी की तरफ से एडवोकेट एम उमाशंकर पेश हुए.
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