Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार (13 मार्च) को दिवंगत जे जयललिता की सरकार दौरान 2013 और 2014 में जारी किए गए दो सरकारी आदेशों (GO) को "असंवैधानिक" घोषित कर दिया. शासनादेशों में डिप्टी पुलिस कमिश्नर (DCP) को कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई थीं, जिसके तहत डीसीपी को अपराधियों से अच्छे व्यवहार का बांड प्राप्त करने का अधिकार दिया गया था.


जस्टिस एन सतीश कुमार और जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की पीठ ने कहा, "वास्तव में, जीओ में कोई कारण नहीं है, लेकिन ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उस समय की मुख्यमंत्री ऐसा चाहती थी. निवारक हिरासत एक आवश्यक बुराई है, लेकिन आखिरकार एक बुराई ही है."


कोर्ट ने आदेशों को कहा- मनमाना
पीठ ने पाया कि डीसीपी के पास सीआरपीसी की धारा 107 से 110 के तहत शक्तियों का निहित होना "पूरी तरह से मनमाना और अनुचित" है. अदालत ने देखा कि इसने पुलिस को "जांचकर्ता, अभियोजक और न्यायाधीश की भूमिका निभाने और लोगों को जेल भेजने की शक्ति दी थी". कोर्ट ने इसे शक्तियों के बंटवारे के उल्लंघन का मामला कहा.


कोर्ट ने कहा, ''जब जांच, अभियोजन और फैसले की पूरी प्रक्रिया कार्यपालिका की एक शाखा यानी पुलिस पर हो गई है. जब खाकी और कोर्ट की जिम्मेदारी को मिलाकर एक अधिकारी पर डाल दिया जाता है, तो इसका परिणाम अराजकता होता है.''


मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
इस शासनादेश को कोर्ट ने कानून के समक्ष समानता और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत नागरिकों को मिलने वाले जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के कार्यक्राल में सितंबर 2013 और फरवरी 2014 में क्रमशः 659 और 181 नंबर के शासनादेश पारित किए गए थे.


अदालत ने कहा कि यह शासनादेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 50 के प्रावधानों और मद्रास जिला पुलिस अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है. नतीजतन, जीओ जारी करने से पहले जो यथास्थिति बनी हुई थी, वह बहाल हो जाएगी.


यह भी पढ़ें


'...उनके मंसूबों को नाकाम करने की जरूरत', हिंदुत्व का जिक्र कर RSS की प्रतिनिधि सभा ने पारित किया प्रस्ताव