चेन्नई: सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ दायर याचिका पर आज मद्रास हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. हाई कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से 18 फरवरी तक जवाब मांगा है. तमिलनाडु की विपक्षी पार्टी डीएमके ने 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के खिलाफ 18 जनवरी को हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. पार्टी ने कहा है कि यह प्रावधान संविधान के ‘मूल ढांचे का उल्लंघन’ करता है.





डीएमके ने अपनी याचिका में दावा किया है कि आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य उन समुदायों का उत्थान कर सामाजिक न्याय करना है, जो सदियों से शिक्षा या रोजगार से वंचित रहे हैं.


पार्टी ने कहा है, ‘‘ इस तरह, समानता के नियम के अपवाद के रूप में केवल आर्थिक योग्यता का इस्तेमाल करना और सिर्फ आर्थिक मापदंड के आधार पर आरक्षण मुहैया करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है.’’ याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा भी मूल ढांचे का हिस्सा है और उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में यह कहा है.’’


याचिका में कहा गया है, ‘‘हालांकि, तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (राज्य के तहत शैक्षणिक संस्थाओं में सीटों और नौकरियों में नियुक्ति एवं तैनाती में आरक्षण) कानून, 1993 के कारण तमिलनाडु में यह सीमा 69 प्रतिशत है. इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दिया गया है.’’


आगे कहा गया है कि राज्य में आरक्षण 69 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता. हालांकि, हालिया संशोधन ने आरक्षण को बढ़ा कर 79 प्रतिशत करने को संभव बनाया गया और यह ‘असंवैधानिक’ होगा.