एमके स्टालिन की बढ़ी मुश्किलें! मद्रास हाई कोर्ट ने खोल दी इस पुराने केस की फाइल
Gutkha controversy: एडवोकेट एनआर एलंगो ने कोर्ट को बताया कि विशेषाधिकार हनन के नोटिस राजनीति से प्रेरित थे. चूंकि, जुलाई 2017 में घटना के तुरंत बाद डीएमके विधायकों को नोटिस जारी नहीं किए गए थे.
Gutkha controversy: मद्रास हाई कोर्ट ने बुधवार (31 जुलाई) को एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 2017 में तमिलनाडु विधानसभा के अंदर गुटखा पाउच दिखाते समय विशेषाधिकार हनन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी के 17 अन्य विधायकों को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया गया था.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट के जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस सी. कुमारप्पन की खंडपीठ ने 2021 में पारित एकल पीठ के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें इस तरह के नोटिस और कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी. खंडपीठ ने मामले को विशेषाधिकार समिति और अध्यक्ष के पास वापस भेजते हुए कहा कि “विशेषाधिकार हनन जैसे मुद्दे सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किए जा सकते” क्योंकि राज्य में नई सरकार सत्ता में आ गई है.
जानें क्या है मामला?
हाई कोर्ट का ये आदेश तत्कालीन विधान सभा सचिव और विशेषाधिकार समिति के तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा जनवरी 2021 में दायर 19 रिट अपीलों के एक बैच में पारित किया गया था, जिसमें डीएमके विधायकों को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द करने के एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी.
तमिलनाडु में गुटखा रखने पर प्रतिबंध नहीं
इस महीने की शुरुआत में डीएमके विधायकों की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट एनआर एलंगो ने कोर्ट को बताया था कि सीएम स्टालिन और विधायकों ने 19 जुलाई, 2017 को विधानसभा में गुटखा के पाउच दिखाए थे, ताकि यह खुलासा किया जा सके कि प्रतिबंधित उत्पाद प्रदेश भर में छोटी दुकानों में भी आसानी से उपलब्ध है. एलांगो ने आगे तर्क दिया कि तमिलनाडु सरकार के आदेश के अनुसार गुटखा रखने पर प्रतिबंध नहीं है, केवल इसके बनाने, बेचने और स्टोरेज करने पर बैन है.
विशेषाधिकार हनन के नोटिस राजनीति से थे प्रेरित- एनआर एलंगो
सीनियर एडवोकेट एनआर एलंगो ने कोर्ट को बताया कि विशेषाधिकार हनन के नोटिस राजनीति से प्रेरित थे, क्योंकि जुलाई 2017 में घटना के तुरंत बाद डीएमके विधायकों को नोटिस जारी नहीं किए गए थे. इसके बजाय, ये कार्यवाही 28 अगस्त, 2017 को ही शुरू की गई. हालांकि, डिवीजन बेंच ने पूछा था कि क्या कोर्ट ऐसे विशेषाधिकार हनन नोटिस और कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकता है?
मद्रास HC ने कार्यवाही बहाल करने का दिया आदेश
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता पीएस रमन ने सुझाव दिया कि मामला विशेषाधिकार समिति को भेजा जा सकता है. रमन ने कोर्ट को बताया था कि चूंकि 15वीं विधानसभा को मई 2021 में राज्यपाल ने भंग कर दिया था, इसलिए उसके कार्यकाल के दौरान शुरू की गई सभी कार्यवाही तब तक खत्म हो गई जब तक कि वे अंतिम रूप से नहीं पहुंच गईं.
हालांकि, मौजूदा मामले में, चूंकि एकल न्यायाधीश ने विधायकों को विशेषाधिकार समिति द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया था, इसलिए कार्यवाही अंतिम रूप से नहीं पहुंची थी. इसके बाद आज हाई कोर्ट ने कार्यवाही बहाल करने का आदेश पारित किया.
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