'बहुत तकलीफ हुई... मदरसों को लेकर हमारी दो बड़ी लड़ाईयां थीं', सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले प्रियंक कानूनगो?
प्रियंक कानूनगो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट मदरसों पर पढ़ने वाले बच्चों के संवैधानिक अधिकार पर वह मौन रहा गया है, जबकि मदरसे चलाने का अधिकार सुरक्षित रखने के लिए लंबा फैसला सुना दिया.
नेशनल कमीशन फोर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के पूर्व चेयरपर्सन प्रियंक कानूनगो ने मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कहा है कि उन्हें तकलीफ हुई है. उन्होंने कहा कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के संवैधानिक अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट मौन रह गया, जिससे बड़ा दुख हुआ है. हालांकि, मदरसों द्वारा कामिल और फाजिल डिग्री दिए जाने पर रोक लगाने के कोर्ट के फैसले पर उन्होंने काफी खुशी जताई है.
न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए प्रियंक कानूनगो ने कहा कि मदरसा चलाने के अधिकार पर तो कोर्ट ने इतना लंबा फैसला सुना दिया, लेकिन वहां पढ़ने वाले बच्चों के संवैधानिक अधिकार पर चुप रहा. उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैरा 76 में प्रमति एजुकेशन सोसाइटी एंड अदर्स बनाम केंद्र सरकार के मामले का जिक्र किया गया है. यहां पर प्रमति मामले का जिक्र किया है तो हमारी अपेक्षा ये थी कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय लार्जर बेंच को केस ट्रांसफर करेंगे. जब पहले एक संविधान पीठ ने फैसला दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि माइनॉरिटी स्कूल राइट टू एजुकेशन एक्ट (RTA) पर लागू नहीं होगा और वहां सिर्फ स्कूल तक की बात थी. हालांकि, ये जो फैसला है वो मदरसे पर है और मदरसा आरटीए से बाहर है.'
उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्राइमरी रीडिंग जो हमने की है, मदरसों पर पढ़ने वाले बच्चों के संवैधानिक अधिकार पर वह मौन रहा गया है, जो बड़ा दुख देने वाला है. आपने माइनॉरिटी के मदरसा चलाने के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए तो बहुत लंबा फैसला दिया है, लेकिन बच्चों के शिक्षा का अधिकार पाने के मामले में जो मौन है, ये तकलीफ देता है.
प्रियंक कानूनगो ने फिर कहा कि दूसरी बात हमारी बड़ी लड़ाई इस बात की थी कि मदरसों में सरकार की फंडिंग से हिंदू बच्चों को इस्लामिक दीनी तालीम नहीं दी जानी चाहिए. हम संविधान के अनुच्छेद 28(3) की बात यहां पर करते थे, उसको सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है, हम उनके बहुत-बहुत आभारी हैं.
उन्होंने कहा, 'कोर्ट ने बड़े स्पेसिफिकली पैरा 86 में इस बात का जिक्र करके इसको स्थापित कर दिया है. बड़ी ही तसल्ली की बात है ये मदरसे वाले कालिम-फाजिल की डिग्री बेचने के नाम पर जो युवाओं को गुमराह कर रहे थे वो धंधा बंद हो गया. तो सर्वोच्च न्यायालय ने ये कह दिया कि कालिम-फाजिल बनाने का काम मदरसों का नहीं है और ये बंद कर दिया. इस बात की मुझे हार्दिक प्रसन्नता है क्योंकि बच्चे ये मानकर अपना भविष्य खराब नहीं करेंगे कि हम कालिम-फाजिल बनकर कोई बहुत बड़ी तालीम हासिल कर लेंगे.'
उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने अपने कंक्लूजन में ये बात भी बड़ी स्पष्टता से कही है कि राइट टू एजुकेश एक्ट, जो आर्टिकल 21(ए) संविधान के द्वारा बच्चों को दिया गया है, उसकी समानता के साथ ही धार्मिक शिक्षा दी जाएगी. अब ये सरकार का काम है कि वो यह सुनिश्चित करे कि बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे. बच्चे स्कूल में 4 घंटा पढ़ाई करें और उसके बाद वह दीनी तालीम कहीं भी कैसे भी लें, लेकिन बच्चों का स्कूल जाना तय करना सरकार का काम है.
प्रियंक कानूनगो ने यह भी कहा, 'अब नए सिरे से कानून यूपी सरकार को बनाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने जिसको असंवैधानिक बताया है, उसको हटाने के लिए कानून में संशोधन करना होगा. जब संशोधन लिखा जाएगा और यूपी विधानसभा में लाया जाएगा, मुझे पूरा विश्वास है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार हिंदू बच्चों को दीनी तालीम देने के मामले पर सख्त प्रतिबंध लगाएगी. बच्चों को फंडामेंटल एजुकेशन मिले, ये नए संशोधन में सुनिश्चित किया जाए.'
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