कम हो गईं मदरसा बोर्ड की शक्तियां? पढ़ाने की इजाजत तो मिली पर छिन गया ये अहम अधिकार
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को अभी तक अंडर ग्रेजुएशन के लिए कामिल नाम से और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए फाजिल नाम से डिग्री दी जाती रही हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर, 2024) को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को मान्यता तो दे दी है, लेकिन साथ में यह भी कहा है कि मदरसे बच्चों को डिग्री नहीं दे सकेंगे. यानी मदरसों में छात्र बारहवीं तक की तालीम हासिल कर सकेंगे और अंडर ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए फाजिल और कामिल नाम से दी जाने वाली डिग्री नहीं ले सकेंगे क्योंकि यह यूजीसी नियम के खिलाफ है.
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि मदरसा एक्ट राज्य विधानसभा की विधायी क्षमता के अंतर्गत है. हालांकि, मदरसा एक्ट के प्रावधान जो फाजिल और कामिल जैसी हायर एजुकेशन डिग्री रेगुलेट करना चाहते हैं, वे असंवैधानिक हैं क्योंकि ये यूजीसी एक्ट का उल्लंघन करते हैं.
मदरसा बोर्ड कामिल नाम से अंडर ग्रेजुएशन और फाजिल नाम से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री देता रहा है. इसते तहत डिप्लोमा भी किया जाता है, जिसे कारी कहते हैं. इसके अलावा मुंशी मौलवी (10वीं क्लास) और आलिम (12वीं) की परीक्षा भी करवाता रहा है.
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मदरसा बोर्ड की ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पर सवाल खड़े किए कहा कि इसके आधार पर युवाओं को राज्य और केंद्र सरकार में नौकरी नहीं मिल पाती है. मदरसों में हायर एजुकेशन के लिए फाजिल और कामिल डिग्री हैं. राज्य सरकार ने तर्क दिया कि मदरसों की ओर से दी जाने वाली फाजिल और कामिल की डिग्री न तो यूनिवर्सिटी की डिग्री के बराबर है और न ही बोर्ड की ओर से पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के समकक्ष है. ऐसे में मदरसा बोर्ड से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले छात्र सिर्फ उन्हीं नौकरियों के लिए योग्य हो सकते हैं, जिनके लिए हाई स्कूल या इंटरमीडिएट की योग्यता की जरूरत होती है.
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला जो सुप्रीम कोर्ट ने पलटा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने 22 मार्च को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक बताते हुए कहा था कि इससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है. कोर्ट ने राज्य सरकार को मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य एजुकेशन सिस्टम में शामिल करने का भी आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के पास धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या किसी विशेष धर्म के लिए स्कूली शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है.
अंशुमान सिंह राठौड़ नाम के एक शख्स ने मदरसा बोर्ड कानून के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अंजुमन कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर आज फैसला आया है.
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