Three Mafia Don: एक दौर में खौफ का प्रयाय रहा कुख्यात माफिया डॉन मुख्तार अंसारी शनिवार (30 मार्च) को सुपुर्द-ए-खाक हो चुका है. उसके दफन होते ही माफिया सरगनाओं की उस तिकड़ी का अंत हो गया जो कभी यूपी-बिहार में खौफ का दूसरा नाम हुआ करते थे. इस तिकड़ी में दो अन्य डॉन थे अतीक अहमद और मोहम्मद शहाबुद्दीन. 


मोहम्मद शहाबुद्दीन ने महज 53 साल की उम्र में 1 मई 2021 को दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में कोरोना संक्रमण से दम तोड़ दिया था. 63 साल के मुख्तार अंसारी की मौत कॉर्डिएक अरेस्ट की वजह से हुई है. वहीं अतीक अहमद की प्रयागराज के मेडिकल कॉलेज में पुलिस हिरासत में बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. उस वक्त उसकी उम्र करीब 60 साल थी.


माफिया सरगनाओं ने गुनाहों की दुनिया बनाई, बसाई और हत्याओं से आबाद रखा!


यूं कहें तो यूपी और बिहार में गुनाहों की दुनिया बनाने, बसाने और कई हत्याओं के जरिए इसे आबाद रखने वाली इस तिकड़ी का अंजाम कमोबेश एक जैसा ही हुआ है. इन तीनों माफिया सरगनाओं की मौत विवादास्पद हालातों में अस्पताल परिसरों में ही हुई. जहां एक ओर कत्ल और खूनखराबा को खेल समझने वाले मुख्तार अंसारी और मोहम्मद शहाबुद्दीन ने बीमारी के कारण दम तोड़ा तो वहीं अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को इस तरह मौत के घाट उतार दिया गया जैसा वे किया करते थे. एक तरह से यह उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘बाहुबलियों’ के एक युग का अंत है.


एक जैसे थे तीनो डॉन के अपराध


मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और शहाबुद्दीन तीनों के अपराध एक जैसे रहे हैं. दर्जनों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले इन तीनों ने उत्तर प्रदेश से बिहार तक गुनाहों की सीढ़ियां चढ़कर राजनीति में अपना एक युग कायम किया था. पूरा राज्य उन्हें माफिया के रूप में जानता था, जो जमीन पर कब्जा करते थे, भाड़े पर हत्याएं करते थे, अपहरण और जबरन वसूली ही उनके अस्तित्व का आधार था.


राजनीतिक परिवर्तन होते ही शुरू हो गई थी माफिया के अंत की शुरुआत


एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने राजनीतिक लाभ के लिए अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी पर भरोसा किया, वहीं बिहार में यही काम राष्ट्रीय जनता दल ने शहाबुद्दीन के लिए किया. हालांकि दोनों राज्यों में राजनीतिक परिवर्तन होते ही माफिया लोगों के लिए अंत की शुरुआत हो गई थी. गाजीपुर में बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय और प्रयागराज में बसपा के विधायक राजू पाल की जिस तरह सरेआम दिनदहाड़े अंधाधुंध फायरिंग करके हत्या की गई, उसके बाद अतीक और मुख्तार के दुर्दिन की शुरुआत हो गई थी. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद ही इनके ताबूत में अंतिम कील ठोकी गई.


वहीं शहाबुद्दीन ने पत्रकार राजदेव रंजन की सरेआम हत्या करवाई और चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहला कर मौत के घाट उतारा जिसके बाद प्रशासन ने उस पर नकेल कसना शुरू कर दिया था. बाद में लाल यादव को अपना नेता और नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताकर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली. जिसके बाद उसे बिहार से तिहाड़ जेल भेज दिया गया और फिर वहां से लौटी तो उसकी लाश.


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