नई दिल्ली: यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने ने सिर्फ नोएडा में ना सिर्फ नई मेट्रो लाइन जोड़ी बल्कि 29 साल पुराने अंधविश्वास को भी तोड़ डाला. पिछले 29 साल से कोई मुख्यमंत्री कुर्सी जाने के डर से नोएडा आने से कतराता था.


उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में माना जाता है कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आया उसकी कुर्सी चली जाती है. नोएडा के साथ इस अंधविश्वास की कहानी की शुरुआत हुई थी साल 1988 से जब नोएडा से लौटते ही वीर बहादुर सिंह की मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन गई थी. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा चल पड़ी कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आएगा उसकी कुर्सी जानी तय है.


यूपी के पिछले सीएम अखिलेश यादव पांच साल कहते रहे कि उन्हें नोएडा आने से परहेज नहीं है लेकिन वो कभी नोएडा नहीं आए. मुलायम सिंह यादव भी सीएम रहते नोएडा नहीं आए. इसके अलावा बीजेपी के कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह भी बतौर मुख्यमंत्री कभी नोएडा नहीं आए.


अंधविश्वास की इस सोच पर पीएम नरेंद्र मोदी ने हमला किया. दिल्ली मेट्रो की मेजेंटा लाइन का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि अंध श्रद्धा और मान्यताओं में कैद होकर कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि ऐसे में कहीं जाने से कुर्सी ना चली जाए ,अगर मुख्यमंत्री इस डर से जीते हैं तो ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री बनने का कोई हक़ नहीं है.


पिछले 29 साल के दौर में सिर्फ मायावती ऐसी मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने इस नोएडा के अंधविश्वास को नहीं माना. मायावती भी नोएडा आने के बाद 2012 में सत्ता से हटीं तो फिर अब तक वापसी नहीं हुई. उनके दोबारा ना चुने जाने में भी लोगों ने इस अंधविश्वास से जोड़ा था. लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस अंधविश्वास को तोड़ डाला


साल 1976 में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए नोएडा यानी नवीन ओखला इंड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी का गठन किया गया था. नोएडा में करीब 11 लाख की आबादी रहती है. नोएडा को उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है. नोएडा की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ये यूपी से सबसे ज्यादा आयकर नोएडा से ही इकट्ठा होता है. लेकिन इसके बाद भी यूपी के मुख्यमंत्री नोएडा आने में परहेज करते थे. इस अंधविश्वास को तोड़ सीएम योगी ने नया संदेश दिया है.