चेन्नईः महाबलीपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के स्वागत सत्कार की तैयारियों के बीच संकेत इस बात के भी हैं कि यदि बातचीत के दौरान कश्मीर को लेकर कोई तीर चला तो मेज़बानी के लिहाज में वो खाली नहीं जाएगा. जिनपिंग की यात्रा से ऐन पहले कश्मीर को लेकर चीन की तरफ से आए हालिया बयानों पर भारत ने भले ही कोई जवाब नहीं दिया हो. मगर अनौपचारिक वार्ता में होने वाली बातचीत के दौरान ज़रूरत महसूस होने पर कश्मीर को लेकर भारत की लाल रेखाएं भी साफ की जा सकती हैं.


बातचीत अनौचारिक माहौल में हो रही है और इसके लिए कोई तय एजेंडा भी नहीं है. यानी दोनों नेता किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं. लेकिन यदि सैद्धांतिक मुद्दों पर चीन की तरफ से कोई ऐसी बात कही जाती है जो भारतीय मत के विपरीत है तो उसका जवाब दिया जाना स्वाभाविक है.


सूत्रों के मुताबिक कश्मीर समेत किसी भी मुद्दे पर एक तरफ़ा बात सम्भव नहीं है. ऐसे में चीन की तरफ से कश्मीर पर पाकिस्तान की पैरवी को खाली नहीं जाने दिया जाएगा. बल्कि बातचीत की मेज पर ही चीनी नेतृत्व के आगे मामले का लेकर भारत की स्थिति रखी जाएगी. खासतौर पर भारत की सम्प्रभुता के मुद्दों पर किसी चुप्पी का सवाल नहीं है.


जिनपिंग-इमरान की हो चुकी है मुलाकात


महत्वपूर्ण है कि महाबलीपुरम आने से दो दिन पहले ही चीनी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा कि चीन कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर पूरा ध्यान दे रहा है. कश्मीर मुद्दा इतिहास का बचा हुआ अंश है और इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर और सबंधित सुरक्षा परिषद प्रस्तावों के आधार पर उचित और शांति से हल किया जाना चाहिए.


ज़ाहिर है चीन के इस बयान का नपा-तुला अगर सीधा जवाब भारत की तरफ से आया. विदेश मंत्रालय प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, विदेश मंत्रालय प्रवक्ता ने कहा हमने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के बीच हुई वार्ता संबंधी रिपोर्ट देखी है जिसमें कश्मीर को लेकर उनकी चर्चा का उल्लेख है.


भारत की स्थिति स्पष्ट और सतत है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. चीन इस बारे में भारत की स्थित जानता है. भारत के आंतरिक मामलों में बोलने का अधिकार किसी देश को नहीं है.


कश्मीर के मुद्दे को कुरेदने का प्रयास


ज़ाहिर है कि इन बयानों की पृष्ठभूमि में हो रही महाबलीपुरम शिखरवार्ता के दौरान इस संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता कि चीनी खेमा की तरफ से कश्मीर के मुद्दे को कुरेदने का प्रयास हो. खासकर जम्मू-कश्मीर से जुड़े उन मुद्दों को कुरेदे जिनके बारे में भारत ने पिछले कुछ हफ्तों में कई बार अपनी स्थिति दोहराई है.


भारत-चीन शिखर वार्ता की तैयारियों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद370 हटाने और लद्दाख व जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के अपने फैसले पर भारत कई बार स्थिति स्पष्ट कर चुका है.


विदेश मंत्री एस जयशंकर अगस्त 2019 में ही अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान चीनी नेतृत्व को बता चुके थे इस निर्णय से भारत ने न तो सीमा बदली है और न ही द्विपक्षीय सीमा मामलों में कोई अतिरिक्त दावा जोड़ा है. यह बात और है कि इस समझाइश के बावजूद बीते दिनों कई मौकों पर कश्मीर को लेकर चीन के ऐसे बयान आए जो भारत को चुभने वाले थे. ऐसे में शीर्ष स्तर से भी भारत अपना नजरिया साफ बताने से कोई परहेज नहीं करेगा.


मेहमान चीनी नेता की तरफ से भारत-पाकिस्तान बातचीत की किसी पैरवी का प्रयास भी लिहाज की चुप्पी में नहीं जाएगा इसके पूरे संकेत हैं. सूत्रों के मुताबकि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में एक अहम पहलू सीमापार आतंकवाद का है जिसे चीन समेत कोई भी देश नज़रंदाज़ नहीं कर सकता.


ध्यान रहे कि जून 2019 को किर्गीज़स्तान के बिश्केक में हुई पिछले मुलाकात में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आगे यह साफ कर दिया था कि आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई के बिना पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत सम्भव नहीं है.


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