Maha Kumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान आज संपन्न हो रहा है और इस अवसर पर निरंजनी अखाड़े के संत महात्मा अमृत स्नान के लिए संगम की ओर प्रस्थान कर रहे हैं. इस मौके पर निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने विशेष चर्चा की जिसमें उन्होंने इस धार्मिक अवसर के महत्व और संत महात्माओं की साधना के बारे में बताया.


अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने बताया कि अमृत स्नान साधु-संतों के जीवन में विशेष स्थान रखता है. ये स्नान एक वर्ष की कठिन साधना, तपस्या और आस्था का परिणाम होता है. उन्होंने कहा कि इस पवित्र स्नान के दौरान संतों को वह आनंद और शांति मिलती है जिसे शब्दों से बता पाना असंभव है. महात्मा ये स्नान केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं बल्कि सनातन धर्म की पवित्रता को बनाए रखने के लिए भी करते हैं.


महाकुंभ के महत्व पर क्या बोले अवधेशानंद गिरी


महाकुंभ के इस महत्वपूर्ण अवसर पर अवधेशानंद गिरी महाराज जी ने बताया कि आज पूरे देश और दुनिया से करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज में इकट्ठे हो रहे हैं. महात्माओं और श्रद्धालुओं के संगम से ये भूमि अब आध्यात्मिक वैभव से भर चुकी है. ये दृश्य भारत के इतिहास और संस्कृति को जीवित रखने का प्रतीक है. स्वामी जी ने इस अवसर पर धार्मिक जागरूकता बढ़ाने के लिए भी संदेश दिया और कहा कि गंगा नदी की पवित्रता को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है.


प्रयागराज के संगम तट पर आज लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे हैं. स्वामी अवधेशानंद जी ने बताया कि गंगा के तट पर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के साथ भगवान का पूजन कर रहे हैं. उन्होंने गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने के दौरान संतों के साथ सभी भक्तों को अपने जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक शांति की अनुभूति हो रही है.


विदेशी श्रद्धालुओं का सनातन धर्म से जुड़ाव


स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण बात शेयर की कि महाकुंभ में केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आकर इस धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये घटनाएं केवल भारतीय संस्कृति को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सनातन धर्म से जुड़ने का अवसर प्रदान कर रही हैं. ये दिखाता है कि सनातन धर्म की आभा और इसकी पवित्रता का प्रभाव विदेशों में भी महसूस किया जा रहा है.


स्वामी जी ने महाकुंभ के इस धार्मिक समागम से समाज को भी एक अहम संदेश दिया. उनका कहना था कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम से केवल आध्यात्मिक शक्ति ही नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों की भी पुनः पुष्टि होती है. गंगा की रेती पर आज लाखों श्रद्धालु दिख रहे हैं जो अपने जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की शक्ति को महसूस कर रहे हैं.


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