वाराणसी: काशी में त्रिपुरारी महामृत्यंजय का एक ऐसा मंदिर है जिसका कपाट ग्रहण से पहले सूतक काल में नहीं बंद किया जाता है. वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में से एक महामृत्युंजय मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए ग्रहण काल से मात्र कुछ देर पहले बंद किया जाता है. मान्यता के अनुसार सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले और चन्द्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाता है.
वाराणसी में सभी मंदिरों के कपाट सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले रात 8 बजे बंद किए गए. सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक काल लगा जिसमें मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए. मंदिर के कपाट सूर्य ग्रहण के मोक्ष के बाद आज 11:30 बजे खोले गए. सूर्य ग्रहण के कारण श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का कपाट सुबह 6 बजे से दिन के साढ़े ग्यारह बजे तक बंद रहे. साल का अंतिम सूर्य ग्रहण पौष कृष्ण अमावस्या आज 2 घंटे 53 मिनट तक रहा.
वाराणसी में महामृत्युंजय मंदिर के प्रधान पुजारी सोमनाथ दीक्षित ने बताया कि इस मंदिर में भगवान का विग्रह स्वयंभू है और यह खुद मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले महामृत्युंजय जी हैं. महामृत्युंजय मंदिर की शुरू से परंपरा है कि सूतक काल में ग्रहण लगने से कुछ देर पहले ही मंदिर का कपाट श्रद्धालुओं और भक्तों के लिए बंद किया जाता है और ग्रहण उग्रह होने के बाद भगवान का विधि विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद दुबारा मंदिर दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है. सोमनाथ दीक्षित ने कहा कि ईश्वर को कोई ग्रहण छूता नहीं है यह सांसारिक लोकाचार है. ऋषि मुनियों से लेकर अनादि काल से यह परंपरा है. बाबा महामृत्युंजय स्वयंभू हैं दुनिया में अपनी तरह का यह अकेला मंदिर है.
धर्माचार्य बाबा बालक दास ने बताया की मृत्यु पर भी अभय देने वाले महामृत्युंजय जिन्होंने समुद्र मंथन के समय हलाहल विष धारण करके पूरी पृथ्वी को जलने से बचाया था. भगवान शंकर का महामृत्युंजय जाप जब व्यक्ति अकाल मृत्यु होने की स्थिति में पहुंचता है तो महामृत्युंजय जप कराया जाता है और उससे ईश्वर की कृपा से मृत्यु भी टल जाती है. इसलिए ग्रहण के सूतक का भगवान पर कोई बहुत असर नहीं रहता है श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भी केवल ग्रहण काल में ही बंद होता है और सूर्य ग्रहण में सूतक 12 घंटे का होता है.
बाबा बालक दास के अनुसार भगवान शंकर ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें मृत्यु से लेकर काल, काम क्रोध लोभ मोह हर चीज पर विजय प्राप्त है. ऐसे देखा जाए तो भगवान शंकर पर किसी की नहीं चलती लेकिन सृष्टि के नियम के हिसाब से परमात्मा की रची हुई सृष्टि कुछ के अधीन होकर भगवान शंकर चलाते हैं. इसलिए भगवान पर किसी तरह की मान्यताएं और नियम लागू नहीं होता है. उनका महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला है लेकिन फिर भी भगवान शंकर सृष्टि की रचना को स्वीकार किया है.
ये भी पढ़ें
सूर्य ग्रहण 2019: खण्डग्रास सूर्य ग्रहण का किस राशि पर क्या रहेगा असर जानें, यहां
धनु राशिफल 2020: नया साल धनु राशि वालों के लिए कैसा रहेगा जानें यहां, सूर्य ग्रहण समस्या लेकर आ सकता है