नई दिल्ली: महाराष्ट्र में ठाकरे मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है. वो भी 32 दिनों बाद. एनसीपी के अजित पवार डिप्टी सीएम बन गए हैं. जबकि आदित्य ठाकरे को अपने पिता की सरकार में कैबिनेट मंत्री की कुर्सी मिली है. लेकिन गठबंधन में ऑल इज वेल नहीं है. खबर है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में कुछ ठीक नहीं चल रहा है. महीने भर में ही महाविकास अघाड़ी में दरारें नज़र आने लगी हैं. मंत्रियों के बीच विभागों को लेकर खटपट है. मंत्री न बनाए जाने से कुछ नेता नाराज़ हैं. एनसीपी से कांग्रेस नाराज़ है. डिप्टी सीएम बनाए जाने पर भी अजित पवार अंदर से खुश नहीं हैं. शिव सैनिकों का एक गुट पिता पुत्र के सरकार में चले जाने से ख़फ़ा हैं. सेना के कई नेताओं को लगता है कि सरकार तो शरद पवार चला रहे हैं. नाराज़गी क़िस्म क़िस्म की है.
शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन से जोड़ने वाले दो नेताओं का ही पत्ता कट गया है. शिवसेना के सांसद संजय राउत के भाई सुनील को मंत्री नहीं बनाया गया. वे मुंबई के विक्रोली से दूसरी बार विधायक बने हैं. संजय राउत मन ही मन दुखी हैं. लेकिन खुल कर बोलने वाले संजय अभी मौन हैं. पृथ्वीराज चव्हाण अपना दुखड़ा किससे कहें? कभी महाराष्ट्र के सीएम रहे चव्हाण मंत्री बनने को बेताब थे. लेकिन मौक़ा मिल गया अशोक चव्हाण को. पृथ्वीराज ने ही सबसे पहले शिवसेना के साथ सरकार बनाने की वकालत की थी.
उद्धव ठाकरे की सरकार में आदित्य ठाकरे के मंत्री बनने का मैसेज अच्छा नहीं गया है. मातोश्री के करीबी भी इस फ़ैसले से नाखुश हैं. मुंबई के जिस बंगले में ठाकरे परिवार रहता है, उसी का नाम मातोश्री है. सेना में नेताओं के एक ख़ेमे का मानना है कि परिवार सत्ता अपने ही पास रखना चाहता है. पहली बार विधायक बनकर भी आदित्य कैबिनेट मंत्री बन गए हैं. विधान परिषद में उपाध्यक्ष नीलम गोरे को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली. वे शिवसेना की पुरानी नेता रही हैं. फडणवीस सरकार में शिवसेना के कोटे से मंत्री रहे दीपक केसरकर और रवीन्द्र राइकर का भी पत्ता इस बार कट गया. दिवाकर राउते और रामदास कदम जैसे शिवसेना के सीनियर लीडर बस इंतज़ार ही करते रह गए. विदर्भ में दिवाकर और कोंकण इलाक़े में कदम की अच्छी पकड़ है. शिवसेना की तरफ़ से किसी भी दलित और आदिवासी नेता को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई.
कांग्रेस में भी कम असंतोष नहीं है. सुनील केदार को मंत्री बना दिया गया है. नागपुर से विधायक केदार पर को-ऑपरेटिव में 300 करोड़ के घोटाले का आरोप है. असलम शेख़ के मंत्री बनने से पार्टी के मुस्लिम नेता नाराज़ हो गए हैं. मुंबई के मलाड से शेख़ कांग्रेस के विधायक हैं. एनसीपी में भी घमासान मचा है. अजित पवार डिप्टी सीएम बनने पर भी दुखी हैं. उनके लोगों को मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया. अजित अपने करीबी नेताओं अन्ना बनसोडे, मकरंद पाटिल और नीलेश लंकें को मंत्री बनाना चाहते थे. लेकिन शरद पवार नहीं माने. शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच मंत्रियों को लेकर एक फ़ार्मूला बना है. सेना को सीएम के अलावा 15 मंत्री मिले हैं. एनसीपी को डिप्टी सीएम के साथ-साथ 15 मंत्री मिले हैं. कांग्रेस को स्पीकर के अलावा 12 मंत्रियों का पद मिला है. शिव सेना के 56, एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं.
तनातनी सिर्फ़ मंत्रिमंडल को लेकर ही नहीं, मुद्दों पर भी है. वैसे भी शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में बस एक ही बात कॉमन है. बीजेपी का विरोध. बस इसी बुनियाद पर महाराष्ट्र में नया गठबंधन बन गया है. नागरिकता क़ानून को लेकर कांग्रेस और शिवसेना के मतभेद को सबने देखा. वीर सावरकर को लेकर भी दोनों पार्टियों में ठनी हुई है. राहुल गांधी के चुनावी मंच से सावरकर पर कटाक्षों को शिव सैनिक अब तक पचा नहीं पाए हैं. कांग्रेस नेता राजीव सातव ने तो सीधे-सीधे सीएम उद्धव ठाकरे से ही ठान ली. उन्होंने ट्वीट कर ठाकरे के फ़ैसले का विरोध किया. किसानों की क़र्ज़ माफ़ी वे बिना शर्त चाहते हैं. लेकिन ठाकरे सरकार ने किसानों का क़र्ज़ कुछ शर्तों के साथ मंज़ूर किया है. वैसे भी एक पुरानी कहावत है ''तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा.''
यह भी पढ़ें-
महाराष्ट्र: ड्रामेदार शपथग्रहण ! कहीं खुशी, कहीं गम... किसी के गुनाह माफ तो किसी पर भड़के राज्यपाल