इमरजेंसी के दौरान महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बाल ठाकरे के सामने रखी थीं ये दो शर्तें
जरा कुछ दशक पीछे चलिए.. महाराष्ट्र में गैर मराठियों का वर्चस्व था. बताया जाता है कि ज्यादातर सरकारी ऊंचे ओहदे दक्षिण भारतीयों के पास थे. उनके इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए बाल ठाकरे ने नारा दिया ‘लुंगी हटाओ पूंगी बजाओ’.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सियासत का जिक्र होते ही ठाकरे परिवार का ख्याल आना स्वाभाविक है. ठाकरे परिवार के राजनीतिक प्रभाव को समझने के लिए बस इतना जान लीजिए बिना विधायक, सासंद बने ही करीब चार दशकों से महाराष्ट्र की सियासत को यह परिवार प्रभावित कर रहा है. गैर मराठियों के खिलाफ आवाज उठाकर बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपनी तेजी से पहचान बनाई. बाल ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे पार्टी की कमान संभाल रहे हैं.
जरा कुछ दशक पीछे चलिए.. महाराष्ट्र में गैर मराठियों का वर्चस्व था. बताया जाता है कि ज्यादातर सरकारी ऊंचे ओहदे दक्षिण भारतीयों के पास थे. उनके इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए बाल ठाकरे ने नारा दिया ‘लुंगी हटाओ पूंगी बजाओ’. मराठी मानुष हमलावर हो गया. सरकारी दफतरों, गैर मराठी लोगों पर हमले शुरू होने लगे. बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को अपनी पार्टी शिवसेना बनाई. दादर के शिवाजी पार्क में दशहरे के दिन पहली रैली आयोजित की गई.
पार्टी बनी.. चुनावी मैदान में उतरने के बाद ही सियासी दल की सफलता तय होती है. लोगों की उम्मीद का अंदाजा आप इसी से लगा लीजिए कि थाणे म्युनिसिपल चुनाव में शिवसेना ने 40 में से 15 सीटों पर कब्जा कर लिया. गिरगांव और दादर की जनता ने बाल ठाकरे में भरोसा जताया. इसके बाद बाल ठाकरे की मराठियों के बीच लगातार लोकप्रियता बढ़ती गई. गैर मराठियों के खिलाफ नोंकझोंकी की खबरें तैरने लगीं. मराठियों के बीच बढ़ती लोकप्रियता को बरकरार रखते हुए बाल ठाकरे को लगने लगा कि इससे वह इस राज्य के नेता तो हो सकते हैं लेकिन मराठी राजनीति करने से वे राष्ट्रीय नेता नहीं हो सकते. फिर 1970 के बाद बाल ठाकरे खुद को एक हिंदूवादी नेता के तौर पर उभारने लगे . अपनी इस हिन्दू इमेज के सहारे वह हिन्दी भाषी क्षेत्रों में उभरने की मंशा रखने लगे.
शिवसेना की सियासत जो दिखती है उससे ज्यादा चौंकाती है. 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में शिव सेना ने दशकों से अपनी सहयोगी रही बीजेपी उम्मीदवार की जगह कांग्रेस की प्रतिभा पाटिल का समर्थन कर दिया. साल 2012 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी के समर्थन में उतर आए थे. जब पूरे विपक्ष और आम लोगों में आपातकाल को लेकर रोष था तो चौंकाने वाला पल था वह जब शिवसेना ने इमरजेंसी का समर्थन कर दिया था. पूरी कहानी यूं समझिए.. जब देश में इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी. विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जाने लगा. बताया जाता है कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने ठाकरे के सामने दो विकल्प रखे या तो दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार हो जाएं या फिर मुंबई स्टूडियों मे जाकर इमरजेंसी के समर्थन का ऐलान कर दें. फिर बाल ठाकरे इमरजेंसी का समर्थन कर दिया.
सियासत में शादी के बाद हुई एंट्री बाल ठाकरे का जन्म 26 जनवरी 1926 को केशव सीता राम ठाकरे के घर में हुआ था. बाल ठाकरे की शादी मीना ठाकरे से हो गई. बाल ठाकरे के पिता केशव ठाकरे सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक और रंगमंच के कलाकार थे. सही मायने में बाल ठाकरे की कार्टूनिस्ट से नेता बनने के सफर की शुरुआत शादी के बाद ही हुई. 1950 में बाल ठाकरे ने बतौर कार्टूनिस्ट फ्री प्रेस में नौकरी की. इस दौरान उन्हें लगने लगा कि मुंबई मराठी लोगों की है और इस पर मराठियों का ही राज होना चाहिए. इसी विचारधारा के साथ बाल ठाकरे ने कार्टून बनाने शुरू कर दिए. वह काफी तीखी व्यंग्य चित्र बनाते रहे और वह तेजी से लोकप्रिय होने लगे.
50 के इस दशक में महाराष्ट्र नाम का कोई राज्य नहीं था. उस समय बॉम्बे प्रेजीडेंसी हुआ करती थी. आंदोलन के बाद, 1 मई 1960 को बॉम्बे प्रेजीडेंसी से टूटकर दो राज्य बनें. महाराष्ट्र और गुजरात इसी समय बाल ठाकरे ने अखबार की नौकरी छोड़ कार्टून की एक पत्रिका शुरू कर दी, जिसका नाम मार्मिक था.
इसके बाद बाल ठाकरे के परिवार ने भी राजनीति में एंट्री लेनी शुरू कर दी. बाल ठाकरे के सबसे बड़े बेटे का नाम बिंदू माधव ठाकरे, दूसरे बेटे का नाम जयदेव ठाकरे और सबसे छोटे बेटे का नाम उद्धव ठाकरे. वहीं बाल ठाकरे के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे का एक बेटा राज ठाकरे भी था. इन्हीं राज ठाकरे को सालों तक बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता रहा.
उद्धव ठाकरे का राजनीतिक सफर
जब तक बाला साहेब ठाकरे राजनीति में सक्रिय रहे तो उद्धव राजनीतिक परिदृश्य से लगभग दूर ही रहे. वह इस दौरान 'सामना' का संपादन करते रहे. साल 2000 में वह सक्रिय राजनीति में आए. साल 2002 में बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के चुनावों में शिवसेना ने शानदार प्रदर्शन किया और इस जीत का पूरा श्रेय उद्धव ठाकरे को गया. इसके बाद साल 2003 में उन्हें पार्टी का कार्यकारी अधिकारी बनाया गया. इसके बाद बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव को उत्तराधिकारी चुना और इसी बात से नाराज होकर राज ठाकरे ने 2006 में पार्टी छोड़ दी और नई पार्टी का गठन किया. उद्धव ठाकरे ने रश्मि ठाकरे से शादी की है और उनके दो बेटे आदित्य और तेजस हैं. उनका बड़ा बेटा आदित्य दादा और पिता की तरह राजनीति में सक्रिय है और शिवसेना की युवा संगठन युवा सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष है.