शिवसेना के नेता राज ठाकरे को जूनियर बाल ठाकरे क्यों कहते थे?
बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जे जे स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्ट की पढ़ाई की. बाल ठाकरे की तरह ही इन्होंने भी कार्टून बनाये.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सियासी संग्राम में राज ठाकरे की क्या भूमिका होगी? अभी यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन शिवसेना और परिवार से दूर होने के बाद राज ठाकरे ने भी उसी सियासत को चुना जो बाल ठाकरे की शिक्षा दीक्षा में मिली थी. राज ठाकरे भी गैर मराठियों के खिलाफ आवाज बुलंद करके ही अपनी पार्टी को मराठियों के दिलों तक पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं.
बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जे जे स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्ट की पढ़ाई की. बाल ठाकरे की तरह ही इन्होंने भी कार्टून बनाये. जैसे ही पढ़ाई खत्म हुई इसके बाद राज ठाकरे ने राजनीति में रूचि लेना शुरू कर दिया. साल 1990 में पहली बार राज की राजनीति में एंट्री हुई. शुरू के दिनों में शिवसेना के ही आनुवांषिक अंग विद्धार्थी सेना का राज ठाकरे को अध्यक्ष बनाया गया. बताते हैं कि अपने चाचा बाल ठाकरे के हर सियासी तीर को समझते हुए उनके अंदाज को बारीकी से देखकर राज ठाकरे बिल्कुल कॉपी करने लगे. इसीलिए शिवसेना में सभी राज ठाकरे को जूनियर बाल ठाकरे के रूप में देखने लगे.
1989 में पहली बार शिवसेना का एक उम्मीदवार संसद पहुंचा. 1995 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन की जीत हुई. महाराष्ट्र में बाला साहब इतना बड़ा चेहरा होने के बाद मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रही. इस दौरान राज ठाकरे, बाला साहेब की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे. सभी ये मानकर बैठे थे कि राज ठाकरे ही उनके राजनीतिक वारिस होंगे. पर 1996 में बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे की एंट्री हुई. ये एंट्री ऐसे वक्त पर हुई जब बाल ठाकरे खुद में बहुत टूट गए थे. उनकी पत्नी मीना ठाकरे का भी इसी साल निधन हो गया वहीं सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव का भी सड़क दुर्घटना में निधन हो गया.
1996 में ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच की लड़ाई सामने आने लगी. दोनों की लड़ाई का नतीजा 1999 में विधानसभा में देखने को मिला. इन चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की करारी हार हुई. फिर परिवार में टूट हो गई.
2002 में राज ठाकरे ने पहली बार खुली बगावत कर दी. राज ठाकरे ने खुलकर कहा कि बीएमसी चुनाव में मेरे किसी भी कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया जा रहा है. हालांकि राज ठाकरे की बगावत के बावजूद 2002 के चुनावों में उद्धव की जीत हुई. 2003 में हुए पार्टी सम्मेलन में ठाकरे वंश का बंटवारा हमेशा के लिए हो गया, क्योंकि उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया.
2005 में ठाकरे परिवार टूट गया और राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने की घोषणा कर दी. 2006 में राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी बनाई जिसका नाम रखा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना रखा. 2007 के बीएमसी चुनावों में तो राज ठाकरे, शिवसेना को नुकसान नहीं पहुंचा पाए लेकिन 2009 के विधानसभा के चुनावों में शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगा दी. शिवसेना चौथे पायदान पर आ गिरी जबकि राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटों पर कब्जा कर लिया.