मुख्यमंत्री बनने के बाद आसान नहीं देवेंद्र फडणवीस की राह, करना पड़ेगा इन 5 बड़ी चुनौतियों का सामना
Devendra Fadnavis: भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने 5 दिसंबर को महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इस दौरान PM मोदी समेत बीजेपी और एनडीए के कई दिग्गज नेता मौजूद रहे.
Devendra Fadnavis: महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में दिग्गज भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार (5 दिसंबर) को शपथ ली. मुंबई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा और एनडीए के कई दिग्गज नेता मौजूद रहे. देवेंद्र फडणवीस के साथ शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली.
शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा समेत कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री मौजूद थे. तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने देवेंद्र फडणवीस के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं. आइये जानते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें किन-किन मोर्चों पर जूझना पड़ सकता है.
गुड गवर्नेंस
मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल अच्छा माना जाता है. इस दौरान उन्होंने कई बड़े फैसले किए थे. उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों को साल भर पानी मुहैया कराने के लिए जलयुक्त शिविर योजना और मुंबई-नागपुर को जोड़ने के लिए 55 हजार करोड़ रुपये की एक्सप्रेस परियोजना शुरू की थी. मुंबई में मेट्रो नेटवर्क के विस्तार को मंजूरी दी थी.
अपने तीसरे कार्यकाल में भी उन्हें महाराष्ट्र में विकास कार्यों पर अच्छा-खासा खर्च करना पड़ेगा. वहीं, राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. राजकोषीय लगातार घट रहा है. वहीं, शहरी और ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर ज्यादा है. राजस्व में भी कमी आई है.
मराठा आरक्षण
फडणवीस सरकार के लिए मराठा आरक्षण भी चुनौती हो सकता है. मराठा आरक्षण को लेकर मनोज जरांगे पाटिल लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं. चुनाव के दौरान उनसे वादा किया गया था कि मराठा आरक्षण लागू किया जाएगा.मनोज जरांगे पाटिल को विश्वास में लेने में एकनाथ शिंदे ने अहम भूमिका अदा की थी.
मराठा आरक्षण लागू करने को लेकर राजनीतिक पेच कम नहीं है. इस मुद्दे को लेकर ओबीसी समुदाय में असंतोष है. उनका मानना है कि उनके आरक्षण का हिस्सा काट कर मराठों को दिया जा सकता है. ऐसे में उनके सामने दोनों समुदायों की मांगों के बीच संतुलन बिठाना एक बड़ी चुनौती होगी.
चुनावी वादे को पूरा करने की चुनौती
महायुति की जीत में लाडकी बहिन योजना में अहम भूमिका अदा की है. इस योजना में 21 से 65 साल की उम्र की उन महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं, जिनकी पारिवारिक सालाना आय ढाई लाख रुपये से कम है. इस योजना में मिलने वाली रकम को बढ़ा कर 2100 रुपये करने का वादा किया गया है.
हाल के समय में महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. राज्य से एफडीआई बाहर गया है. किसानों की आय घटी है.राजस्व में कमी आई है. कर्जा बढ़कर 7.82 लाख करोड़ रुपये हो गया है. इन क कल्याणकारी स्कीमों की वजह से इस पर 90 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा. ऐसे में फडणवीस सरकार के सामने स्कीमों के खर्च और राज्यों की आय के बीच संतुलन बिठाना एक चुनौती रहेगी.
किसानों की मांगें
महाराष्ट्र में प्याज, गन्ना, सोयाबीन, कपास और अंगूर महत्वपूर्ण फसलें हैं. किसानों में इन फसलों की सही कीमत न मिलने से वजह से नाराजगी है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को प्याज निर्यात पर पाबंदी की वजह से काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था. प्याज की पैदावार वाले इलाकों में बीजेपी को 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.
सोयाबीन और कपास किसानों ने उनकी फसलों के सही दाम ना मिलने का मुद्दा उठाया है. इसके अलावा सरकार ने किसानों का कर्ज़ माफ़ करने का चुनावी वादा किया है. ऐसे में अब उनके सामने किसानों को खुश करने की बड़ी चुनौती होगी.
बीएमसी चुनाव
विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को हार का सामना करना पड़ा है. अब उनका सारा ध्यान बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव पर है. बीएमसी देश की सबसे धनी महानगरपालिका है. इसका बजट कई छोटों राज्यों के बजट से भी ज्यादा है. शिवसेना का लंबे समय से इस पर कब्जा रहा है. ऐसे में बीजेपी के सामने उद्धव ठाकरे के गुट को हराना एक बड़ी चुनौती होगी.
शिवसेना 2017 के महानगरपालिका चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. इसके बाद बीजेपी थी. इस चुनाव से पहले देवेंद्र फडणवीस को शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार के साथ एक संतुलन बनाना पड़ेगा. सीएम न बनाए जाने से शिवसेना (शिंदे गुट) में असंतोष नजर आ रहा है.