मुंबई: महाराष्ट्र में शिवसेना के सत्ता में आने के साथ ही उन प्रोजेक्ट्स पर भी सवालिया निशान खडा हो गया है, जो कि देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में शुरू हुए थे. उद्धव ठाकरे ने सीएम की कुर्सी संभालते ही जो सबसे शुरूवाती फैसले लिये उनमें से एक प्रमुख फैसला था आरे के जंगल में मेट्रो ट्रेन के डिपो निर्माण का काम बंद किया जाना. पर्यावरण प्रेमियों के साथ साथ शिवसेना भी आरे में मेट्रो का डिपो बनाये जाने का विरोध कर रही थी, लेकिन फडणवीस ने इस विरोध को नजरअंदाज करते हुए पेडों को काटने को मंजूरी दी और डिपो निर्माण का काम जारी रखा. बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट पर भी ठाकरे सरकार पुनर्विचार कर रही है.


चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना के बीच जिन मुद्दों को लेकर मतभेद था, उनमें से एक प्रमुख मुद्दा था आरे में मेट्रो का डिपो बनाया जाना. हालांकि दोनो पार्टियां एकसाथ सरकार में तो जरूर थीं लेकिन डिपो बनाये जाने के लेकर शिवसेना का विरोध था. जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तो उन्होने सबसे पहले डिपो का काम बंद करने का फैसला लिया.उद्धव ठाकरे की ओर से लिया गया ये फैसला सियासी हलकों में चौंकाने वाला नहीं था. चुनाव से पहले ही उद्धव ठाकरे ने ये कहा था कि पेड़ काटने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. उनके बेटे और शिवसेना विधायक आदित्य ने भी बयान दिया कि पेड काटने वाले MMRCLके अफसरों को पाक अधिकृत कश्मीर भेज दिया जाना चाहिये.रविवार को उद्धव ठाकरे ने कहा कि आरे में मेट्रो डिपो बनाये जाने के फैसले पर पुनर्विचार किया जायेगा और वैक्लिपक जगह की तलाश की जायेगी.


आरे में कारशेड बनाये जाने का विरोध करने वालों में दोहरी खुशी है. एक तरफ जहां उद्धव ठाकरे ने कारशेड निर्माण का काम रूकवा दिया है तो वहीं दूसरी तरफ जिन पर्यावरणप्रेमियों को पुलिस ने पेड काटने का विरोध करने पर गिरफ्तार किया था, उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने का फैसला भी ठाकरे सरकार ने लिया है.


पर्यावरण प्रेमी इसलिये आरे में पेड मेट्रो शेड बनाये जाने का विरोध कर रहे थे क्योंकि इसके निर्माण के लिये यहां 2600 पेड काटे जाने थे. अक्टूबर के पहले हफ्ते में जब मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन( Mumbai Metro Rail Corporation) ने पेडों की कटाई शुरू की तो बडे पैमाने पर पर्यावरणप्रेमियों ने आरे में पहुंच कर विरोध करना शुरू कर दिया. इनका मानना था कि मेट्रो डिपो आरे के बजाये किसी दूसरे ठ्काने पर बनाया जाना चाहिये क्योंकि आरे एक जंगल है. पर्यावरणप्रेमियों के साथ शिवसेना भी विरोध में उतर आई थी. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. 7 अक्टूबर की सुबह जब सुप्रीम कोर्ट मुंबई के आरे में पेडों की कटाई को रोकने का फैसला सुना रहा था, तब तक 2600 में से करीब 2000 तक पेड कट चुके थे और वो जगह मैदान में तब्दील हो चुकी थी. सरकार ने दलील दी कि आरे के पेडों को काटने के बदले कई गुना ज्यादा पेड वो लगाएगी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आते आते कॉरपोर्शन को जितने पेड काटने थे, उसने काट लिये. पेडो के कटने से जो जगह खाली हुई वहां पर डिपो का निर्माण शुरू हो गया क्योंकि उसे रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्देश नहीं था. मुंबई में इस वक्त 6 मेट्रो लाईन बनाने का काम एक साथ चल रहा है. मेट्रो लाईन नंबर 3 इनमें सबसे बडी है . 34 किलोमीटर लंबी ये लाईन पूरी तरह से अंडरग्राउंड होगी और पश्चिमी उपनगर सीप्झ से लेकर दक्षिण मुंबई के कोलाबा तक जायेगी. सरकार का दावा है कि इस लाईन के बनने से निजी कारों के कारण सडक पर होने वाला प्रदूषण कम होगा. इसी लाईन के लिये डिपो बनाने की खातिर आरे को चुना गया था. स्थानीय आदिवासियों और पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओं के अलावा राजनीतिक पार्टी शिवसेना ने भी इसका विरोध शुरू किया.


मेट्रो के डिपो की तरह ही पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट यानी कि बुलेट ट्रेन के भविष्य को लेकर भी सवाल खडा हो गया है. शिवसेना पहले से ही बुलेट ट्रेन का विरोध करते आई है और मानती आई है कि ये प्रोजक्ट गैर जरूरी है. शिवसेना के बुलेट ट्रेन के प्रति विरोध का एक कारण ये भी था कि ट्रेन के ज्यादातर स्टेशन गुजरात में हैं. बुलेट ट्रेन के लिये जमीन अधिग्रहण का काम पूरा होना अभी बाकी है. ये काम महाराष्ट्र सरकार को करके देना था, लेकिन उद्धव ठाकरे ने कहा है कि अब इस प्रोजेक्ट पर पुनर्विचार किया जायेगा. अगर ठाकरे सरकार सहयोग नहीं करती है तो बुलेट ट्रेन का प्रोजक्ट सिर्फ गुजरात तक सिमट कर रह जायेगा. करीब 508 किलोमीटर लंबी बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट को जापान फंड कर रहा है. इसके जरिये दोनो शहरों के बीच की दूरी महज ढाई घंटे में पूरी कर ली जायेगी. सियासी हलकों में उम्मीद जताई जा रही है कि पीएम मोदी, उद्धव ठाकरे से बातक करके अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को बचा लेंगें.