महाराष्ट्रः लॉकडाउन के चलते पेड़ पर लगे चीकू हो रहे हैं खराब. किसानों का लाखों का नुकसान
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र के चीकू किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. रमज़ान महीने में सबसे ज़्यादा चीकू की बिक्री होती है लेकिन वो भी इस बार फीकी रही.
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मुंबईः पालघर डिस्ट्रिक्ट के धानु इलाके में चीकू की खेती करने वाले कई किसान आज लॉकडाउन की बुरी मार झेल रहे हैं. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के कारण देश-विदेश में चीकू की सप्लाई करने वाले उत्पादक किसान आज लाखों के नुकसान से कराह रहे हैं. पेड़ पर उगने वाले चीकू पिछले 3 महीने से खेत में सड़ने को मजबूर है. जिसके चलते किसानों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
पिछले 20 साल से धानु में चीकू की खेती कर हितेश कर्णावत को इस साल लाखों का नुकसान हुआ है. अपने खेत में मौजूद 1100 पेड की देखभाल कर उससे अच्छी खासी कमाई कर लेते थे. पिछले 20 साल से आर्गेनिक चीकू की खेती कर उसे देश विदेश में सप्लाई करते थे. लेकिन इस साल हितेश पर लॉकडाउन की बुरी मार पड़ी है. बड़ी मेहनत से उगाए गए चीकू आज उनके सामने सड़ कर जमीन पर पड़े पड़े खराब हो रहे है. लॉक डाउन के कारण पिछले तीन महीने से हितेश चीकू की सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं और ना ही चीकू खरीदने के लिए कोई खरीदार है.
हितेश बताते हैं कि 'पालघर डिस्ट्रिक्ट में धानु चीकू के उत्पादन के लिए विश्वभर में मशहूर है. हर साल विश्वभर में चीकू धानु से ही सप्लाई किया जाता है. एक लाख के ऊपर मजदूर लोग चीकू की खेती से जुड़े हुए हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण आज एक भी चीकू खेत से बाहर नहीं जा पा रहा है. पिछले 3 से 4 महीने से फसल खेत में बरबाद हो रही है. मेहनत से उगाए गए फल आज हमारे आंखों के सामने ज़मीन पर गिर कर सड़ रही है.'
हितेश का कहना है 'फरवरी महीने से हमारी हालात बहुत खराब है. एक पेड़ की सिचांई और देख रेख में हमें 300 रुपए खर्च होते हैं. एक पेड में लगने वाले चीकू बेचने से हम 800 से हज़ार रुपए कमा लेते थे. मेरे अकेले के खेत में 1100 पेड़ हैं. केवल मुझे अकेले को 8 से 10 लाख का नुकसान हुआ है. 26 आदमी हमारे खेत में काम कर रहे हैं. जैसे तैसे उनकी तनख्वा दे रहे हैं. रमज़ान महीने में सबसे ज़्यादा चीकू की बिक्री होती है लेकिन वो भी इस बार फीकी रही.
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