मैं समंदर हूं लौटकर आऊंगा.... महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव 2024 का जब रिजल्‍ट आया तो बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने कुछ इस तरह भावनाएं व्‍यक्‍त कीं. बीजेपी+एनसीपी (अजित पवार)+ शिवसेना (एकनाथ शिंदे)= महायुति ने विपक्षी दलों का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया. ऐसा लगा मानो समंदर लौटकर आया और विरोधियों को बहा ले गया.       


महायुति को प्रचंड बहुमत मिला. तीन प्रमुख दलों में बीजेपी की सबसे ज्‍यादा 132 सीटों पर जीत दर्ज हुई. एकनाथ शिंदे की शिवसेना दूसरे नंबर रही, जिसे 57 सीटें मिलीं, जबकि अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की. शानदार जीत के बाद तीनों ही दलों के नेताओं ने खुशी जताई, लेकिन मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस के बीच कौन बनेगा मुख्‍यमंत्री की रेस चल रही है. मामला बेहद गंभीर है, महाराष्‍ट्र की सियासत में सीएम पद के चलते ही पहले भी भूचाल आ चुका है, जब उद्धव ठाकरे ने 50-50 फॉर्मूला के तहत बीजेपी से सीएम पद मांगा और हिंदुत्‍व के नाम पर लड़ने वाले दो दल अलग हो गए. इसके बाद उद्धव ठाकरे सीएम बने और दो दल टूटे, दोनों दल बीजेपी के साथ गए, एनसीपी और शिवसेना.          


एक तरफ भतीजे अजित पवार ने चाचा शरद पवार को छोड़ा तो वहीं दूसरी ओर एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे से अलग राह पकड़ ली. बीजेपी ने बड़ा दल होते हुए भी सीएम पद का बलिदान दे दिया और एकनाथ शिंदे महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री बने. 2024 विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाने की बात चलते ही शिंदे और उनके समर्थकों में मायूसी छा गई है. लंबी लड़ाई चल रही है, शिंदे खुद को कॉमनमैन बता रहे हैं और अपनी इसी छवि को महायुति की प्रचंड जीत का श्रेय भी दे रहे हैं. शिंदे जब से उद्धव ठाकरे से अलग हुए तभी से विक्टिम कार्ड के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन को आगे बढ़ा रहे हैं. उद्धव ठाकरे के खिलाफ उन्‍होंने इसी को हथियार बनाया और सफल भी रहे. सीएम पद को लेकर शिंदे के तेवर बेहद तल्‍ख हैं, हालांकि वह बोल रहे हैं कि जैसा पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह बोलेंगे वह करेंगे, लेकिन इरादे एकदम साफ हैं, सीएम पद से कम कुछ मंजूर नहीं. मान लीजिए देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए, लेकिन क्‍या गारंटी है कि शिंदे बगावत नहीं करेंगे? अब बीजेपी के लिए राह उतनी आसान नहीं है.               


अब बीजेपी और शिंदे के पास क्‍या हैं विकल्‍प और क्‍या है मजबूरी?  



  1. बीजेपी ने गठजोड़ के बाद शिंदे को महाराष्‍ट्र का सीएम बनाया और देवेंद्र फडणवीस को डिप्‍टी सीएम, इस समझौते से स्‍पष्‍ट है कि बीजेपी ने शिंदे की हर शर्त को माना और एक बार जब शिंदे की शर्त मानी तो अब उन्‍हें लगेगा कि आगे भी गठबंधन में उनकी शर्त मानी जाएगी.

  2. बीजेपी उद्धव ठाकरे के विकल्‍प के तौर पर एकनाथ शिंदे को लाई थी, ऐसे में उसे डर है कि शिंदे ने बगावत की तो राज्‍य की सियासत में उस पर दोबारा धोखा देने की तोहमत लग जाएगी.

  3. बीजेपी को मालूम है कि वह महाराष्‍ट्र में अकेले दम पर बहुमत नहीं ला सकती है, ऐसे में उसे सहयोगी तो चाहिए, इसलिए शिंदे को नाराज करना ठीक नहीं होगा. शिंदे की नाराजगी भविष्‍य में कभी भी महायुति सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है. हालांकि बहुत लोग कह रहे हैं कि अजित पवार के समर्थन से बीजेपी सरकार चला लेगी, लेकिन जब शिंदे बागी हो सकते हैं तो अजित पवार क्‍यों नहीं? वैसे भी अजित पवार कितने भरोसेमंद हैं, बीजेपी इसका स्‍वाद पहले चख चुकी है.

  4. ऐसे में बीजेपी के पास अब एकदम सॉलिड विकल्‍प दो ही हैं. 


पहला विकल्प: देवेंद्र फडणवीस को केंद्र में लाकर शिंदे को सीएम पद सौंपा जाए. राज्‍य को स्थिर सरकार देने के लिए यही करना होगा.      


दूसरा विकल्‍प: शिंदे को ही सीएम बनाओ और शिवसेना का बीजेपी में संपूर्ण विलय ही करवा दो.   


याद रहे स्थिर विकल्‍प दो ही हैं और दोनों विकल्‍प यही कहते हैं कि समझादारी एकनाथ शिंदे को ही सीएम बनाने में है. भले ही देवेंद्र फडणवीस ने समंदर हूं लौटकर वाली लाइन बोलकर अपनी धमक दिखाई है, लेकिन जिस दिन देवेंद्र फडणवीस सीएम बने, एकनाथ शिंदे की आंखों में आंसुओं का सैलाब आएगा, ये सैलाब मातोश्री में पहले आ चुका है, जब उद्धव के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने विक्‍टिम कार्ड खेला और बीजेपी के साथ महाराष्‍ट्र की जनता ने भी माना कि शिंदे के साथ गलत हुआ, लेकिन अब अगर शिंदे को सीएम पद नहीं मिला और वह जनता के बीच गए तो वह फिर से विक्टिम कार्ड चलेंगे और इस बार निशाने पर कोई नहीं बल्कि खुद बीजेपी होगी.


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