महाराष्ट्र: मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भी कांग्रेस में घमासान जारी, मंत्रालय देने में हो सकती है देरी
मंत्रिमंडल का कोटा पूरा होने के बाद कांग्रेस नेताओं के समर्थक हिंसक हो गए और पार्टी के ख़िलाफ बग़ावत कर रहे हैं. अब कांग्रेस के लिए सब कुछ आलाकमान के आदेश पर निर्भर करता है.
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मुंबई: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के शपथ लेने के एक महीने बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ. तीन पार्टी की सरकार में कोई नाराज़ ना हो इसलिए एक संतुलित मंत्रिमंडल देने की कोशिश में एक महीने से ज़्यादा का समय लग गया. सोच थी कि सब ठीक होगा, लेकिन इतना सोच-विचार करने के बाद भी कांग्रेस अपने नेताओं की नाराजगी दूर नहीं कर पाई. अब मंत्रिमंडल का कोटा पूरा होने के बाद कांग्रेस नेताओं के समर्थक हिंसक हो गए और पार्टी के ख़िलाफ बग़ावत कर रहे हैं.
अहिंसा के मार्ग पर चलने की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी से नाराज हैं क्योंकि उनका मानना है कि पार्टी ने उनके नेताओं के साथ नाइंसाफ़ी की है. पुणे के भोर विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक संग्राम थोपटे के समर्थकों ने थोपटे को मंत्रीपद नहीं दिए जाने के विरोध में तोड़फोड़ की. अब संग्राम कह रहे हैं कि ये पार्टी की भावना है. लेकिन सच्चाई तो यही है कि थोपटे का ही ग़ुस्सा कार्यकर्ताओं के जरिए पार्टी पर उतारा गया है. बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विस्तार से कांग्रेस विधायक और वरिष्ठ नेताओं का एक गुट नाराज़ है. मंत्री ना बनाए जाने से पृथ्वीराज चव्हाण, प्रणीति शिंदे, नसीम खान, अमीन पटेल जैसे नेताओं ने राज्य कमेटी के सामने नाराज़गी जताई है. सोलापुर में कांग्रेस के कुछ पार्षदों ने इस्तीफ़े की पेशकश की तो कुछ लोगों ने अपने खून से खत लिखकर पार्टी हाई कमांड को भेजा है.
वहीं मुंबई के मालाड से विधायक अस्लम शेख को मंत्री बनाए जाने पर मुंबई के कांग्रेस विधायक अमीन पटेल और पूर्व मंत्री नसीम खान नाराज़ बताए जा रहे हैं. उनका आरोप है कि चुनाव से पहले अस्लम शेख बीजेपी में जाने की तैयारी में थे. उन्होंने पार्टी के विरोध में भी काम किया और पार्टी ने ऐसे लोगों को मंत्रिमंडल में तरज़ीह दी. वहीं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण मंत्री पद नहीं मिलने से नाराज़ है. उन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाने की पेशकश की गई है जिसे उन्होंने ठुकरा दिया है. कांग्रेस के इस बड़े नाराज़ गुट का आरोप है कि पार्टी ने लॉयलिस्ट लोगों को किनारे किया और इसके लिए उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे को ज़िम्मेदार बताया. नेताओं का कहना है कि खड़गे ने सोनिया गांधी को गुमराह कर अपने करीबियों को मंत्री पद दिलाए. नाराज़ नेताओं का ये गुट दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से मिलने की योजना बना रहा है.
सूत्र बताते हैं कि जिन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला वो तो नाराज़ हैं ही साथ ही जिन्हें मिला है वो भी खुश नहीं है. क्योंकि उन्हें मनचाहा मंत्री पद नहीं मिल रहा. दरअसल, कांग्रेस राज्य में चौथे नंबर की पार्टी थी लेकिन महाविकास गठबंधन की सरकार बनने से वो सत्ता में आई. ऐसे में सबसे कम और छोटे मंत्रालय इस सरकार में कांग्रेस को मिले हैं. अब कांग्रेस में कई बड़े दिग्गज नेता हैं जो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ऐसे में वो अपने लिए बड़ा मंत्रालय चाहते हैं जो देने संभव नहीं हो पा रहा.
प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट को पहले ही रेवेन्यू देने का आश्वासन दिया गया था. लेकिन अब पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी इस मंत्रालय के लिए ज़ोरदार लॉबिंग कर रहे हैं. ऐसे में दोनों के बीच का ये संघर्ष कांग्रेस आलाकमान के लिए सिरदर्द बन गया है. अब कहा ये जा रहा है कि इस बात को सुलझाने के लिए कांग्रेस शिवसेना से कृषि मंत्रालय मांगने जा रही है. ताकि अशोक चव्हाण को कृषि मंत्रालय दिया जाए. लेकिन फ़िलहाल शिवसेना ये देने के लिए राज़ी नहीं है. इसके अलावा कांग्रेस ग्रामीण विकास मंत्रालय पर भी दावा कर रही है. जिससे शिवसेना-एनसीपी नाराज बताए जा रहे हैं. अब कांग्रेस की इस अन्दरूनी कलह को ख़त्म करने में क्या शिवसेना, एनसीपी की मदद करेगी? शायद नहीं क्योंकि नाराज नेताओं की सूची उनकी पार्टी में भी बड़ी लंबी हैं. अब कांग्रेस के लिए सब कुछ आलाकमान के आदेश पर निर्भर करता है. लेकिन एक बात तो तय है कि इन सब से विस्तार के बाद अब मंत्रालय देने में देरी संभव है.
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