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मोदी विरोध के बहाने राज ठाकरे को मिलेगी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में एंट्री?

कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोरात कांग्रेस नेताओं से चर्चा कर इस विषय पर सकारात्मक तरीके से विचार कर रहे हैं. अगर सब ठीक रहा तो इस बार महागठबंधन में एमएनएस की एंट्री हो सकती है.

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव में जिस कांग्रेस पार्टी ने एमएनएस को महागठबंधन में लेने का विरोध किया था. अब वही कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले एमएनएस को ये कहते हुए गठबंधन में शामिल करने के लिये तैयार हो सकती है कि मोदी विरोधी ताकतों को एक साथ आना चाहिये. सूत्रों के मुताबिक राज ठाकरे के दिल्ली दौरे पर सोनिया गांधी से मुलाक़ात के बाद राज्य में एमएनएस को शामिल करने की अटकलें तेज हो गई हैं. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोरात कांग्रेस नेताओं से चर्चा कर इस विषय पर सकारात्मक तरीके से विचार कर रहे हैं. अगर सब ठीक रहा तो इस बार महागठबंधन में एमएनएस की एंट्री हो सकती है.

क्या सोनिया गांधी और राज ठाकरे की मुलाक़ात महाराष्ट्र में नए राजनितीक समीकरण को जन्म देगी? क्या मोदी विरोध के बहाने राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में होगी शामिल? क्या महाराष्ट्र में आनेवाले विधान सभा चुनाव में एमएनएस का रेलवे इंजिन कांग्रेस-एनसीपी को जीत का धक्का लगा सकेगा? इन सब सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्त में हैं.

एनसीपी ने लोकसभा चुनाव के दौरान ही राज ठाकरे को हरी झंडी दिखा दी थी लेकिन कांग्रेस ने एमएनएस की नो एंट्री की थी. अब यही कांग्रेस राज्य में कमजोर पड़ने के बाद एक मज़बूत विपक्ष बनाने के लिए समविचारी पार्टियों को एक साथ लेने पर विचार कर रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोरात ने संगमनेर मे पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि आनेवाले विधान सभा चुनाव में सभी समविचारी पार्टियों को साथ लेकर चुनाव लड़ा जाएगा.

गठबंधन की चर्चा सकारात्मक तरीके से अंतिम दौर में जरुर पहुंची है लेकिन अब भी इस राजनीतिक मिलन में कुछ रोड़े अटके हुए हैं जो आनेवाले दिनों में सुलझने के आसार नज़र आ रहे हैं.

एमएनएस के मुख्य रुप से विरोध पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण और संजय निरुपम जैसे उत्तर भारतीय नेताओं द्वारा किया गया था. पार्टी को डर था कि एमएनएस को महाराष्ट्र में साथ लिया तो उसका असर उनके उत्तर भारतीय वोट बैंक पर होगी ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में. लेकिन मौजूदा हालात में कांग्रेस राज ठाकरे के साथ लेने में ही बेहतरी समझती है.

लोकसभा चुनाव के दौरान एनसीपी ने राज ठाकरे को साथ लेने का प्रस्ताव रखा था. राज ठाकरे और अजित पवार की मुलाक़ात, राज ठाकरे और शरद पवार के बीच बढती नज़दीकियाँ सब इस तरफ़ इशारा कर रही थी कि राज ठाकरे की डूबती नईया को कांग्रेस-एनसीपी का सहारा मिलेगा, लेकिन ऐसा हो ना सका. अब राज ठाकरे और सोनिया गांधी की मुलाक़ात से दोबारा इस गठबंधन की अटकलें तेज हो गई हैं. साल 2014 के बाद से एमएनएस को हर चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, 2019 के चुनाव राज ठाकरे के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. राज ठाकरे को संजीवनी की जरुरत है जिसे वो एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के रुप में देख रहे है.

राज ठाकरे ने पिछले साल अपनी शिवाजी पार्क की रैली में से कहा था कि मोदी मुक्त भारत करने के लिए सभी राजनाीतिक दलों को एक होना चाहिए. एनसीपी का मानना है कि शहरी भागों में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन मज़बूत नहीं है तो वहीं एमएनएस की जो भी ताक़त बची है वो केवल मुंबई, पुणे, ठाणे, नासिक जैसे शहरों में ही है. एमएनएस को साथ लेने से कांग्रेस-एनसीपी को शहरी इलाक़ों में फ़ायदा हो सकता है और बीजेपी- शिवसेना को नुक़सान. बताया जाता है कि अगर एमएनएस को कांग्रेस-एनसीपी ने साथ लिया तो इसका परिणाम कुल 25 विधान सभा सीटों पर सीधा असर हो सकता है. वहीं दूसरी वजह है शिवसेना-बीजेपी के शहरी इलाक़ों के मराठी वोट बैंक में सेंधमारी करना या उसका विभाजन करने की स्थिति में तीनों ही पार्टियों के फ़ायदा नज़र आ रहा है. अपने राजनितीक अस्तित्व के लिए जूझ रहे राज ठाकरे को एक नई संजीवनी मिल जाएगी तो कांग्रेस-एनसीपी को नया वोट बैंक.

लोकसभा चुनाव राज ठाकरे ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे लेकिन कांग्रेस- एनसीपी के लिए सभाएं करके बीजेपी के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्शाया. लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे के डिजिटल सभाओं की ख़ूब चर्चा हुई लेकिन उसका फ़ायदा कांग्रेस-एनसीपी को नहीं हुआ. लेकिन कांग्रेस-एनसीपी इस उम्मीद के साथ राज ठाकरे को सहारा दे रहे है कि राज ठाकरे के भाषणों का असर विधान सभा चुनाव में होगा. अगर ऐसा हुआ तो नरेंद्र मोदी के विजय रथ को महाराष्ट्र में दिक़्क़तों का सामना निश्चित रुप से करना होगा.

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