हरियाणा में हार से कांग्रेस अभी पूरी तरह उबरी भी नहीं थी कि ठीक वैसा ही बड़ा झटका पार्टी को महाराष्ट्र में लगा है. यहां पर कांग्रेस ये उम्मीद कर रही थी कि महाविकास अघाड़ी कुछ कमाल दिखाएगा और उस भरोसे पार्टी अपने आपको मजबूत करेगी. लेकिन उसके इस भरोसे और उम्मीदों पर ऐसा पानी फिरा कि पार्टी को समझ नहीं आ रहा, ऐसा कैसे हो गया.
दरअसल, हरियाणा में जब इससे पहले विधानसभा का चुनाव हुआ, उस वक्त बीजेपी ये मानकर चल रही थी कि उसके हाथ से वहां की सत्ता निकल रही है. पीएम मोदी समेत पार्टी के बड़े नेताओं ने उस तरह से प्रचार कर ताकत नहीं झोंकी, जैसा अमूमन अन्य राज्यों में दिखता है. लेकिन, पूरे चुनाव के दौरान हरियाणा में बीजेपी नेताओं ने कोई बड़ा बयान नहीं दिया, सिर्फ अपनी रणनीति बनाकर चुपचाप उस पर अमल करते रहे.
दूसरी तरफ आत्मविश्वास से लबाबल कांग्रेस यही सोचती रह गई कि सत्ता में आए तो कमान किसके हाथ जाएगी. लेकिन, उसके बाद जो हुआ वो सब लोगों के सामने था. आज बिल्कुल यही महाराष्ट्र के रुझानों में देखने को मिला है. खुद बीजेपी के सीनियर नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने ये माना कि उन्हें उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली है.
एक फैक्टर देखने को ये मिला कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन रहा, उसकी वजह से उसकी बारगेनिंग पावर सहयोगी दलों में कम हुई थी. लेकिन, उससे भी ज्यादा मार उसे अपने ही बागियों से पड़ी. हरियाणा में भी उसके खिलाफ अपने ही पार्टी के उतरे बागी नेताओं ने कई पार्टी उम्मीदवारों को हराने का काम किया था.
महाराष्ट्र में भी कुछ यही हाल देखने को मिला, जहां पर कई ऐसी सीटें थी, जो कांग्रेस के हाथ आ सकती थी, वहां पर कांग्रेस पार्टी के बागी नेताओं ने खेल बिगाड़ने का काम किया. यानी, एक तो हरियाणा में हार के चलते सहयोगी दलों के बीच कांग्रेस की बारगेनिंग पावर और कम हुई, उसके बावजूद जिस तरह के नतीजे आए उसने फिर हरियाणा जैसा झटका दिया है.