नई दिल्ली: चुनावी नतीजों के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस मुंबई के बीजेपी ऑफिस पहुँचे तो कार्यकर्ताओं ने उनका मुँह मीठा कराया, फूल मालाओं से लाद दिया. उसी समय शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी अपने बेटे आदित्य संग पार्टी ऑफिस पहुँचे. चुनावी नतीजे दोनों ही पार्टियों के लिए सबक़ लेकर आए हैं. दोनों मिल कर चुनाव लड़े फिर भी 200 पार कर नहीं पाए, जिसका एलान हर चुनावी मंच से किया जाता था. बीजेपी बड़ी मुश्किल से सौ का आँकड़ा पार कर पाई. शिव सेना भी पिछले चुनाव में मिली 63 सीटों से पीछे ही रह गई. जबकि इस बार तो दोनों पार्टियां मिल कर चुनाव लड़ी थीं, ऐसे में तो कमाल हो जाना चाहिए था लेकिन गठबंधन ऐसा नहीं कर पाई तो फिर चूक कहां रह गई?


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कोई एक वजह नहीं होती जिससे चुनाव में हार जीत का फ़ैसला होता है लेकिन एक बड़ा फ़ैक्टर निर्णायक होता है. इतना तो तय है कि सिर्फ़ राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चुनाव नहीं जीता जा सकता है. बीजेपी हर मंच से कश्मीर और 370 का ही जाप करती रही. इसी बहाने विपक्ष को मन भर कर कोसा. चुनाव के आख़िर में वीर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा भी हो गया लेकिन ये तो तय है कि स्थानीय मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती है. महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी गठबंधन ने ऐसा ही किया.


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चुनाव के सिलसिले में मैंने महाराष्ट्र के कई ज़िलों का दौरा किया. नागपुर से लेकर सिंधुदुर्ग तक. पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा से लेकर विदर्भ तक. किसान बेहाल मिले. पुणे और नासिक जैसे शहरों में बढ़ती बेरोज़गारी से जूझते नौजवानों से मुलाक़ात हुई. फडणवीस की पांच साल की सरकार में किसानों के कई आंदोलन हुए. क़रीब 14 हज़ार किसानों ने आत्महत्या कर ली. दलितों की नाराज़गी के कारण राज्य में कई दिनों तक अशांति बनी रही. मराठों का आंदोलन भी सरकार के लिए मुसीबत बना. अब मैं यहाँ पंकजा मुंडे का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूँगा. जो बीड की परली सीट से चुनाव लड़ीं और फिर हार भी गईं. वे बीजेपी के बड़े नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बड़ी बेटी हैं. राज्य सरकार में मंत्री रहने के बाद भी वे हार गईं. उनके इलाक़े में जब मैं गया तो वहां एक भी सड़क अच्छी नहीं मिली.


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विधानसभा चुनाव से पहले दूसरी पार्टियों से आए कई नेताओं को बीजेपी ने टिकट दिया. शिवसेना ने भी टिकट दिया. इनमें से कई हार गए. कई जगहों पर दोनों पार्टियों के बाग़ी उम्मीदवार खड़े हुए. इसका नुक़सान भी गठबंधन को हुआ. यही नहीं बाहरी को मान सम्मान देने पर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए तो कुछ ने अपनी पुरानी पार्टी को हराने के लिए पूरी ताक़त लगा दी. इसीलिए तो बीजेपी को 25.65% और शिव सेना को 16.55 प्रतिशत वोट मिले. जबकि हाल में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 27.59% और शिव सेना को 23.29 फ़ीसदी वोट मिले थे.


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बीजेपी शिवसेना गठबंधन के लिए रही सही कसर शरद पवार ने पूरी कर दी. 78 साल के एनसीपी चीफ़ ने कई सीटों पर प्रचार कर गठबंधन की खटिया खड़ी कर दी. पांच साल सरकार चलाने के बावजूद एक मज़बूत नेता की छवि देवेन्द्र फडणवीस नहीं बना पाए. जबकि टिकट बँटवारे से लेकर सरकार चलाने तक में उन्हें पूरी छूट दी गई.